रविवार, 24 दिसंबर 2023

लैंग्वेज एक्सपर्ट बनकर सवारें अपना भविश्य।

Tudawali, राजस्थान। 
16/12/2023

नमस्कार दोस्तों। 
प्रेरणा डायरी कि आज की post में आप सभी का हार्दिक अभिनंदन है। 


बतोर लेंग्वेज एक्सपर्ट कैंडिडेट अपने करियर की शुरुआत एक इंटरप्रेटर, वेज ट्रांसलेटर या लैंग्वेज एक्सपर्ट के तौर भी पर कर सकते हैं। पिछले  कुछ समय में चुनिंदा भाषाओं का दायरा बढ़ा है। इसकी एक बड़ी वजह है विदेश में जाकर नौकरी करने वाली संख्या में  इजाफा होना। इसके लिए वो खुद को तैयार कर रहे हैं। विदेश जाने लिए अब सिर्फ अंग्रेजी पहली प्राथमिकता नहीं है। इसकी जगह स्पेनिश के साथ दूसरी भाषा  ले रही है। कंपनियां ऐसे वें उनको मौके दे रही हैं, जिन्हे एक से अधिक भाषाओं का ज्ञान है। यह डिमांड सीधे तौर पर  लैंग्वेज एक्सपर्ट्स के लिए वरदाक  साबित हो रही हैं। इसे आप दो तरह से समझ सकते हैं। पहला, अतिरिक्त लैंग्वेज  'सीखकर आप अपनी स्किल में  इजाफा कर सकते हैं। इसके साथ ही ता आप लैंग्वेज एक्सपर्ट बनकर भी नौकरी कर सकते हैं। लैंग्वेज  एक्सपर्ट की डिमांड सिर्फ देश में ही नहीं विदेश में भी है। ट्रेंड को समझेंगे तो पाएंगे कि अब कंपनिया, इसमें सीधे तौर पर रुचि ले रही है। और यूथ इसकी तैयारी में रुचि ले रहे हैं। ऐसे में लैंग्वेज एक्सपर्ट बनकर अपना कैरियर संवार सकते हैं। जानिए, कैसे लैंग्वेज एक्सपर्ट बनें और अपने कैरियर को उड़ान दें --

क्या लैंगुवेज एक्सपर्ट का अच्छा फ्यूचर है..?

आज के आधुनिक युग में तेजी से बदलाव की ओर विस्तार हो रहा है। बहुत से नए इलाकों में नोकरी की नई दुर्लभताएं भी बढ़ती जा रही हैं। उन्ही दुर्लभों में से एक है विदेशी भाषा में करियर  ( Career inविदेशी भाषा में हिंदी )। बहुत से छात्र यही सोचते हैं कि विदेशी भाषा में कैरियर कैसे सुनिश्चित करें ताकि आने वाला उनका भविष्य उज्ज्वल बन सके। कुछ लोगों को विदेशी भाषा सीखने में काफी रुचि होती है, लेकिन सही से पता नहीं चलता कि वे विदेशी भाषा सीखेंगे क्या। तो यह पोस्ट उन लोगो या छात्रों के लिए अद्भुत साबित होगी जो विदेशी भाषा में रचनात्मकता बनाना चाहते हैं।

आज ज्यादातर बच्चे इंजीनियर, डॉक्टर बने या फिर आईटी ओर मैनेजमेंट जैसे सेक्टरों में सबसे ज्यादा रुचि रखते हैं। लेकिन इन सेक्टरों में अब नौकरियों की संख्या कम हो रही है और सैलरी भी कुछ खास नहीं। लेकिन विदेशी भाषा में बहुत सी नौकरियाँ मिल सकती हैं क्योंकि इस तरफ किसी का ज्यादा ध्यान नहीं जाता है विदेशी भाषा सीख कर आप अपना भविष्य अच्छा बना सकते हैं। तो आइए

विदेशी भाषा सीखते हैं तो आप उस भाषा के व्याकरण का ज्ञान और सीखने के साथ दुनिया के उस हिस्से के इतिहास और संस्कृति से भी जुड़े होते हैं। जब आप कोई नई भाषा सीखते हैं तो दुनिया को देखने के लिए एक बिल्कुल नया स्वरूप आपके सामने आता है। नई भाषा: ग्लोबल सोसाइटी को देखने के लिए यहां क्लिक करें।

भारत दिवस प्रतिदिन विकसित हो रहा है जिससे वैश्वीकरण और खुली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल रहा है और बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने व्यापार के लिए दूसरे देशों में अपने कार्यालय या कारखाने खोल रही हैं। मेक इन इंडिया ने इसे खूब बढ़ावा दिया है।

Business का जमाना है और दुनिया काफी छोटी हो गई है. सारे देश एक दूसरे के साथ बिजनेस कर रहे हैं. हर देश दूसरे देश को एक बाजार के तौर पर देख रहा है. ऐसे में सभी

देश एक दूसरे के साथ अच्छे संबंध बनाने में लगे हुए हैं. अब जब एक देश दूसरे के साथ आएगा तो फॉरेन लैंग्वेज एक्सपर्ट (Foreign language Expert) की जरूरत तो पडे़गी ही. जैसे-जैसे देश दुनिया के दूसरों कोनों में बाजार बनाने की कोशिश कर रहे हैं वैसे वैसे इस प्रोफेशन की मांग भी बढ़ती जा रही है.
वहीं फॉरेन लैंग्वेज सीखने वाले युवाओं की संख्याज लगातार बढ़ रही है. आजकल युवाओं में भी ट्रेंड है कि वो एक से ज्यादा लैंग्वेज की जानकारी रखते हैं क्योंकि आज के युवा जानते हैं कि अगर उन्हें अच्छी कंपनी में जॉब करनी है तो खुद को और अधिक बेहतर बनाने और एक से अधिक लैंग्वेज की जानकारी भी होनी चाहिए.

युवा हिन्दी, अंग्रेजी के साथ-साथ अपनी कमांड जर्मन, स्पेनिश, फ्रैंच, कोरियन,चायनीज, जैपनीज, पर्शियन समेत तमाम विदेशी भाषाओं में अपना नॉलेज बना रहे हैं, ताकि उनकी तरक्की की राहें आसान हो सकें.

वहीं भारत में भी पिछले कुछ सालों में फॉरेन लैंग्वेज कोर्सेस करवाने वाले संस्थानों में भी वृद्धि हुई है, इन इंस्टीट्यूट के माध्यम से छात्र किसी भी फॉरेन लैंग्वेज में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या फिर डिग्री कोर्सेस कर सकते हैं.

इस फील्ड में अपना करियर बनाने के लिए कुछ बेसिक स्किल्स कि जरूरत होती है, जो मैं आपको बता रहा हुँ।आप ध्यान पूर्वक इन्हें पढ़े ---

  • कम्यूनिकेशन स्किल्स- आपमें कम्यूनिकेशन स्किल्स का होना बहुत ही जरुरी है क्योंकि बिना कम्यूनिकेशन स्किल्स के इस फील्ड में काम कर पाना काफी कठिन होगा.
  • गुड सेंस ऑफ ह्यूमर- आपके में गुड सेंस ऑफ ह्यूमर भी होना चाहिए क्योंकि इससे आप लोगों को अपने बात में बांध सकेंगे और ज्यादा फायदा निकाल पाएंगे.
  • क्रिएटिविटी- क्रिएटिविटी भी इस फील्ड में काम करने वालों के लिए बहुत ही जरुरी चीज है.
  • सीखने का अप्रोच- आपमें सीखने की ललक हमेशा होनी चाहिए क्योंकि आप जितना सीखते जाएंगे उतना ही आपके आगे बढ़ने के चांसेस बढ़ेंगे.
  • टीमवर्क में काम करना- आपको अपने में एक ऐसा इंसान डेवेलप करना होगा जो कि टीम के लिए काम कर सके.
  • पॉजीटिव एटीट्यूड- इस फील्ड में काम करने के लिए आपमें पॉजीटिव एटीट्यड का होना बहुत ही जरुरी है. ताकि आप इस फील्ड में लंबी पारी खेल सकें.


Educational Qualification to enroll in Foreign language course- किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान से 12वीं पास करने के बाद आप फॉरेन लैंग्वेज सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या डिग्री कोर्सेस में एडमिशन सकते हैं. वहीं फॉरेन लैंग्वेज में पोस्ट ग्रेजुएट और मास्टर डिग्री कोर्सेस के लिए किसी भी स्ट्रीम से ग्रेजुएशन की डिग्री होना जरूरी है. वहीं पोस्ट ग्रेजुएशन और मास्टर डिग्री के बाद भी फॉरेन लैंग्वेज में डिप्लोमा, डिग्री, और एडवांस डिप्लोमा कोर्सेस किए जा सकते हैं. साथ ही आप इसमें मास्टर्स करने के बाद पीएच.डी भी कर सकते हैं.

कौन-कौन से कोर्स हैं अवेलेबल (available courses in Foreign language)
Gradaute/Postgraduate programmes
Foreign language diploma courses
Foreign language advanced diploma courses
Foreign language certificate course
Ph.D Course in foreign language course


कहां मिलते हैं मौके (Chances after completing course)

 

Foreign language teacher- कोर्स करने के बाद आपको टीचिंग में भी करियर की अपार संभावनाएं हैं. आप सीखे हुए लैंग्वेज को पढ़ा कर भी अच्छी कमाई कर सकते हैं.
Translator- कोर्स करने के बाद आप ट्रांसलेटर की तरह भी जॉब कर सकते हैं.
Multinational company- मल्टीनेशनल कंपनियों में एक से ज्यादा लैंग्वेज जानने वालों की जरूरत होती है और उन्हें प्राथमिकता भी दी जाती है.
Tourist Guide- लैंग्वेज सीखने के बाद आप टूरिस्ट गाईड का भी काम कर सकते हैं.
Organization- आपको किसी बड़े ऑर्गनाइजेशन में काम करने का भी मौका मिल सकता है जैसे- UNICEF, world Bank, WHO etc.
jobs in Embassy- आपको रिलेटड एमबेसी में भी काम करने का मौका मिल सकता है जहां काफी अच्छा पैसा मिल सकता है.

    

Yah भी पढे - prernadayari.blogspot.com


Salary- इन लैंग्वेज कोर्स को करने के बाद किसी भी कंपनी में कम से कम 15 से 18 हजार रुपये में काम मिल ही जाता है. इसके अलावा अगर आपने फ्रीलांस ट्रांसलेशन वगैरह का काम करना शुरु कर दिया तो वो पैसे आपके पास एक्स्ट्रा होंगे. इसी के साथ आप टीचिंग में भी अच्छा कमा सकते हैं.

इन इंस्टीट्यूट से करें फॉरेन लैंग्वेज कोर्सेस – Best Institute for Foreign Language
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, कोलकाता
हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद
एम्बेसी ऑफ जापान, नई दिल्ली
दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली.
पुणे विश्वविद्यालय,पुणे.

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  • जरूरी है, महिला सुरक्षा। 
  • कैसे मोटिवेट रहे हम। 
  • भारतीय चुनाओ में बढ़ रही हैं, नारी शक्ति कि भक्ति। 
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  • सब कुछ सम्भव। 


किन किन भाषाओं कि बढ़ रही हैं माँग --

एक्सपर्ट कहते है कि इस समय एस्पेनिस्, कोरिया, जर्मन, जापानी भाषा से जुड़े विशेषज्ञ की डिमांड बड़ रही है। इसके अलावा चीनी, अरबी, फ्रेंच भाषा भी युवाओं का ध्यान अपनी और खेच रही है। कई कम्पनी तो अपने दफ्तर में सीधे तौर पर भाषा एक्सपर्ट कि नियुक्ति कर रही हैं। इसके अलावा कम्पनी ट्रांसलेटर के पद पर भी भर्ती करती हैं। खास बात यह है कि इसके लिए कम्पनी ऑफिस आने कि बाध्यता नही रखती, यानी आप घर से भी नौकरी कर सकते है। इसमें वेतन भी अच्छा मिल रहा है,साथ ही इंटरनेशन लेवल पर काम का अनुभव होना बेहद उपयोगी सिद्ध हो सकता है। 

 मिलती है प्राथमिकता --

एक सर्वे के मुताबिक कंपनियां कैंडिडेट को रखते समय उसमें विशेष स्किल को देखती हैं। रेस में आपको एक अतिरिक्त लैंग्वेज आने से आपको प्राथमिकता मिल सकती है। इसके अलावा गूगल, ऐपल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां अपने यहां ब्रांड स्पेशलिस्ट की भर्तियां करती हैं। गौरतलब है इस पद पर होने वाली भर्ती के लिए कंपनियां बड़ी सैलरी ऑफर करती हैं। 
किसी एक लैंग्वेज में विशेषज्ञता : हासिल करते हैं, तो इंटरप्रेटर और - ट्रांसलेटर के तौर पर भी काम करने का मौका मिलता है। ये विशेषज्ञ कई तरह से काम करते हैं। जैसेमान लीजिए : आपने स्पेनिश  सीखी है, तो आपको स्पेन के 
 क्लाइंट से बात करनी होगी। ' उसकी जरूरतों को समझना होगा। वो किन चीजों में सुधार करना चाहता है, यह 
भी जानना होगा। इन सभी बातों को कंपनी तक पहुंचाना आपकी जिम्मेदारी का हिस्सा है। इस तरह कंपनियां विदेशी क्लाइंट के जरिए बिजनेस को बढ़ाती हैं। 

Internation relationship में अच्छे अवसर ---


बतोर लैंग्वेज एक्सपर्ट, आपको इंटरनेशनल रिलेशंस से लेकर हॉस्पिटैलिटी तक मौके ही मौके मिलते हैं। कई कंपनियां अपने मैनेजमेंट डोमेन में अलग अलग भाषाओं के जानकारों को रखती हैं। इनकी भाषा को विशेष स्किल के तौर पर देखा जाता है। इसके अलावा टूर गाइड और ट्रैवल एडवाइजर के तौर पर भी इन्हें कंपनियों में मौके मिलते हैं जो पर्यटन से जुड़ी हुई हैं। इसके. साथ ही भाषाओं पर बेहतर पकड़ रखते हैं तो इंटरनेशनल रिलेशंस के सेक्टर में भी कैरियर की शुरुआत कर सकते हैं। अगर आप इंटरनेशनल रिलेशंस में ग्रेजुएशन या पीजी कर चुके हैं तो यहां पर आपको प्राथमिकता मिलती है। इस तरह लैंग्वेज एक्सपर्ट बनकर कई अलग अलग क्षेत्रों में आपको मौके मिलते हैं। ध्यान रखने वाली बात है कि कई बार ' ऐसे एक्सपर्ट की डिग्री भी देखी जाती है, इसलिए इसे किसी मान्यता प्राप्त  संस्थान से ही करें। 


Website -- prernadayri.blogspot.com
राइटर      --- kedar lal 

शनिवार, 23 दिसंबर 2023

कैसे मोटिवेट रहे हम..?

         

        पढ़िये "प्रेरणा डायरी".... और रखिये अपने आप को प्रेरित। 

                             



कोई भी वयक्ति, कैसा भी व्यक्ति,... हमेसा motivate नहीं रह सकता! ख़ुद सिकंदर भी हमेसा motivate नहीं रह पाया कोई भी व्यक्ति महीने के 30 मे से 30 दिन motivate नहीं रह सकता है! और यदि कोई ऐसा कहता है तो यह सत्य नहीं होगा l एक सफल इंसान की जिंदगी मै भी कई पल ऐसे आते हैं जब वह dimotivate (हतास) महसूस कर सकता हैं! अपने निजी, और घरेलु कारणों से! हा पर हम ये कह सकते है कि एक व्यक्ति को अपने आधिक्तर समय मे motivate रहना चाहिए! और यही सही भी होगा! 

अब सवाल खड़ा होता है कि आख़िर हम कैसे हमेसा motivate yourself रहे......?? 

Friends इसके लिए मै आपको bhaut short & sweet🍬 ट्रीक देता हूँ! ओर 100% दावा तो नहीं करता , पर ये कह सकता हु कि आप इन्हें फॉलो करकेbetter फील करंगे! 

1. सकारात्मक सोच ( positive things) 

हर तरीखे से सबसे अहम् बात है सोच हमेसा सकारात्मक रहे! नकारात्मक विचारों को तो सुयम् सुवामि विवेकानंद ने भी नरक के समान बताया है! आप सुख, दुख अच्छी बुरी, हर परिस्थिति मै हमेसा पॉजिटिव बने रहे! खुश रहे! हँसने के बहाने नहीं ढूँढे! जब भी मौका मिले खूब हँसे! 

𝟚. भगवान् पर भरोसा (𝕓𝕝𝕖𝕒𝕧𝕖 𝕚𝕟 𝔾𝕠𝕕) 

अब मै आपको जो बताने वाला हू इस बात पर आपमसे आधिक्तर लोग सायद विश्वास ना करे! पर मै आपको यकीन के साथ कहता हू की आप जितने god के निकट रहगे उतने ही खुश रहेंगे! हर परिस्थिति म भागवंन पर भरोसा बनाये रहे! सच्चे man से प्रभु श्रीराम या आप जिसको भी मानते है!.. उनकी प्रार्थना जरूर करे ऐसा करने से आपकी सोच भी हमेसा sakaratmak रहेगी! आपका पहला पॉइंट पॉजिटिव थिंकिंग इस प्रकार और अधिक डॉवलप् होगा!! 

𝟛. आसावादी रहे (𝕙𝕠𝕡𝕝𝕖𝕗𝕦𝕝𝕝) 

जीवन मै निराशा से बड़ा कोई आभिसाप नहीं होता "
निराश व्यक्ति कोई समाधान तक नहीं पहुँच पाता! कोई समस्या हल करने मे सफ़ल नहीं हो पाता! इसलिए हमेसा उम्मीद के साथ जिये l प्रॉब्लम को फेस करे! समस्या से घबराए नहीं! उनका सान्ति से हल करे l किसी ने क्या खूब लिखा है-----
        
     मंजिले तो मिल जायेजी, एक दिन
     गुमराह नहीं है! 
     गुमराह तो वो है, 
     जो घर से निकले ही नहीं है!! 

 अगर आप अपने जीवन में इन, 3-4 बातों को फॉलो करते है तो आप हमेसा motivate रह सकेंगे इसके आतिरिक्त इन बातों पर भी
 ध्यान दें 👇     

1. लक्ष्य बनाये! 
2.nakaratmak लोगों से दूर रहे,! 
3. ख़ुश रहे!
4. योग / प्रणायम  करे
5. टेंशन फ्री रहे! 

 𝕊𝕦𝕞𝕞𝕒𝕣𝕪-----

Motivation एक प्रकार की आंतरिक शक्ति है! जो व्यक्ति को अपने गोल अचीव करने के लिए प्रेरित करती हैं! हम अपनी दिनचरिया , हैप्पीनेस, फिट नेस, सोच, मै सुधार कर हमेसा motivate रह सकते है! कोई मुश्किल नहीं है! पर इस के लिए आपको दिल से प्रयास करना चाहिए! 

ऐसा कर लिया तो जीवन रूपी बगिया महक उठेगी

Question:-----


 𝟙. 𝕄𝕠𝕥𝕚𝕧𝕒𝕥𝕚𝕠𝕟  किसे कहते हैं..?? 
  
𝔸𝕟𝕤𝕨𝕖𝕣... Motivation एक आंतरिक शक्ति है! अभी प्रेरणा है जो व्यक्ति की गोल अचीव करने, कार्य करने केलिये प्रेरित करती हैं!! 


             
                      आसावादी बने,   होपफुल आल वेज      

           

2. किन परिस्थतियो मै प्रेरणा (motivation) कम या खत्म हो जाती हैं...???? 


Ans---- समर्थन और प्रोत्साहन की कमी से प्रेरणा  कम हो जाती हैं l नकारात्मक विचार और  लबी बीमारी भी असर डालती है l जीवन में ऐसे लोगों का होना बहुत जरूरी है जो आप पर भरोसा करते हैं, आप से प्यार करते, और कठिन परिस्थतियो मै भी आपको कामयाब होने के लिये प्रेरित करते हैं


3.  छात्रों को  पदाई के लिए कैसे प्रेरित करें...??? 


Ans motivation की सबसे जादा अवसयकता जिन्हें होती है उनमे से स्टूडेंट्स एक है, student👩‍🎓👩‍🎓 एसे प्रेरित रह सकते है ल
1. समय का महत्व पहचाने! 
2. समय का सदुपयोग् करे! 
3. लक्ष्य बनाये, फिर उसे हासिल करने के विचार मन मै जाग्रत करे, ऐसा करते ही आप motivate होगे! 
4. Anusasn मै रहे! 
4. विधार्थी के लिए ⚽🏀🏈⚾sports का बहुत महत्व है, खेल कूद मै भाग ले l इससे सारीरिक् और मानसिक स्वास्थ्य विकसित होगा ! 
ये 4 बाते आपनाने से, निसच्चित रूप से अच्छे result मिलेगेl


ब्लॉग -- प्रेरणा डायरी
Website -- prernadayari.blogspot.com
राइटर - kedar Lal. 

खुशी और उपहार कि भावनाओ से जुड़ा है -- क्रिसमस।

भूमिका:--


उपहार देना हमारी संस्कृति में गहराई से समाया हुआ है।  त्यौहार, जन्म दिन, विवाह या खुशी के विभिन्न अबसरों पर उपहार देने की परंपरा चली आ रही है। असल में उपहारों के माध्यम से पारस्परिक प्रेम-भाव का जुड़ाव होता है। क्रिसमस का यह त्योहार भी खुशी और उपहार देने कि परम्परा से जुड़ा हुआ है। यह खुशियों को बाँटने का एक तरीका है। देखा जाए तो भी उपहार देना भौतिक  वस्तुओ का  'आदान-प्रदान ही नहीं है बल्कि यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें भावनाओं को व्यक्त करने के साथ-साथ सामाजिक समबन्ध भी मजबूत होते हैं। उपहारों में बाँटना मधुरता फैलता है।ये प्रेमपूर्ण,  उपहार किसमस की एक बड़ी खासियत है। 


जब आप कुछ कह ना सकें तो गिफ्ट दें :-- 


यह  तो सर्व विदित है कि उपहार सामाजिक बंधन भी मजबूत करते हैं, खुशी देते हैं... हमारी अच्छी भावना को बड़ावा देता है। जानिए उपहार किस तरह से रिश्ते में मधुरता घुलता है।
""जब आप किसी को गिफ्ट देते हैं तो यह उन्हें स्पेशल फील करवाता है। कभी क्रभी व्यक्ति अपनी भावनाओं को बोल कर नहीं कह पाता, तो उपहार उन भानवनों को अभिव्यक्त करने में मदद करता है। यह एक तरह से भावनात्मक भाषा बन जाती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिक इमिलियन साइमन थैमस ने कहा   कि अपने अलाबा किसी और के लिए  पैसा खर्च करने से हमें ज्यादा खुशी मिलती है। लिए खुशी की तलाश है। उपहार लेना और देना दोनों से ही खुशी हासिल होती है। 
 

 किसमस् पर उपहार देने कि परंपरा :---

यूरोपियन इतिहास कर एंड्रू हान के अनुसार नव पाषाण काल ​​में 21 या 22 दिसंबर को लोग नए साल के जश्न के लिए एस्टोंहेंज जैसी जगह पर एक पर एकत्रित होकर एक दूसरे को उपहार देते थे। पूर्व रोमन काल में भी नए साल पर उपहार की परंपरा थी। लोग पवित्र पैड की शाखाएँ भी बेंट दिया करते  थे। 13वीं सदी में  हेनरी तृतीय के शासन काल से  सत्रहवीं शताब्दी तक नए साल पर उपहार की परंपरा जारी रही। 19 वी शताब्दी से उपहार देने की परंपरा नए साल से हटकर  किस्मत पूर्व संध्या पर सांता क्लॉज़ के आगमन से जुड़ी। 


25 दिसम्बर को ही क्यों मानते है, - क्रिसमस :---

ईसाई धर्म के अनुसार  प्रभु यीशु मसीह का जन्म  25 दिसंबर  को हुआ था, जिसके कारण इस दिन को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है। ईसा मसीह का जन्म मरियम के घर हुआ था। सिद्धांत यह है कि मरियम को एक सपना आया था। इस सपने में प्रभु के पुत्र जीसस के जन्म की भविष्यवाणी की गई थी।

बच्चों कि चिठिया--


छुटियो के मौसम की आपाधापी में हम कभी-कभी छोटी-छोटी बातें भूल जाते हैं जो हमें खुशियां देती हैं। काफी दिनों से निहान सांता क्लॉज़ को चिट्ठी लिखने  की जिद करा रहा है। वह पांच साल का है। खैर उसे यह नहीं पता कि सांता क्लॉज क्या असल में हैं या नहीं, लेकिन उसके अंदर एक उम्मीद जरूर है कि वह तकिए के नीचे अपना विश् लिखकर सोएगा तो अगली सुबह वन्ह जरूर पूरी होगी। ये नन्हीं-सी उम्मीद सिर्फ एक ही की नहीं, बल्कि करोड़ों बच्चों की होती है। सांता को लेटर राइटिंग आज से शुरू नहीं हुई, बल्कि दो सदी पूर्व से यह सिलसिला चला आ रहा है। आपको बताते है सांता को ख़त लिखने से जुड़ी ऐसी ही रोचक बातों के बारे में ...

 

  बच्चे ने पूछा क्या सच में आते हैं, सैंटा :--


सांता क्लॉज को 1821 में न्यूयॉर्क के संपादक एफ.पी.चर्च न अंग्रेजी मासिक पत्रिका में प्रकाशित कीया था । यह पत्र एक बच्चे के का नाम संप्रेषित किया गया था, जिसने अपनी मां से पूछा था कि सांता क्लॉज असल में है या नहीं। साता की तरह यह भी रहस्य है कि पहली बार साता को कब पत्र लिखा गया था। इसको लेकर अलग-अलग अवधारणाएँ हैं! साथ ही बात करें इन पत्रों की डिलिवरी की तो सुरुवात में अमेरिकी डाक सेवा इन  खतो डिलीवार करने योग्य नहीं मानती थी। थी  और उन्हें डेड लैंटर कार्यालय में भेज दिया जाता था।  20वीं सदी के अंत में दानदाताओं ने इन खतों के प्रति रुचि दिखाई। 


सैंटा क्लाज ने खत लिखकर सिखाया सिस्टाचार्:--

19वीं सदी की शुरुआत में सांता क्लॉज़.... एक हँसमुख व्यक्ति नहीं था, बल्कि उसकी छवि एक कठोर अनुषासक के रूप में थी। वह बच्चों को खत लिखकर सिस्थाचर्  का पाठ...पढ़ाता था। सांता के प्रारंभिक पत्र उपदेशात्मक होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में सेंट निकोलस डे की पहली छवि, जिसे 1810 में न्यूयॉर्क में हिस्टॉरिकल सोसाइटी की ओर से प्रकाशित किया गया था। फिर माता-पिता भी बच्चों को क्रिसमस पर पत्र लिख ने लगे  जिसमें पिछले वर्ष के उनके व्यवहार और उसमे सुधार के निर्देश शामिल थे। 

 इस तरह बनी आधुनिक संता क्लाज कि छवि :-- 


आज के 🎅आधुनिक सांता क्लॉज़ का अस्तित्व 1930 में आया था। हेडन सैंडब्लोm नामक एक कलाकार एक ठंडे पेय के विज्ञापन सांता के रूप में 33 वर्ष (1931 से लेकर 1964 ) तक दिखाई दिया। सांता का यह नया अवतार लोगों को खूब पसंद आया और आखिरकार इसे सांता का नया अवतार माना गया, जो आज तक लोगों के बीच काफी मशहूर है। इस तरह धीरे-धीरे क्रिसमस और सांता का साथ गहराता चला गया और सांता पूरी दुनिया में मरहूर होने के  साथ बच्चों के चहेते बन गये। 


ख़ुद बनाये प्यारा सा गिफ्ट :--


क्रिसमस पर अपने प्रियजनों  ओर बच्चों को ग्रिफ़्ट देना है; तो क्यू ना खुद  कुछ बनाकर दिया जाय।   ये गिफ्ट उन्हें बाजार के गिफ्ट से अच्छा लगेगा। 

आप किसी की पसंद को देखकर खुश हो सकते हैं। जैसे किसी को केक आदि बहुत पसंद है, तो घर पर केक जरूर बताएं। इसी तरह और भी खाने-पीने की चीजें बना सकते हैं। इसे घर पर ही पैक करें। पैकिंग में घर पर पडी हुई चीजों का उपयोग करे। 


परिवार में बढ़ता है प्रेम:----- 



क्रिसमस ट्री घर में प्रेम को बढ़ाता है। यह तनाव को कम करता है। जब सब मिलकर क्रिसमस ट्री सजाते है तो अच्छा महसूस होता । नकरामकता घर में हावी नहीं हो पाती। घर कि नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती हैं। इसे घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा खत्म होती । इसको सजाने में काम आने वाली चीजें घर में रौनक बढाती है और घर को खुशहाल बनती है। जैसे -- मोमबत्ती जलने से अच्छी ऊर्जा का प्रवेश होता । 


 इसलिए कहते है, मैरी क्रिसमस --
  

हैप्पी कि जगह मैरी क्रिसमस इसलिए बोला जाता है क्युकी इसमे भावनाएँ थोड़ी और जुड़ जाती है। यह प्यार जताने, आनन्द और जिंदादिली से जुडा है। साहित्य कार चार्स डिकेंस ने मैरी शब्द को लोकप्रिय बनाया। वही कुछ लोगो का मनना है कि इशू कि माँ का नाम मरियम था। जो मैरी के नाम से भी famous थी। 


Question 1. कब मनाया जाता है क्रिसमस..? 


क्रिसमस की शुरुआत चौथी शताब्दी में हुई मानी जाती है लेकिन इसकी तारीख 25 दिसंबर ईसा मसीह की जन्मतिथि के आधार पर नहीं चुनी गई थी। कहा जाता है कि पोप जूलियस 1 ने इसे तब चल रहे सर्दी के मौसम में मनाए जाने वाले त्योहारों को देखते हुए रणनीतिक रूप से यह तारीख दी थी ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग यह पर्व मनाने लगें। 

Question 2 क्यों मनाया जाता है क्रिसमस..??

क्रिसमस को बड़े दिन के नाम से भी जाना जाता ह। इसके पीछे कारण है कि यूरोप में कुछ लोग जो ईसाई समुदाय से नहीं थे वे सूर्य के उत्तरायण के मौके को त्योहार के रूप में 25 दिसंबर को मनाया करते थे । माना जाता था की 25 दिसंबर से दिन लंबा होना शुरू हो जाता है,। इसलिए इस तारीख को सूर्य के पुनर्जन्म का दिन माना जाता था । कहा जाता है कि इसी वजह से ईसाई समुदाय के लोगों ने भी 25 दिसंबर को प्रभु यीशु का जन्मदिन मनाने के तौर पर चुना और इस दिन क्रिसमस मनाने लगे ,इससे पहले ईस्टर ईसाई समुदाय के लोगों का खास त्योहार था। 


क्या चुनावों में बढ़ रही हैं भारतीय नारी की शक्ति..?



दोस्तों नमस्कार। 
 प्रेरणा डायरी (Motivation Dayri) के आज के इस अर्टिकल् में हम विश्लेसंन करेंगे हाल ही में हुए 5 राज्यों -- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छतीशगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव परिणामों कि। इन पांचो राज्यों के चुनाव को महिला मतदाताओं के नजरिये से देखने का प्रयाश करते हैं। चुनाव में नारी शक्ति कि बढ़ती ताकत किस राजनीतिक दल को फायदा पहुॅचा रही है,और किसको नुकसान। फ़िल्हाल सबसे संतोषजनक बात ये है कि, भारत कि लगभग आधी आबादी ( महिला) मतदान में अपनी हिसेदारी बढ़ा रही है, स्वतंत्र निर्णय ले रही है, अपने आप को ससक्त बना रही है। पर विधान सभा और संसद में भी ऐसी ही तस्वीर उभरकर आये, तब बात नहले पर दहले वाली हो। 

राजनीति  के कई कोण होते हैं। इसलिए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों का  विभिन्न कोणों से विश्लेषण आगे भी जारी रह सकता है, लेकिन खासकर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की प्रचंड जीत में आधी  आबादी की निर्णायक भूमिका मानी जा रही है। यह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से लेकर विभिन्न भाजपाई राज्य सरकारों तक सभी के द्वारा नारी सशक्तीकरण से लेकर महिलाओं को सीधे लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं का भी परिणाम है। बेशक तेलंगाना भी महिला केंद्रित योजनाओं और चुनावी वादों में अपवाद नहीं रहा, जहां कांग्रेस 'को जनादेश मिला है, पर भाजपाई जीत वाले राज्यों में महिला मतदाताओं का रुझान इस कोण के गहन विश्लेषण की जरूरत रेखांकित करता है। देश में सक्रिय राजनीति की तरह, मतदान प्रक्रिया में भी महिलाओं की भागीदारी बहुत उत्साहवर्धक नहीं रही है, पर वर्ष 2014 के बाद स्थिति तेजी से बदलती दिख रही है। मतदान करने वाली महिलाओं का  राजनीति में कई कोण होते  है। एक आंकड़े के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां 67.01 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया, वहीं मतदान करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 67.18 तक पहुंचा। आंकड़े बताते हैं कि महिला मतदाताओं का ज्यादा वोट भाजपा की झोली में जा रहा है। नरेंद्र मोदी जब भाजपा का चेहरा बने, तब 2014 के चुनाव में भाजपा को मात्र 29 प्रतिशत महिला वोट ही मिले थे, लेकिन आंकड़ों के मुताबिक 2019 के चुनाव में यह प्रतिशत बढ़ कर 36 तक पहुंच गया। 


यही नहीं, 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तो भाजपा को 46 प्रतिशत महिला मत मिले। पितृसत्तात्मक भारतीय समाज के मद्देनजर यह भी बड़ा सकारात्मक बदलाव है कि महिलाएं वोट देने के लिए दल और उम्मीदवार का चयन खुद कर रही हैं। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के नारे के अलावा सार्वजनिक शोचालय, बैंक खाते, हर घर नल से जल और उज्ज्वला जैसी योजनाएं महिला मतदाताओं के बड़े वर्ग को आकर्षित करने में सफल रही हैं। भाजपाई मुख्यमंत्रियों ने भी महिला मतदाताओं को प्रभावित-लाभान्वित करने वाली योजनाएं लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। शिवराज सिंह चौहान के कुल मिलाकर 18 साल के मुख्यमंत्रित्वकाल के विरुद्ध सत्ता विरोधी भावना की बड़ी चर्चा थी, पर परिणामों में पासा पलटा नजर आया। ज्यादातर राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि लाडली बहना और लाड़ली लक्ष्मी जेसी योजनाओं व सस्ते गैस सिलेंडर के उपहार का रिटर्न गिफ्ट मामा के संबोधन से लोकप्रिय शिवराज को मिला। उनके 18 साल के शासन में महिलाओं को लाभान्वित करने वाली 21 योजनाएं लाई गई। उन्हें भी अहसास था कि लाड़ली बहना व लाडली लक्ष्मी गेमचेंजर साबित हो सकती हैं, इसीलिए 2023-24 के बजट में इनके लिए क्रमशः 8000 करोड़ और 929 करोड़ रुपए का प्रावधान किया। ऐन चुनाव से पहले लाडली बहना के तहत मिलने वाली मासिक राशि 1000 से बढ़ा कर 1250 रुपए की गई और उसे 3000 तक बढ़ाने का वादा भी किया गया। 

 छत्तीसगढ़ में शायद ही किसी को भाजपा की - जीत का विश्वास रहा हो, पर उसने अंतिम दिनों में. महतारी वंदन योजना में हर विवाहित महिला को 1000 रुपए मासिक देने का वांदा ही नहीं किया,  बाकायदा लाखों फॉर्म भी भरवा लिए और कार्यकर्ताओं ने फोन करके योजना के फायदे विस्तार से बताना शुरू कर दिया। आशंकित भूपेश बघेल सरकार ने भी 1250 रुपए मासिक वाली गृह 


लक्ष्मी योजना का वायदा किया, पर उसे घर-घर तक पहुंचाने का समय नहीं बचा था। राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने महिलाओं समेत कमोबेश सभी जरूरतमंद वर्गों के लिए चुनाव से चंद महीने पहले लोक लुभावन योजनाओं घोषणाओं की बारिश-सी कर दी थी, पर महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के आंकड़ों के सहारे भाजपा ने बाजी पलट दी। एनसीआरबी के आंकड़ों के जरिये भाजपा समझाने में सफल रही कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में राजस्थान देश भर में दूसरे स्थान पर है, इसलिए हर जिले में एक महिला थाना खोलने, हर पुलिस थाने में महिला डेस्क बनाने और एंटी रोमियो स्क्‍्वाड गठित करने के उसके वादों पर भरोसा किया जाना चाहिए। 

निश्चय ही मोदी की लोकप्रियता के अलावा संगठनात्मक क्षमता-सक्रियता, उम्मीदवार चयन और आक्रामक चुनाव प्रचार जैसे अन्य मुद्दे भी कारगर रहे ही होंगे, पर ऐसा लगता है कि महिला मतदाताओं के रुझान ने इन परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाई है और उसका भी सर्वाधिक श्रेय प्रधानमंत्री मोदी के उस मास्टर स्ट्रोक को जाता है, जो उन्होंने नए संसद भवन में आहत विशेष संसद सत्र में 33% महिला आरक्षण के रूप में लगाया। 

आलोचकों को भी यह तो मानना पड़ेगा कि मोदी की जनता की नब्ज पर गजब की पकड़ है। वह जानते हैं कि कब किन परिस्थितियों में कौन-सा दांव ॒ निर्णायक हो सकता है। मोदी पुराने चुनावी रुझानों 

का भी बारीकी से विश्लेषण करते हैं। शायद इसलिए भी उन्होंने देश की आधी आबादी को ही 


भाजपा का नया वोट बैंक बनाने की सुनियोजित दीर्घकालीन रणनीति बनाई। दरअसल अतीत में भी महिला मतदाताओं को केंद्र में रख कर चले गए चुनावी दांव अक्सर सफल रहे हैं। फिल्‍मी परदे से राजनीति में आई और तमिलनाडु की कई बार मुख्यमंत्री रहीं जयललिता सही मायने में महिला सशक्तीकरण में अग्रणी ओर प्रेरक मिसाल रहीं। अपनी कल्याणकारी योजनाओं के चलते अम्मा संबोधन से लोकप्रिय हुई जयललिता ने महिलाओं को पेश आने वाली सामाजिक मुश्किलों का ठोस समाधान पेश करते हुए उनके लिए ससम्मान जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया। जयललिता से ही प्रेरित होकर पहले ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिला केंद्रित कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी सभी महिलाओं को 500 रुपए मासिक की लक्ष्मी भंडार योजना शुरू कर बर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में अपने विरुद्ध बिछाई गई भाजपा की बिसात को पलट दिया था। 

सत्ता की राजनीति के दबाव में ही सही, 'नारी शक्ति की भक्ति' चुनावी सफलता का ऐसा मंत्र बन गया है, जिसकी अनदेखी कोई दल-नेता नहीं कर पाएगा। आधी आबादी की स्वतंत्र निर्णय क्षमता के साथ मतदान में बढ़ती भागीदारी सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है, पर ऐसी सुखद तस्वीर संसद व विधानसभाओं में भी उभरनी चाहिए, जहां महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी बहुत कम है।

ब्लॉग नाम - प्रेरणा डायरी। 
Website - prernadayari.blogspot.com
ब्लॉग राइटर - kedar lal ( K. S. Ligree) 

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

सीखने के नियम और सिधांत ( Laws and Theories of learning) Learning -- part 2

नमस्कार दोस्तों LEARNING हमारें लिए बेहद मायने रखने वाला और सफ़लता दिलवाने वाला point है। इसीलिए प्रेरणा डायरी (motivation dayri) में कई पार्ट में इस पर चर्चा होगी। Learning --1 में आप लेर्निंग का अर्थ, परिभाषा, विशेषताओ और विधियों से रूबरू हुए। आज LEARNING--2 में नियम और सिधांतों कि बात होगी। शेष बचे सिंधान्त् हम part-3 में जानेंगे। तो आईये शुरू करते है। 

सीखने के नियम और सिद्धांत

[LAWS AND THEORIES OF LEARNING]

सीखना, जीवनपर्यन्त चलने वाली क्रिया है। व्यवहार में कोई भी अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन अधिगम है। यह पहले सीखी गई क्रिया या अनुभव का परिणाम है। सीखने के जिन नियमों तथा सिद्धान्तों की रचना विद्वानों ने की है, हम यहाँ उनका वर्णन कर रहे हैं।

सीखने के नियमो का महत्व
(IMPORTANCE OF LAWS OF LEARNING)
नियम, प्रकृति के अटल विधान हैं। पशु, पक्षी, पौधे, पुरुष- सभी प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं। इसी प्रकार, सीखने के भी कुछ नियम हैं। सीखने की प्रक्रिया इन्हीं नियमों के अनुसार चलती है। कुछ लेखकों ने इन नियमों को 'सिद्धान्तों' (Principles) की संज्ञा दी है। जब भी हम कुछ सीखते हैं, तब हम इनमें से कुछ नियमों का अनिवार्य रूप से अनुसरण करते हैं। इनके महत्व का उल्लेख करते हुए रायबर्न ने लिखा है- "यदि शिक्षण विधियों में इन नियमों या सिद्धान्तों का अनुसरण किया जाता है, तो सीखने का कार्य अधिक सन्तोषजनक होता है।"

    
मेरी "प्रेरणादायक डायरी" -- उम्मीदों कि उडान


थार्नडायक के सीखने के नियम
(THORNDIKE'S LAWS OF LEARNING)
पिछले पचास वर्षों से अमेरिका के मनोवैज्ञानिक, पशुओं पर परीक्षण करके 'सीखने' के नियमों की खोज में लगे हुए हैं। उन्होंने सीखने के जो नियम प्रतिपादित किये हैं, उनमें सबसे अधिक मान्यता ई. एल. थार्नडाइक (E. L. Thomdike) के नियमों को दी जाती है। उसने सीखने के तीन मुख्य नियम और पाँच गौण नियम प्रतिपादित किये हैं; यथा
(अ) मुख्य नियम  (Primary Laws) —–

(i) तत्परता का नियम। 

 (ii) अभ्यास का नियम। इस नियम के दो अंग है- उपयोग और अनुपयोग के नियम। 

(iii) प्रभाव या परिणाम का नियम । 


(ब) गौंड नियम (Secondary Laws) – 

(i) बहुप्रतिक्रिया का नियम। 

(ii) अभिवृत्ति या मनोवृत्ति का नियम। 

(it) आंशिक क्रिया का नियम। 

 (IV) आत्मीकरण का नियम। 

(v) सम्बन्धित परिवर्तन का नियम । 

हम इन नियमों का क्रमबद्ध परिचय दे रहे हैं, यथा

 1. तत्परता का नियम (Law of Readiness) - 

इस नियम का अभिप्राय यह है कि यदि हम किसी कार्य को सीखने के लिए तैयार या तत्पर होते हैं, तो हम उसे शीघ्र ही सीख लेते हैं। तत्परता में कार्य करने की इच्छा निहित रहती है। यदि बालक में गणित के प्रश्न करने की इच्छा है, तो वह उनको करता है, अन्यथा नहीं। इतना ही नहीं, तत्परता के कारण वह उनको अधिक शीघ्रता और कुशलता से करता है। तत्परता उसके ध्यान को कार्य पर केन्द्रित करने में सहायता देती है, जिसके फलस्वरूप वह उसे संपन करने में सफल होता है। भाटिया, (Bhatia, p. 210) का कथन है-"तत्परता या किसी कार्य के लिए तैयार होना,  आधा विजय कर लेना है।" 

2. अभ्यास का नियम (Law of Use or Exercise)

 अभ्यास कुशल बनाता है (Practice makes perfect) | अभ्यास करते रहते हैं, तो हम उसे सरलतापूर्वक करना सीख  जाते हैं। हम बिना अभ्यास किये साइकिल पर चढ़ने में या कोई खेल में सफ़ल नही  हो सकते हैं। कोलेसनिक  के अनुसार-"अभ्यास का किसी कार्य की पुनरावृत्ति, पुनर्विचार या अभ्यास के औचित्य को सिद्ध करता है।" 

 3. अनभ्यास का नियम (Law of Disuse)

-इस नियम का अर्थ यह है कि सीखे हुए कार्य का अभ्यास नहीं करते हैं, तो हम उसको भूल जाते हैं। अभ्यास के माध्यम से ही हम उसे स्मरण रख सकते हैं। डगलस एवं हॉलैण्ड  का कथन है-"जो कार्य बहुत समय तक किया या दोहराया नहीं जाता है, वह भूल जाता है। इसी को अनभ्यास का नियम कहते हैं।" 

4. परिणाम या सन्तोष का नियम 

(Law of Effect or Satisfaction) इस नियम के अनुसार, हम उस कार्य को सीखना चाहते हैं, जिसका परिणाम हमारे लिए हितकर होता है, या जिससे हमें सुख और सन्तोष मिलता है। यदि हमको किसी कार्य को करने परेसानी या कष्ट होता है, तो हम उसको करते या सीखते नहीं हैं। वाशबर्न (Washburne, Crow and Crow, p. 231) के अनुसार-"जब सीखने का अर्थ किसी उद्देश्य या इच्छा को सन्तुष्ट करना होता है, तब सीखने में सन्तोष का महत्वपूर्ण स्थान होता है।" 

5. बहु-प्रतिक्रिया का नियम (Law of Multiple Response)  

 इस नियम का अभिप्राय यह है कि जब हम कोई नया कार्य करना सीखते हैं, तब उसके प्रति अनेक और विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करते हैं। दूसरे शब्दों में, हम विविध प्रकार के उपायों और विधियों का प्रयोग करके उस कार्य में सफलता प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। कुछ समय तक प्रयत्न करने के बाद हमें उस कार्य को करने की ठीक विधि या उपाय मालूम हो जाता है। 'प्रयत्न और भूल' द्वारा 'सीखने का सिद्धान्त' इसी नियम पर आधारित है। 

6. मनोवृत्ति का नियम (Law of Disposition)-

इस नियम का तात्पर्य यह है कि जिस कार्य के प्रति हमारी जैसी अभिवृत्ति या मनोवृत्ति होती है, उसी अनुपात में हम उसको सीखते हैं। यदि हम मानसिक रूप से किसी कार्य को करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो या तो हम उसे करने में असफल होते हैं, या अनेक त्रुटियाँ करते हैं या बहुत विलम्ब से करते हैं। यही कारण है कि शिक्षक, प्रेरणा देकर बालकों को नवीन ज्ञान को ग्रहण करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करते है। 

7. आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity)-

इस नियम का अनुसरण करके, हम जिस कार्य को करना चाहते हैं, उसे छोटे-छोटे अंगों या भागों में विभाजित कर लेते हैं। इस प्रकार का विभाजन, कार्य को सरल और सुविधाजनक बना देता है। हम उन छोटे-छोटे अंगों को शीघ्रता और सुगमता से करके सम्पूर्ण कार्य को पूरा करते हैं। इस नियम पर ' अंश से पूर्ण की ओर' का शिक्षण का सिद्धान्त आधारित किया जाता है। शिक्षक सम्पूर्ण विषय-सामग्री को छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित करके छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है। 


8. आत्मीकरण का नियम (Law of Assimilation)- 

इस नियम का अभिप्राय यह है कि हम जो भी नया ज्ञान प्राप्त करते हैं, उसका आत्मीकरण कर लेते हैं या उसे आत्मसात् कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, हम नवीन ज्ञान को अपने पूर्व ज्ञान का स्थायी अंग बना लेते हैं। यही कारण है कि जब शिक्षक, बालक को कोई नई बात सिखाता है, तब उसका पहले सीखी हुई बात से सम्बन्ध स्थापित कर देता है। 

9. सम्बन्धित परिवर्तन का नियम (Law of Associative Shifting) 

इस नियम का अभिप्राय है- पहले कभी की गई क्रिया को उसी के समान दूसरी परिस्थिति में उसी प्रकार करना। इसमें क्रिया का स्वरूप तो वही रहता है, पर परिस्थिति में परिवर्तन हो जाता है। यदि माँ का बच्चा मर जाता है, तो वह उसकी वस्तुओं को उसी प्रकार सीने से लगाती है, जिस प्रकार वह बच्चे को लगाती थी। प्रेमिका की अनुपस्थिति में प्रेमी उसके चित्र से उसी प्रकार बातें करता है, जिस प्रकार वह उससे करता था। 


सीखने के अन्य महत्वपूर्ण नियम 

(OTHER IMPORTANT LAWS OF LEARNING) 

1. उद्देश्य का नियम (Law of Purpose)

-इस नियम का अर्थ यह है कि यदि कोई कार्य हमारे उद्देश्य को पूरा करता है, तो हम उसे शीघ्र ही सीख लेते हैं। रायबर्न  का मत है-"व्यक्ति का किसी कार्य को करने का उद्देश्य जितना अधिक प्रबल होता है, उतना ही अधिक उसमें उस कार्य को करने की तत्परता होती है। " 

2. परिपक्वता का नियम (Law of Maturation) 

इस नियम का सार यह है कि हम किसी बात को तभी सीख सकते हैं, जब हममें उसे सीखने की शारीरिक और मानसिक परिपक्वता होती है। दस वर्ष के बालक को नक्षत्र विज्ञान की शिक्षा देना व्यर्थ है। वह इस विषय को अपनी उसी अवस्था में समझ सकता है, जब उसकी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का आवश्यक विकास हो जाय। 

3. निकटता का नियम (Law of Recency) 

इस नियम का तात्पर्य यह है कि जो कार्य, जितने निकट भूत में या कम समय पहले सीखा गया है, वह उतनी ही अधिक सरलता से फिर किया जा सकता है। 

4. अभ्यास-वितरण का नियम (Law of Distribution of Practice)

 यह नियम हमें बताता है कि किसी कार्य को लगातार सीखने के बजाय कुछ-कुछ समय के बाद थोड़ी-थोड़ी देर में सीखना अधिक अच्छा है। डगलस एवं हालैण्ड (Douglas and Holland. p. 181) के शब्दों में हम कह सकते हैं-"यदि एक व्यक्ति किसी कार्य का एक दिन में 60 या 80 मिनट तक लगातार अभ्यास न करके, 4 दिन तक रोज उसका 15 मिनट अभ्यास करे, तो वह उसे अधिक सीख सकता है।" 

5. बहु-अधिगम का नियम (Law of Multiple Learning)-

इस नियम का अर्थ स्पष्ट करते हुए रॉयबर्न (Ryburn, p. 232) ने लिखा है- "हम एक समय में केवल एक बात कभी नहीं सीखते हैं। हम सदैव बहुत-सी बातों को साथ-साथ सीखते हैं।" विद्यालय में बालक न केवल पाठ में आने वाली बातों को सीखता है, वरन् शिक्षक के चरित्र से, छात्रों की संगति से और अपने वातावरण से भी बहुत सी बातें सीखता है। 

सीखने के सिद्धांत

(THEORIES OF LEARNING) 

हिलगार्ड (Hilgard) ने अपनी पुस्तक ""थ्योरीज ऑफ लर्निंग"" (Theories of Learning) में दस से भी अधिक सीखने के सिद्धान्तों का वर्णन किया है। इनके सम्बन्ध में यह निश्चय करना कठिन है कि कौन-सा सिद्धान्त ठीक और कौन-सा गलत है। फ्रेंडसन (Frandson) ने ठीक ही लिखा है-"सिद्धान्त न तो ठीक होते हैं और न गलत। वे केवल कुछ विशेष कार्यों के लिए कम या अधिक लाभप्रद होते हैं।" इस कथन को ध्यान में रखकर हम सीखने के अधिक लाभप्रद पाँच सिद्धान्तों का वर्णन कर रहे हैं; यथा

1. थार्नडाइक का सीखने का सिद्धान्त (Thorndike's Theory of Learning) 

2. सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त (Conditioned Response Theory) 

3. प्रबलन का सिद्धान्त (Reinforcement Theory) 

4. स्किनर का सीखने का सिद्धान्त (Skinner's Theory of Learning) 

5. सूझ का सिद्धान्त (Insight Theory) 

(1) सिद्धान्त का अर्थ- 

जब व्यक्ति कोई कार्य सीखता है, तब उसके सामने एक विशेष स्थिति या उद्दीपक (Stimulus) होता है, जो उसे एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया (Response) करने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार, एक विशिष्ट उद्दीपक का एक विशिष्ट प्रतिक्रिया से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, जिसे उद्दीपक प्रतिक्रिया सम्बन्ध (S-R Bond) द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। इस सम्बन्ध के फलस्वरूप, जब व्यक्ति भविष्य में उसी उद्दीपक का अनुभव करता है, तब वह उससे सम्बन्धित उसी प्रकार की प्रतिक्रिया या व्यवहार करता है। 

(2) थार्नडाइक द्वारा सिद्धान्त की व्याख्या

थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए लिखा है-"सीखना, सम्बन्ध स्थापित करना है। सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य, मनुष्य का मस्तिष्क करता है।" ( Learning is connecting. The mind is man's connection system. ) 

थार्नडाइक की धारणा है-सीखने की प्रक्रिया में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का विभिन्न मात्राओं में सम्बन्ध होना आवश्यक है। यह सम्बन्ध विशिष्ट उद्दीपकों

सीखने के सिद्धांत

(THEORIES OF LEARNING) 

1. थार्नडाइक का सीखने का सिद्धान्त (THORNDIKE'S THEORY OF LEARNING) 

ई. एल. थार्नडाइक (E. L. Thorndike) ने 1913 में प्रकाशित होने वाली अपनी पुस्तक शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology) में सीखने का एक नवीन सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है; 

थर्नडाइक की धारणा है-सीखने की प्रक्रिया में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का विभिन्न मात्राओं में सम्बन्ध होना आवश्यक है। यह सम्बन्ध विशिष्ट उद्दीपकों और विशिष्ट प्रतिक्रियाओं के कारण स्नायुमण्डल (Nervous System) में स्थापित होता है। इस सम्बन्ध की स्थापना, सीखने की आधारभूत शर्त है। यह सम्बन्ध अनेक प्रकार का हो सकता है। इस पर प्रकाश डालते हुए बिगी एवं हण्ट (Bigge and Hunt) (p. 260) ने लिखा है-"सीखने की प्रक्रिया में किसी मानसिक क्रिया का शारीरिक क्रिया से, शारीरिक क्रिया का मानसिक क्रिया से, मानसिक क्रिया का मानसिक क्रिया से या, शारीरिक क्रिया का शारीरिक क्रिया से सम्बन्ध होना आवश्यक है।" 

(3) थार्न दायक का प्रयोग ----थार्नडाइक ने अपने सीखने के सिद्धान्त की परीक्षा करने के लिए अनेक पशुओं और बिल्लियों( cat) पर प्रयोग किए। उसने अपने एक प्रयोग में एक भूखी बिल्ली को पिंजड़े में बंद कर दिया। पिजड़े का दरवाजा एक खटके के दबने से खुलता था।. उसके बाहर भोजन रख दिया। बिल्ली के लिए भोजन उद्दीपक था। उद्दीपक के कारण उसमें प्रतिक्रिया आरम्भ हुई। उसने अनेक प्रकार से बाहर निकलने का प्रयत्न किया। एक बार संयोग से उसका पंजा खटके पर पड़ गया। फलस्वरूप, वह दब गया और दरवाजा खुल गया। थार्नडाइक ने इस प्रयोग को अनेक बार दोहराया। अन्त में, एक समय ऐसा आ गया, जब बिल्ली किसी प्रकार की भूल न करके खटके को दबाकर पिंजड़े का दरवाजा खोलने लगी। इस प्रकार उद्दीपक और प्रतिक्रिया में सम्बन्ध (S-R Bond) स्थापित हो गया। थार्नडाइक (Thorndike) ने सम्बन्धवाद के सिद्धान्त सीखने के क्षेत्र में प्रयास तथा त्रुटि (Trial and Error) को विशेष महत्व दिया है। प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि जब हम किसी काम को करने में त्रुटि या भूल करते हैं और बार-बार प्रयास करके त्रुटियों की संख्या कम या समाप्त की जाती है तो यह स्थिति प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना कहलाती है। वुडवर्थ (Woodworth, p. 493) ने लिखा है-"प्रयास एवं त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिये अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं जिनमें अधिकांश गलत होते हैं।" 


(4) थार्नडाइक का प्रयोग (Experiment by Thorndike) प्रयास तथा त्रुटि के सिद्धान्त के प्रवर्तक थार्नडाइक ने एक भूखी बिल्ली को पिजड़े में बन्द करके यह प्रयोग किया। भूखी बिल्ली पिंजड़े के बाहर रखा मछली का टुकड़ा प्राप्त करने हेतु, पिंजड़े से बाहर आने के अनेक त्रुटिपूर्ण प्रयास करती रही और अंततः वह पिंजड़ा खोलना सीख गई। बिल्ली के समान बालक भी चलना, जूते पहनना, चम्मच से खाना आदि क्रियाएँ सीखते हैं। वयस्क लोग भी ड्राइविंग, टैनिस, क्रिकेट आदि खेलना, टाई की गांठ बाँधना इसी सिद्धान्त अनुसार सीखते हैं। 

(5) सिधांत का शिक्षा में महत्व   (Importance in Education)-- शिक्षा में प्रयास तथा त्रुटि का सिद्धान्त अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस सिद्धान्त का महत्व इस प्रकार है

(i) बड़े तथा मन्द बुद्धि बालकों के लिए यह सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी है।

 (ii) इस सिद्धान्त से बालकों में धैर्य तथा परिश्रम के गुणों का विकास होता है।

 (iii) बालकों में परिश्रम के प्रति आशा का संचार करता है। 

(iv) इस सिद्धान्त के कार्य की धारणाएँ (Concepts) स्पष्ट हो जाती है। 

(v) अनुभवों का लाभ उठाने की क्षमता का विकास होता है। 

(vi) को एवं को (Crow and Crow) के अनुसार- "गणित, विज्ञान तथा समाजशास्त्र जैसे गम्भीर चिन्तन वाले विषयों को सीखने में यह सिद्धान्त उपयोगी है।"

 (vii) गैरिसन व अन्य (Garrison and Others) के अनुसार, इस सिद्धान्त का सीखने की प्रक्रिया में विशेष महत्व है। समस्या समाधान पर यह बल देता है। 

(viii) कोलसनिक (Kolesnik) के शब्दों में-लिखना, पढ़ना, गणित सिखाने में यह सिद्धान्त उपयोगी है। बीसवीं सदी में अमरीकी शिक्षा पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। 


(6) सिधांत के गुण और विशेषताये --  सम्बन्धवाद्' या 'उद्दीपक प्रतिक्रिया' सिद्धान्त की विशेषताएँ निम्नांकित हैं

यह सिद्धान्त, उद्दीपक और प्रतिक्रिया के सम्बन्ध को सीखने का आधारभूत कारण मानता है। 

(ii) यह सिद्धान्त, शिक्षण में प्रेरणा (motivation)को विशेष महत्व देता है। 

(iii) यह सिद्धान्त, इस बात पर बल देता है कि सीखना एक असम्बद्ध प्रक्रिया नहीं है, वरन् प्रत्यक्ष, गत्यात्मक, ज्ञानात्मक और भावात्मक अंगों का पुंज है।

(iv) इस सिद्धान्त के अनुसार, जो व्यक्ति उद्दीपकों और प्रतिक्रियाओं में जितने अधिक सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, उतना ही अधिक बुद्धिमान वह हो जाता है। इस सिद्धान्त के आधार पर थार्नडाइक ने सीखने के तीन मुख्य नियम प्रतिपादित किये-तत्परता का नियम, अभ्यास का नियम, प्रभाव या परिणाम का नियम। 


(7) सिधांत के दोष--  -थार्नडाइक के इस सिद्धान्त में निम्नलिखित स्पष्ट दोष हैं।

(!)यह सिद्धान्त व्यर्थ के प्रयत्नों पर बल देता है, जिनके कारण सीखने में बहुत समय नष्ट होता है। 

(ii) यह सिद्धान्त किसी क्रिया को सीखने की विधि को बताता है, पर उसे सीखने का कारण नहीं बताता है। 

(iii) यह सिद्धान्त, की क्रिया को यांत्रिक बना देता है और मानव के विवेक, की अवहेलना करता है। 

(iv) जब एक कार्य को एक विशिष्ट विधि से एक ही बार में सीखा जा सकता है, तब उसका बार-बार प्रयास करके सीखना व्यर्थ है। 



2. प्रबलन - सिधांत ( reinforcement theory) 

दोस्तों थार्न डाएक के बाद जो सबसे महत्व पूर्ण सिद्धांत सामने आया वह है - "हल का prabalan सिद्धांत"

(REINFORCEMENT THEORY) "प्रबलन-सिद्धान्त" का प्रतिपादन सी. एल. हल (C. L. Hull)नामक अमरीकी मनोवैज्ञानिक ने 1915 में अपनी पुस्तक "Principles of Behaviour" में किया था। उसका यह सिद्धान्त थार्नडाइक (Thorndike) और पावलव (Pavloy) के सिद्धान्तों पर आधारित 

(1) सिद्धान्त का अर्थ-हल (Hell) के सीखने के सिद्धान्त का अर्थ स्पष्ट करते हुए स्टोन्स ने लिखा है-सीखने का आधार आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया है। यदि कोई कार्य, पशु या मानव की किसी आवश्यकता को पूर्ण करता है, तो वह उसको सीख लेता है। 'आवश्यकता की पूर्ति' (Need satisfaction) के लिए हल (Hall) ने 'आवश्यकता की कमी' (Need Reduction) का प्रयोग किया है। 

'आवश्यकता की पूर्ति' --    किस प्रकार सीखने की प्रक्रिया का आधार है, इसको स्टोन्स (Stones) ने एक उदाहरण देकर स्पष्ट किया है। एक भूखा पशु पिंजड़े में बन्द है। पिंजड़े के बाहर भोजन रखा है। पिंजड़ा खटके को दबाने से खुलता है। अपनी भूख को सन्तुष्ट करने के लिए पशु क्रियाशील होता है। भोजन उसकी क्रियाशीलता को बलवती बनाता है अर्थात् प्रबलन (Reinforce) करता है। अतः वह पिंजड़े से बाहर निकलने के लिए सभी प्रकार के प्रयास करता है। अपने प्रयासों के फलस्वरूप वह खटके को दबाकर बाहर निकलना सीख जाता है। - इस प्रकार, भोजन की आवश्यकता को सन्तुष्ट करने की प्रक्रिया द्वारा वह पिंजड़े को खोलना सीख जाता है। सीखने का आधार यहीं है। हल (Hull) का कथन है- "सीखना, आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया के द्वारा होता है।" 

"Learning takes place through a process of need reduction

   आओ मिलकर सीखें -- अपनी प्रेरणादायक डायरी को। 


(2) सिद्धान्त के गुण तथा विशेषताएँ-हल (Hull) के सीखने के सिद्धान्त की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं

1. आदर्श व सर्वश्रेष्ठ सिद्धान्त (Ideal and Most Elegant Theory) स्किनर ने इस सिद्धान्त को वैज्ञानिक होने के कारण आदर्श सिद्धान्त माना है। और लिखा है-"अब तक सीखने के जितने भी सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं, उनमें यह सर्वश्रेष्ठ है। 

2. चालक-न्यूनता सिद्धान्त (Drive Reduction Theory) स्किनरके अनुसार-"हल का सीखने का सिद्धान्त चालक-न्यूनता का सिद्धान्त है।" (“Hull's theory of learning is a drive-reduction theory.") 

हल (Hull) का कहना है कि जब प्राणी की कोई आवश्यकता पूर्ण नहीं होती है, तब उसमें असंतुलन उत्पन्न हो जाता है; उदाहरणार्थ- भोजन की आवश्यकता पूर्ण न होने पर प्राणी में तनाव उत्पन्न हो जाता है, जिसके फलस्वरूप उसकी दशा असंतुलित हो जाती है। साथ ही, भूख का चालक (Drive) उसे भोजन प्राप्त करने के लिए क्रियाशील बना देता है। कुछ समय के बाद वह ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है, जब उसकी भोजन की आवश्यकता सन्तुष्ट हो जाती है। इसके फलस्वरूप, भूख के चालक की शक्ति कम हो जाती है। 

3. उद्दीपक प्रतिक्रिया सिद्धान्त (S. R. Theory) स्किनर (Skinner) के अनुसार- "हल का सिद्धान्त, उद्दीपक-प्रतिक्रिया का सिद्धान्त है।” (“Hull's Theory is a stimulus-response theory.”)। भूख या भोजन-उद्दीपक का कार्य करता है, जिसके कारण व्यक्ति विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियायें करता है। 

4. प्राथमिक व द्वितीयक प्रबलन (Primary and Secondary Reinforcement) - हल (Hull) ने प्रबलन के दो रूप बताये हैं, जो विभिन्न अवस्थाओं में दृष्टिगोचर होते हैं। भोजन भूख के चालक को प्रबल बनाता है। यह अवस्था प्राथमिक प्रबलन (Primary Reinforcement) की है। पर भूख उस समय तक शान्त नहीं होती है, जब तक भोजन खा नहीं लिया जाता है। अतः भोजन खाने से पहले भूख का चालक फिर प्रबल हो जाता है। यह अवस्था द्वितीयक. प्रबलन (Secondary Reinforcement) की है। 

5. प्रेरणा पर बल (Stress on Motivation) यह सिद्धान्त बालकों के शिक्षण में प्रेरणा पर अत्यधिक बल देता है, क्योंकि बालकों को प्रेरित करके ही उनके ज्ञान की आवश्यकता को पूर्ण किया जा सकता है। 

6. बालकों की क्रियाओं व आवश्यकताओं का सम्बन्ध (Association of Children's Activities and Needs) 

इस सिद्धान्त की सबसे महत्वपूर्ण देन यह है कि यह बालकों की क्रियाओं और आवश्यकताओं में सम्बन्ध स्थापित किये जाने पर बल देता है। उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, उनकी क्रियाओं का वास्तविक जीवन से सम्बन्ध होना चाहिए। आधुनिक शिक्षा इन दोनों तथ्यों को स्वीकार करती है। 

(3) निष्कर्ष- आज तक प्रतिपादित किये जाने वाले सीखने के सिद्धान्तों में हल (Hull) के सिद्धान्त को सर्वोत्कृष्ट स्वीकार करते हुए स्किनर (Skinner, B-p. 406) ने लिखा है-"हल का कहना है कि सीखने का कारण किसी आवश्यकता का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूर्ण होना होता है। अतः कुछ दृष्टियों से आधुनिक शिक्षा को हल के सिद्धान्त में एक सैद्धान्तिक आधार मिल जाता है।" 


Blog -- प्रेरणा डायरी

Website - prernadayari.blogspot.com

Writer -- केदार लाल ( k. S. Ligree) 

प्रेरणा के प्रकार और स्रोत

Date 1 july 2023
Hindaun, Rajasthan
दोस्तों, नमस्कार। प्रेरणा डायरी  कि 17 वी पोस्ट, motivation के प्रकार और स्रोत पर आधारित है। यह जानना भी बेहद जरुरी है कि  प्रेरणा कितने प्रकार की होती है..? और इसके स्रोत कौन कौन से है..? अर्थात किन साधनों के दुवारा हम इसे प्राप्त कर सकते है। 

प्रेरणा के प्रकार
(KINDS OF MOTIVATION) 

प्रेरणा दो प्रकार की होती है-
(1) सकारात्मक, या आंतरिक। 
(2) नकारात्मक या बाहिय्। 


1. सकारात्मक प्रेरणा :- (Positive Motivation)-इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से करता है। इस कार्य को करने से उसे सुख और सन्तोष प्राप्त होता है। शिक्षक विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन और स्थितियों का निर्माण करके बालक को साकारात्मक प्रेरणा प्रदान करता है। इस प्रेरणा को आन्तरिक प्रेरणा (Instrinsic Motivation) भी कहते हैं। 

2. नकारात्मक प्रेरणा :--- (Negative Motivation)—इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से न करके, किसी दूसरे की इच्छा या बाह्य प्रभाव के कारण करता है। इस कार्य को करने से उसे किसी वांछनीय या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है। शिक्षक-प्रशंसा, निन्दा, पुरस्कार, प्रतिद्वन्द्विता आदि का प्रयोग करके बालक को नकारात्मक प्रेरणा प्रदान करता है। इस प्रेरणा को बाह्य प्रेरणा (Extrinsic Motivation) भी कहते हैं। 

दोस्तों अगर इन दोनों प्रकारों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये, तो नाम से ही आपको एस्पस्ट् हो रहा होगा कि, सकारात्मक अर्थात आंतरिक प्रेरणा उतम् होती है। इसके तहत् एक बालक या कोई व्यक्ति suwtah ही प्रेरित रहता है और लम्बे समय तक प्रेरित रहता है । ये बाहरी motivation से बेहतर है। 

 प्रेरणा के स्रोत
(SOURCES OF MOTIVATION) 

प्रेरणा के निम्नांकित 4 स्रोत हैं

1. आवश्यकताएँ (Needs) 
2. चालक (Drives) 
3. उद्दीपन (Incentives) 
4. प्रेरक ( Motives) 

1 . आवसएकताएँ  (NEEDS) 

प्रत्येक प्राणी की कुछ आधारभूत आवश्यकताएँ होती हैं, जिनके अभाव में उसका अस्तित्व असम्भव है, जैसे- जल, वायु, भोजन आवास आदि। यदि उसकी कोई आवश्यकता पूर्ण नहीं होती है, तो उसके शरीर में तनाव (Tension) और असंतुलन उत्पन्न हो जाता है, जिसके फलस्वरूप उसका क्रियाशील होना अनिवार्य हो जाता है, उदाहरणार्थ, जब प्राणी की भूख लगती है, तब उसमें तनाव उत्पन्न हो जाता है, जिसके फलस्वरूप वह भोजन की खोज करने के लिए क्रियाशील हो जाता है। जब उसे भोजन मिल जाता है, तब उसकी क्रियाशीलता और उसके साथ ही उसके शारीरिक तनाव का अन्त हो जाता है। अतः हम बोरिंग, लैंगफील्ड एवं बीएंड (Boring, Langfeld and Weld, p. 114) के शब्दों में कह सकते हैं-"आवश्यकता, शरीर की कोई जरूरत या अभाव है, जिसके कारण शारीरिक असन्तुलन या तनाव उत्पन्न हो जाता है। इस तनाव में ऐसा व्यवहार उत्पन्न करने की प्रवृत्ति होती हैं जिससे आवश्यकता के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला असन्तुलन समाप्त हो जाता है।" 

2. चालक

(DRIVES) 

प्राणी की आवश्यकताएँ उनसे सम्बन्धित चालकों को जन्म देती हैं। उदाहरणार्थ, भोजन प्राणी की आवश्यकता है। यह आवश्यकता उसमें 'भूख-चालक' (Hunger-Drive) को जन्म देती है। इसी प्रकार पानी की आवश्यकता, 'प्यास-चालक' की उत्पत्ति का कारण होती है। 'चालक', प्राणी को एक निश्चित प्रकार की क्रिया या व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है, उदाहरणार्थ, भूख चालक उसे भोजन की खोज करने के लिए प्रेरित करता है। बॉरिंग के शब्दों मै  -- "चालक, शरीर की एक आन्तरिक क्रिया या दशा है, जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार के लिए प्रेरणा प्रदान करती है।" 

3. उद्दीपन
 (INCENTIVES) 

किसी वस्तु की आवश्यकता उत्पन्न होने पर उसको पूर्ण करने के लिए 'बालक' उत्पन्न होता है। जिस वस्तु से यह आवश्यकता पूर्ण होती है, उसे 'उद्दीपन' कहते हैं, उदाहरणार्थ, भूख एक चालक है, और 'भूख-चालक' को भोजन सन्तुष्ट करता है। अत: 'भूख-चालक'  के लिए भोजन 'उद्दीपन'  है। इसी प्रकार, 'काम चालक' (Sex-Drive) का उद्दीपन है-दूसरे लिंग का व्यक्ति, क्योंकि उसी से यह चालक सन्तुष्ट होता है, अत: हम बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring. Langield and Weld, p. 123) के शब्दों में कह सकते हैं-"उरीपन की परिभाषा उस वस्तु, स्थिति या क्रिया के रूप में की जा सकती है, जो व्यवहार को  उत्साहित और निर्देशित करती है।" 

आवश्यकता, चालक व उद्दीपन का सम्बन्ध RELATION OF NEED, DRIVE AND INCENTIVE) 

हमने आवश्यकता, चालक और उद्दीपन के बारे में जो कुछ लिखा है, उससे सिद्ध हो जाता है कि इन तीनों का एक-दूसरे से सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध को आवश्यकता चालक उद्दीपक' (Need Drive Incentive) सूत्र से व्यक्त करते हुए हिलगार्ड ने लिखा है-"आवश्यकता, चालक को जन्म देती है। चालक बढ़े हुए तनाव की दशा है, जो कार्य और प्रारम्भिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है। उद्दीपन बाह्य वातावरण की कोई वस्तु होती है, जो आवश्यकता की सन्तुष्टि करती है और इस प्रकार क्रिया के द्वारा चालक को कम कर देती है।" 

"Need gives rise to drive. Drive is a state of heightened tension leading to activity and preparatory behaviour. The incentive is something in the external environment that satisfies the need and thus reduces the drive through consummatory activity" 
- Hilgard l 


4. प्रेरक (MOTIVES) 

'प्रेरक' अति व्यापक शब्द है। इसके अन्तर्गत 'उद्दीपन' (Incentive) के अतिरिक्त चालक, तनाव, आवश्यकता-सभी आ जाते हैं। गेट्स व अन्य के अनुसार विभिन्न स्वरूप हैं और इनको विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, जैसे- आवश्यकताएँ, इच्छाएँ, तनाव, स्वाभाविक स्थितियाँ, निर्धारित प्रवृत्तियाँ, अभिवृत्तियाँ, रुचियाँ, स्थायी उदीपक और इसी प्रकार के अन्य नाम।" 

"Motive take a variety of forms and are designated by many different terms, such as nceds, desires, tensions, sets, determining tendencies, attitudes, interests, persisting stimuli and so on.” -Gates and Others (p. 301) 
'प्रेरक' क्या है ? इस सम्बन्ध में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। कुछ इनको जन्मजात या अर्जित शक्तियाँ मानते हैं, कुछ इनको व्यक्ति की शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दशाएँ मानते हैं और कुछ इनको निश्चित दिशाओं में कार्य करने की प्रवृत्तियाँ मानते हैं। पर सभी विद्वान इस बात से सहमत हैं कि 'प्रेरक' व्यक्ति को विशेष प्रकार की क्रियाओं या व्यवहार करने के लिए उत्तेजित करते हैं, यथा

1. ब्लेयर, जोन्स व सिम्पसन-  " प्रेरक हमारी आधारभूत आवश्यकताओं से उत्पन्न होने वाली वे शक्तियाँ हैं जो व्यवहार को दिशा और उद्देश्य प्रदान करती ।। 

2. एलिस क्रो-   “प्रेरकों को ऐसी आन्तरिक दशाएँ या शक्तियाँ माना जा सकता है, जो व्यक्ति को निश्चित लक्ष्यों की ओर प्रेरित करती

 3. गेट्स व अन्य-  "प्रेरक, प्राणी के भीतर की वे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दशाएँ हैं, जो उसे निश्चित विधियों के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करती।। 201) प्रेरक, व्यापक शब्द है। इसके विभिन्न रूप हैं। प्रेरकों को आवश्यकता, इच्छा, तनाव, स्वाभाविक स्थितियाँ, निर्धारित प्रवृत्तियाँ, रुचि, स्थायी उद्दीपक आदि नामों से भी पुकारा जाता है। प्रेरक वास्तव में उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर व्यक्ति को ले जाते हैं। 
 
प्रेरकों का वर्गीकरण
(CLASSIFICATION OF MOTIVES) 

प्रेरकों का वर्गीकरण अनेक विद्वानों के द्वारा किया गया है, जिनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण 
1. मैसलो (Maslow) के अनुसार-(1) जन्मजात व (2) अर्जित। 
2. थामसन (Thomson) के अनुसार-(1) स्वाभाविक व (2) कृत्रिम |
3. गैरेट (Garrett) के अनुसार-(1) जैविक (2) मनोवैज्ञानिक व (3) सामाजिक 1. जन्मजात प्रेरक (Innate Motives)—ये प्रेरक, व्यक्ति में जन्म से ही पाये जाते हैं। इनको जैविक या शारीरिक प्रेरक (Physiological Motives) भी कहते हैं, जैसे-भूख, प्यास, काम, विश्राम आदि।। 



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नजरिया ( attitude) बदलो... तो बदल जायेंगे नजारे.. (motivational advice)

 21june2023

Hindaun,Rajasthan India🇮🇳


नजरिये का महत्व ( importance of attitude) 


: ----   दोस्तों आईये आज चर्चा करते हैं नजरिये पर । जोकि प्रेरणा डायरी की 15 वी पोस्ट है । दोस्तों सारा दारोमदार इसी बात पर टिका है कि जिन्दगी को देखने का हमारा नजरिया कैसा है यदि हमारा नजरिया और सोच सकारात्मक है तो निश्चित मान कर चलिए कि  प्रेरणा ( motivation) भी  ब्लेंस रहेगा । मेरा तो हमेसा से यही मनन है कि जैसा हम सोचते है वैसा ही हम बन जाते है । जैसी हमारी सोच होती है वैसा ही हमारा विकास होता है। 

 English भाषा मै attiude (नज़रिया) सबसे महत्त्वपूर्ण लफ्ज है जिन्दगी के हर पहलू पर असर डालता है, यहाँ तक कि आदमी की निजी औ व्यवसायिक ज़िंदगी पर भी। क्या कोई आदमी अच्छे नज़रिए के बिना  अच्छा इंसान बन सकता है ? क्या कोई छात्र (student) अच्छे नज़रिए के बिना अच्छा बन सकता है? क्या माँ-बाप, शिक्षक, सेल्समैन, मालिक या कर्मचारी अच्छे नजरिये के बगैर अपना किरदार (role) अच्छी तरह निभा सकते हैं? हमारा क्षेत्र चाहे जो हो, क़ामयाबी की बुनियाद तो नज़रिया ही है। अगर क़ामयाब होने के लिए नज़रिए की इतनी अहमियत है तो क्या हमे जिन्दगी के बारे में अपने नज़रिए की जाँच-परख नहीं करनी चाहिए और क्य ख़ुद से यह सवाल नहीं करना चाहिए कि हमारा नज़रिया हमारे मक़सद प असर डाल सकता है । 


     Motivation कि आधार सिला.... सकारात्मक नजरिया


मेरा तो शुरू से यही मानना है कि जैसा आप सोचते हैं। वैसा ही आप बन जाते हैं। जैसा आप अपने बारे में सोचते हैं, किसी भी चीज के बारे में सोचते हैं वैसा ही आपको नजर आता है। यहां हम नजरिए के बारे में बात करेंगे। 

कहते हैं कि नजरिया, यानी एक ही चीज को दो लोग अलग अलग तरह से देखते हैं। यह भी कहा जाता है कि नजरिया बदलो तो नजारे बदल जाते हैं। यानी जैसा आप सोचते हैं वैसे ही आप बन जाते हैं। जैसी एनर्जी, जैसा चिंतन, जैसी सोचने की प्रक्रियाआपके दिमाग में होती हैं। वैसा ही माहौल आपके चारों तरफ बनना शुरू हो जाता है और एक-एक चीजें आपको अपने नजरिए के हिसाब से पहले दिखाई देने लगती हैं, फिर वैसी ही बन जाती हैं।

हमें आगे की योजना बनाने की ही ज़रूरत है और अगर हम अपने 'आज' का भरपूर इस्तेमाल खुशहाली के लिए कर हैं, तो हम ख़ुद-ब-ख़ुद आने वाले बेहतर कल के लिए बीज बो रहे हैं। क्या हम मानते हैं? 

अगर हम अपने नज़रिए को सकारात्मक बनाना चाहते हैं, तो टालमटोल की आदत छोड़ें, और तुरंत काम करो पर अमल करना सीखें। जिंदगी में सबसे दुख भरे शब्द हैं 

"ऐसा हो सकता था।

 “मुझे ऐसा करना चाहिए था ।”

“मैं यह कर सकता था ।” 

“काश ! मैंने ऐसा किया होता ।” 

“अगर मैं थोड़ी और कोशिश करता, तो यह काम हो सकता था ।” 

ये बेहद दुखद शब्द है l आप आज ही एनेह अपनी जिन्दगी के शब्द कोस से बाहर का रास्ता दिखा दे l जो काम आप आज कर सकते हैं, उसे कभी भी कल पर न टालें। आपकी सोच और नजरिया सकारात्मक बनगे l 

दोस्तों अच्छा नजरिया और सकारात्मक सोच motivate जिन्दगी के लिए अहम भूमिका अदा करते है l  अतः अपने जीवन मै इनको इस्थाN दें ल


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राइटर -- kedar lal 


क्या होता है सीखना..? Learning -- अर्थ, परिभाषा, विशेषता, प्रभावित करने वाले कारक, विधियाँ। PART-- 1


मेरी "प्रेरणा डायरी" कि आज कि 24 वीं पोस्ट न केवल स्टूडेंट और युवा बाल्कि हर उस इंसान के लिए खास होने वाली है जो अपने जीवन में कुछ सीखना । Learning करना । आदिगम करना । याद करना चाहता है । सफल होना चाहता है। कामयाबी का स्वाद चखना चाहता है। दोस्तो अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रेरणा (motivation) के साथ आपको यह समझना होगा कि ये सीखने कि पूरी प्रक्रिया क्या यह सीखना क्या है..?  सीखने का अर्थ और परिभाषा क्या है..?हम कैसे सीखते है ? कितना सीखतें है... कब सीखते है...? इसकी खास बातें ,विशेषता क्या है ..? सीखने कि विधियाँ कौन कौन सी है..? नियम क्या ह... ? सीखने के सिद्धान्त क्या..." ? यानी अच्छी Learning से पहले आपको यह समझना होगा कि लर्निंग क्या है...?? इसके हर पहलू हर पक्ष को समझना होगा । क्योंकि अच्छी learning hebit आपको सफ़लता दिलाती है। सफलता में learning केपैसिटी का बड़ा रोल है। क्योंकि जब तक हम अच्छा सीखगे नहीं, याद नहीं करगे, Learn नहीं करगे तब तक हम सफ़ल या कामयाबा कैसे बन सकते है....? "सीखना" हिन्दी शब्द है । इसे अंग्रेजी में Learning कहा जाता है। इसे "अधिगम भी कहते है। इसी को "याद करना" भी कहते है। सबका एक ही मतलब है --  Learning / सीखना /अधिगम/याद करना/
सीखने ( Learning) में प्रेरणा (motiation )का important रोल है। "आप जितने motivate होंगे उतना ही अच्छा सिखगे" प्रेरणा नयी बाते सीखने के लिए प्रोत्साहित करती है । Learning process को हम 3 पोस्टों मे समझेंगे
 (part-1-2-3) आज कि पोस्ट में हम शुरूआत करगे और Learning के सुरुआती पॉइंट्स को जानने का प्रयास करेंगे
आज कि पोस्ट में---


1. Learning  -  प्रक्रिया । 
2. Learning- अर्थ, परिभाषा । 
3. Learning - विशेषताएं। 
4. Learning-  प्रभावित करने 
वाले कारक | 
5. Learning  -  प्रभावसाली विधियाँ। 


दोस्तो सीखने का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है इसकी कि खास बात यह है कि "हम सीख कर ही सफल हो सकते है" ।  आप लर्निंग को समझ रहे हो।तो सोच लेना कि कामयाबी के ""मील के पत्थर को समझ रहे हो"" । Learning (सीखना) एक विस्त्रत प्रक्रिया और Research का विषय है । इसीलिए मैने अपने आर्टिकल को लिखने में कुछ पुस्तको  कि मदद ली है। तो आइये शुरू करते है Learning process को --


शिखने कि प्रक्रिया :---- 
(PROCESS OF LEARNING) 

प्रत्येक व्यक्ति नित्यप्रति अपने जीवन में नये-नये अनुभव एकत्र करता रहता है। ये नवीन अनुभब , व्यक्ति के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करते हैं। इसलिये ये अनुभव तथा इनका योग ही सीखना या अधिगम करना कहलाता है। 
मनोवैज्ञानिकों ने सीखने को मानसिक प्रक्रिया माना है। यह क्रिया जीवनभर निरन्तर चलती  रहती है। 
सीखने की प्रक्रिया की दो मुख्य विशेषताएँ हैं  -निरन्तरता और सार्वभौमिकता। यह प्रक्रिया सदैव और सर्वत्र चलती रहती है। इसलिए, मानव अपने जन्म से मृत्यु तक छ-न-कुछ सीखता रहता है। उसकी सीखने की प्रक्रिया में विराम और अस्थिरता की वस्था कभी नहीं आती है। हाँ, इतना अवश्य है कि उसकी गति कभी तीव्र और कभी मंद हो ती है। इसके अतिरिक्त, मानव के सीखने का कोई निश्चित स्थान और समय नहीं होता है। हर घड़ी और हर जगह कुछ-न-कुछ सीख सकता है। वह न केवल शिक्षा संस्था में, वरन परिवार , समाज, संस्कृति, सिनेमा, सड़क, पड़ोसियों, संगी-साथियों, अपरिचित व्यक्तियों,  स्थानों-सभी से थोड़ी या अधिक शिक्षा ग्रहण करता है। इस प्रकार, वह आजीवन बता हुआ और इसके फलस्वरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन करता हुआ, जीवन में आगे  चला जाता है। इसलिए, वुडवर्थ ने कहा है-“सीखना, विकास की प्रक्रिया है।" 
"Learning is a process of development." 
--Woodworth (p. 281) 



सीखने का अर्थ और परिभाषा :----
(MEANING AND DEFINITION OF LEARNING) 

'सीखना' किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। हम अपने हाथ में आम लिये चले रहे हैं। कहीं से एक भूखे बन्दर की उस पर नजर पड़ती है। वह आम को  हमारे हाथ से छीन ले जाता है। यह भूखे होने की स्थिति में आम के प्रति बन्दर की प्रतिक्रिया है। पर वह क्रियास्वाभाविक (Instinctive) है, सीखी हुई नहीं। 
इसके विपरीत, बालक हमारे हाथ में आम देखता है। वह उसे छीनता नहीं है, वरन् साथ फैलाकर माँगता है। आम के प्रति बालक की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक नहीं, सीखी हुई है। जन्म के कुछ समय बाद से ही उसे अपने वातावरण में कुछ-न-कुछ सीखने को मिल जाता है। पहली बार आग को देखकर वह उसे छू लेता है और जल जाता है। फलस्वरूप, उसे एक नय अनुभव होता है। अतः जब वह आग को फिर देखता है, तब वह आग से दूर रहता है। इस प्रकार, "सीखना-अनुभव द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।"

हम सीखने' के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं,

1. एस्किनर - "सीखना, व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।" "Learning is a process of progressive behaviour adaptation."

2. वुडवर्थ  2. वुडवर्थ-"नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया, सीखने की प्रक्रिया है।"
"The process of acquiring new knowledge and new responses is the process of learning." -Woodworth (pp. 281-282)

3. क्रो & क्रो  क्रो व क्रो-  "सीखना-आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है। "Learning is the acquisition of habits, knowledge and attitudes."
-Crow and Crow (p. 225)

4. गेट्स व अन्य "सीखना, अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन

 5. क्रन्वेल "सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा व्यक्त होता है। "
"Learning is shown by a change in behaviour as a result of experience 

6. मार्गन एवं गिलीलैण्ड-  "सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप प्राणी के व्यवहार में परिमार्जन है जो प्राणी द्वारा कुछ समय के लिये धारण किया जाता है।"
"Learning is some modification in the behaviour of the organism as a result of experience which is retained for atleast a certain period of time. -Morgan and Gillidand.

इन परिभाषाओं का विश्लेषण करके हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सीखना, क्रिया द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है, व्यवहार में हुआ यह परिवर्तन कुछ समय तक बना रहता है, यह परिवर्तन व्यक्ति के पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है।

सीखने की विशेषताये:---
(CHARACTERISTICS OF LEARNING)
योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson) के अनुसार-सीखने की सामान्य
विशेषताएँ इस प्रकार है--

1.  सीखना- सम्पूर्ण जीवन चलाता है (All Living in Learning)-सीखने की आजीवन चलती है। व्यक्ति अपने जन्म के समय से मृत्यु तक कुछ-न-कुछ सीखता 

2. सीखना- परिवर्तन है (Learming is Change) व्यक्ति अपने और दूसरों के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार, विचारों, इच्छाओं, भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है।  गिलफोर्ड (Guilord, General Psychology. p. 343) के अनुसार-"सीखना व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन है।" 

3. सीखना-सार्वभौमिक है (Learning is Universal) सीखने का गुण केवल मनुष्य में ही नहीं पाया जाता है। वस्तुत: संसार के सभी जीवधारी पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े आदि सभी सीखते है। 

4. सीखना- विकास है (Learning is Growth) व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाओं और अनुभवों के द्वारा कुछ न कुछ सीखता है। फलस्वरूप, उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है। सीखने की इस विशेषता को पेस्टालॉजी (Pestalozzi) ने वृक्ष और फ्रांबेल (Froebel) ने उपवन का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है। 

5. सीखना- अनुकूलन है (Learming is Adjustment) सीखना, वातावरण से अनुकूलन करने के लिए आवश्यक है। सीखकर ही व्यक्ति, नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है। जब वह अपने व्यवहार को इनके अनुकूल बना लेता है, तभी वह कुछ सोख पाता है। गेट्स एवं अन्य (Gates and Others) (p. 299) का मत है-"सीखने का सम्बन्ध स्थिति के क्रमिक परिचय से है।" 

6. सीखना-नया कार्य करना है (Leaning is Doing Something New)वुडवर्थ  के अनुसार-सीखना कोई नया कार्य करता है। पर उसने उसमें एक शर्त लगा दी है। उसका कहना है कि सीखना, नया कार्य करना तभी है, जबकि यह कार्य फिर किया जाय और दूसरे कार्यों में प्रकट हो। 

 7. सीखना-अनुभवों का संगठन है (Learning is Organization of Experiences) सीखना न तो नये अनुभव की प्राप्ति है और न पुराने अनुभवों का योग, वरन् नये और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति नये अनुभवों द्वारा नई बातें सीखता जाता है, वैसे-वैसे वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता 


8. सीखना-उदेश्यपूर्ण है (Learning is Purposive) सीखना, उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रवल होता है, सीखने की क्रिया उतनी ही अधिक तीव्र होती है। उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है। पर्सेल (Mursell, Successful Teaching, D. 56) के अनुसार-"सीखने के लिए उन्लेजित और निर्देशित उद्देश्य की अति आवश्यकता है और ऐसे उद्देश्य के बिना सीखने में असफलता निश्चित है।" 

9 . सीखना- विवेकपूर्ण है (Learning is Intelligent) मसेल (Mursell) का कथन है कि सीखना, यांत्रिक कार्य के बजाय विवेकपूर्ण कार्य है। उसी बात की शीघ्रता और सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि या विवेक का प्रयोग किया जाता है। बिना सोचे समझे किसी बात को सीखने में सफलता नहीं मिलती है। पर्सेल के शब्दों में-"सीखने की असफलताओं का कारण समझने की असफलताएँ हैं।" 

10.  सीखना-सक्रिय है (Learning is Active)- सक्रिय सीखना ही वास्तविक सोखना है। बालक तभी कुछ सीख सकता है, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। यही कारण है कि डाल्टन प्लान, प्रोजेक्ट मेथड आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियाँ, बालक की क्रियाशीलता पर बल देती हैं।

11. सीखना- व्यक्तिगत व सामाजिक, दोनों है (Learning is both Individual and Social) सोखना व्यक्तिगत कार्य तो है ही, पर इससे भी अधिक समाजिक कार्य है। योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson. p. 60) के अनुसार-"सीखना सामाजिक है, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।"
सीखना- वातावरण की उपज है (Learning is a Product of Environment)सीखना रिक्तता में न होकर, सदैव उस वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में होता है, जिसमें व्यक्ति रहता है। बालक का सम्बन्ध जैसे वातावरण से होता है, वैसी ही बातें वह सीखता है।
कारण है कि आजकल इस बात पर बल दिया जाता है कि विद्यालय इतना उपयुक्त और प्रभावशाली वातावरण उपस्थित करे कि बालक अधिक-से-अधिक अच्छी बातों को सीख सके।

12. सीखना - खोज करना है (Leaning is Discovery)- वास्तविक सीखना किसी बात की खोज करना है। इस प्रकार के सीखने में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के प्रयास करके स्वयं एक परिणाम पर पहुँचता है। मर्सेल का कथन है-"सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है, जिसे एक व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है।"


सीखने को प्रबावित  वाले कारक :-- 

(FACTORS OR CONDITIONS INFLUENCING LEARNING)

ऐसे अनेक कारक या दशाएँ हैं, जो सीखने की प्रक्रिया में सहायक या बाधक सिद्ध होते हैं। इनका उल्लेख करते हुए सिम्पसन ने लिखा है- "अन्य दशाओं के साथ-साथ सीखने की कुछ दशाएँ हैं- उत्तम स्वास्थ्य, रहने की अच्छी आदतें, शारीरिक दोषों से मुक्ति, अध्ययन की अच्छी आदतें, संवेगात्मक सन्तुलन, मानसिक योग्यता, कार्य सम्बन्धी परिपक्वता, वांछनीय दृष्टिकोण और रुचियाँ, उत्तम सामाजिक अनुकूलन, रूढ़िबद्धता और अन्धविश्वास से मुक्ति।" हम इनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारकों पर प्रकाश डाल रहे हैं, यथा

1. विषय-सामग्री का स्वरूप (Nature of Subject-matter)—सीखने की क्रिया पर सीखी जाने वाली विषय सामग्री का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता कठिन और अर्थहीन सामग्री की अपेक्षा सरल और अर्थपूर्ण सामग्री अधिक शीघ्रता और सरलता से सीख ली जाती है। इसी प्रकार, अनियोजित सामग्री की तुलना में 'सरल से कठिन की ओर' (From Simple to Difficult) सिद्धान्त पर नियोजित सामग्री सीखने की क्रिया को सरलता प्रदान करती है।

2. बालकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health of Children) -जो छात्र, शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होते हैं, वे सीखने में रुचि लेते हैं और शीघ्र सीखते हैं। इसके विपरीत, शारीरिक या मानसिक रोगों से पीड़ित छात्र सीखने में किसी प्रकार की रुचि नहीं लेते हैं। फलतः वे किसी बात को बहुत देर में और कम सीख पाते हैं।  

3. परिपक्वता (Maturation)—शारीरिक और मानसिक परिपक्वता वाले छात्र नये पाठ को सीखने के लिए सदैव तत्पर और उत्सुक रहते हैं। अतः वे सीखने में किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं करते हैं। यदि छात्रों में शारीरिक और मानसिक परिपक्वता नहीं होती है, तो सीखने में उनके समय और शक्ति का नाश होता है। कोलेसनिक के अनुसार-"परिपक्वता और सीखना पृथक प्रक्रियाएँ नहीं हैं, वरन् एक-दूसरे से अविच्छिन्न रूप में सम्बद्ध और एक-दूसरे पर निर्भर हैं।"

4. सीखने का समय व थकान (Time of Learning and Fatigue)—सीखने का समय सीखने की क्रिया को प्रभावित करता है; उदाहरणार्थ, जब छात्र विद्यालय आते हैं, तब स्फूर्ति होती है। अतः उनको सीखने में सुगमता होती है। जैसे-जैसे शिक्षण के घण्टे बीतते हैं, वैसे-वैसे उनकी स्फूर्ति में शिथिलता आती जाती है और वे थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामतः उनकी सीखने की क्रिया मन्द हो जाती है।
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5. सीखने की इच्छा (Will to Learn)--यदि छात्रों में किसी बात को सीखने की इच्छा होती है, तो वे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उसे सीख लेते हैं। अतः अध्यापक का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वह छात्रों की इच्छा शक्ति को दृढ़ बनाये। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे उनकी रुचि और जिज्ञासा को जाग्रत करना चाहिए।

6. प्रेरणा (Motivation) सीखने की प्रक्रिया में प्रेरकों (Motives) का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रेरक, बालकों को नई बातें सीखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अत: यदि अध्यापक चाहता है कि उसके छात्र नये पाठ को सीखें, तो वह प्रशंसा, प्रोत्साहन, प्रतिद्वन्द्विता आदि विधियों का प्रयोग करके उनको प्रेरित करे। स्टीफेन्स  के विचारानुसार- "शिक्षक के पास जितने भी साधन उपलब्ध हैं, उनमें प्रेरणा सम्भवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।"

7. अध्यापक व सीखने की प्रक्रिया (Teacher and Learning Process) – सीखने की प्रक्रिया में पथ-प्रदर्शक के रूप में शिक्षक का स्थान अति महत्वपूर्ण है। उसके कार्यों और विचारों, व्यवहार और व्यक्तित्व, ज्ञान और शिक्षण-विधि का छात्रों के सीखने पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इन बातों में शिक्षक का स्तर जितना ऊँचा होता है, सीखने की प्रक्रिया उतनी ही तीव्र और सरल होती है।

8. सीखने का उचित वातावरण (Favourable Learning Atmosphere) – सीखने की क्रिया पर न केवल कक्षा के अन्दर के, वरन् बाहर के वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। कक्षा के बाहर का वातावरण शान्त होना चाहिए। निरन्तर शोरगुल से छात्रों का ध्यान सीखने की क्रिया से हट जाता है। यदि कक्षा के अन्दर छात्रों को बैठने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है, और यदि उसमें वायु और प्रकाश की कमी है, तो छात्र थोड़ी ही देर में थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामतः उनकी सीखने में रुचि समाप्त हो जाती है। कक्षा का मनोवैज्ञानिक वातावरण (Psychological Climate) भी सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यदि छात्रों में एक-दूसरे के प्रति सहयोग और सहानुभूति की भावना है, तो सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ने में सहयोग मिलता है।

9. सीखने की विधि (Learning Method)—सीखने की विधि का सम्बन्ध छात्र और विषय, दोनों से है। यह विधि जितनी ही अधिक रुचिकर और उपयुक्त होती है, सीखना उतना ही अधिक सरल होता है। इसलिए प्रारम्भिक कक्षाओं में 'खेल' (Play) और 'करके सीखना' (Learning by Doing) विधियों का, और उच्च कक्षाओं में 'पूर्ण' (Whole), 'सामूहिक (Collective) और 'सहसम्बन्ध' (Correlation) विधियों का प्रयोग किया जाता है।


10. सम्पूर्ण परिस्थिति (Total Situation)–बालक के सीखने को प्रभावित करने वाले तत्व उस पर पृथक् रूप के बजाय सामूहिक रूप से प्रभाव डालते हैं। अतः सीखने की सम्पूर्ण परिस्थिति का विद्यालय में होना आवश्यक है। विद्यालय की सम्पूर्ण परिस्थिति का बालक के बाह्य तथा समाज के सामान्य जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहिए। रायबर्न के अनुसार- "उस सम्पूर्ण परिस्थिति का, जिसमें बालक अपने को विद्यालय में पाता है, जीवन से जितना ही अधिक सम्बन्ध होता है, उतना ही अधिक सफल और स्थायी उसका सीखना है। 

इन कारणों या दशाओं के वर्णन से यह स्पष्ट है कि सीखना तभी प्रभावशाली हो सकता है जबकि ये दशाएँ अनुकूल हों। अनुकूल होने की परिस्थितियों में सीखने की क्रिया सबल एवं प्रभावयुक्त हो जाती है। 


 सीखने की प्रभावसाली विधियाँ

(EFFECTIVE METHODS OF LEARNING)

 किसी नई क्रिया या नये पाठ को सीखने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। हम इनमें से केवल उन विधियों का वर्णन कर रहे हैं, जिनको मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर अधिक उपयोगी और प्रभावशाली पाया गया है। ये विधियाँ इस प्रकार हैं

1. करके सीखना (Learning by Doing) डॉ. मेस (Dr. Mace) का कथन है- "स्मृति का स्थान मस्तिष्क में नहीं, वरन् शरीर के अवयवों में है। यही कारण है कि हम करके सीखते हैं। " 


"The seat of the memory is not in the mind, but in the muscular system. We learn by doing." 

-Quoted by Pryns Hopkins: Aids to Successful Teaching (p. 154) बालक जिस कार्य को स्वयं करते हैं, उसे वे जल्दी सीखते हैं। कारण यह है कि उसे करने में वे उसके उद्देश्य का निर्माण करते हैं, उसको करने की योजना बनाते हैं और योजना को पूर्ण करते हैं। फिर, वे यह देखते हैं कि उनके प्रयास सफल हुए हैं या नहीं। यदि नहीं, तो वे अपनी गलतियों को मालूम करके, उनमें सुधार करने का प्रयत्न करते हैं। 

2. निरीक्षण करके सीखना (Learning by Observation) -योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson, p. 58) ने लिखा है-"निरीक्षण सूचना प्राप्त करने, आधार सामग्री (Data) एकत्र करने और वस्तुओं तथा घटनाओं के बारे में सही विचार प्राप्त करने का साधन है।" बालक जिस वस्तु का निरीक्षण करते हैं, उसके बारे में वे जल्दी और स्थायी रूप से सीखते हैं। इसका कारण यह है कि निरीक्षण करते समय वे उस वस्तु को छूते हैं, या प्रयोग करते हैं, या उसके बारे में बातचीत करते हैं। इस प्रकार, वे अपनी एक से अधिक इन्द्रियों का प्रयोग करते हैं। फलस्वरूप, उनके स्मृति पटल पर उस वस्तु का स्पष्ट चित्र अंकित हो जाता है। 

3. परीक्षण करके सीखना (Learning by Experimenting) नई बातों की खोज करना, एक प्रकार का सीखना है। बालक इस खोज को परीक्षण द्वारा कर सकता है। परीक्षण के बाद वह किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है। इस प्रकार, वह जिन बातों को सीखना है, वे उसके ज्ञान का अभिन्न अंग हो जाती है, उदाहरणार्थ, वह इस बात का परीक्षण कर सकता है कि गी का ठोस और तरल पदार्थों पर क्या प्रभाव पड़ता है। वह इस बात की पुस्तक में पढ़कर भी सीख सकता है। पर यह सीखना उतना महत्वपूर्ण नहीं होता है, जितना कि स्वयं परीक्षण करके सीखना। 

4. सामूहिक विधियों द्वारा सीखना, (Learning by Group Methods)- सीखने का कार्य - व्यक्तिगत (Individual) और सामूहिक विधियों द्वारा होता है। इन दोनों में सामूहिक विधियों को अधिक उपयोगी और प्रभावशाली माना जाता है। इनके सम्बन्ध में कोलसनिक (Kolesnik. p. 376) की धारणा इस प्रकार है-"बालक को प्रेरणा प्रदान करने से शैक्षिक लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता देने, उसके मानसिक स्वास्थ्य की उत्तम बनाने, उसके सामाजिक समायोजन को अनुप्राणित करने, उसके व्यवहार में सुधार करने और उसमें आत्मनिर्भरता तथा सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए व्यक्तिगत विधियों की तुलना में सामूहिक विधियाँ कहीं अधिक प्रभावशाली हैं।" मुख्य सामूहिक विधियाँ निम्नांकित हैं

(1) वाद विवाद विधि (Discussion Method) इस विधि में प्रत्येक छात्र की अपने विचार व्यक्त करने और प्रश्न पूछने का अवसर दिया जाता है। 

(ii) वर्कशॉप विधि (Workshop Method)--इस विधि में विभिन्न विषयों पर सभाओं का आयोजन किया जाता है और इन विषयों के हर पहलू को छात्रों द्वारा अध्ययन किया जाता है। 

3 सम्मेलन व विचार गोष्टी विधियाँ (Conference and Seminar Methods). से किसी विशेष विषय पर छात्रों द्वारा विचार विनिमय किया जाता है। (iv) प्रोजेक्ट, डाल्टन व बेसिक विधियाँ (Project, Dalton and Basic Methods) इन आधुनिक विधियों में व्यक्तिगत और सामूहिक-दोनों प्रकार के प्रेरकों का स्थान होता है। प्रत्येक छात्र अपनी व्यक्तिगत रुचि, ज्ञान और क्षमता के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, जिससे उसका सीखने का कार्य सरल हो जाता है। इसके अतिरिक्त, सामूहिक रूप से कार्य करने के कारण उसमें स्पर्द्धा, सहयोग और सहानुभूति का विकास होता है। 

5. मिश्रित विधि द्वारा सीखना (Learning by Mixed Method) सीखने की दो महत्वपूर्ण विधियाँ हैं- पूर्ण विधि, (Whole Method) और आशिक विधि (Part Method) । पहली विधि में छात्रों को पहले पाठ्य-विषय को पूर्ण ज्ञान दिया जाता है और फिर उसके विभिन्न अंगों में सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। दूसरी विधि में पाठ्य-विषय की खण्डों में बाँट दिया जाता है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार इन दोनों विधियों को मिलाकर सीखने के लिए मिश्रित विधि का प्रयोग किया जाता है। 

6. सीखने की स्थिति का संगठन (Organization of Learning Process ) सीखने के कार्य को सरल और सफल बनाने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता है-सीखने की स्थिति का संगठन। यह तभी सम्भव हो सकता है, जब विद्यालय का निर्माण इस प्रकार किया जाय कि उसमें सीखने की सभी क्रियाएँ उपलब्ध हो और सीखने की सभी विधियों का प्रयोग किया जाए। 

सीखने की ये सभी विधियाँ व्यक्ति के मनोविज्ञान पर आधारित हैं। इन विधियों के प्रयोग से अधिगम तथा शिक्षण, दोनों ही प्रभावशाली हो जाते हैं। 


ब्लॉग - प्रेरणा डायरी

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राइटर -- केदार लाल ( k. S. Ligree)