क्या होता है व्यक्तित्व (पर्सनलिटी)..? समझिये व्यक्तित्व के विकाश को। लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
क्या होता है व्यक्तित्व (पर्सनलिटी)..? समझिये व्यक्तित्व के विकाश को। लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 15 मार्च 2024

क्या होता है व्यक्तित्व (पर्सनालिटी)..? समझिये व्यक्तित्व के विकाश को।

13/12/2023

हिण्डौन, राजस्थान, भारत। 


  सामान्यतः व्यक्तित्व से अभिप्राय, व्यक्ति के रूप, रंग, कद, माप, चौड़ाई, मोटाई, शिल्प अर्थात शारीरिक संरचना, व्यवहार तथा  मृदुभाषी होने के रूप में लिया जाता है।  ये सब . गुण व्यक्ति के संपूर्ण व्यवहार के दर्पण हैं। व्यक्तित्व की अनेक धारणाएँ प्रचलित हैं जो निम्न प्रकार हैं। 

व्यक्तित्व संबन्धी सिद्धांत--

 बोलचाल की भाषा में "व्यक्तित्व' शब्द का अर्थ-शारीरिक-बनावत और सौंदर्य के लिए जाना जाता है। हम अक्सर आरोप लगाते हैं--इस मनुष्य का व्यक्तित्व सुंदर है, आकर्षक है। कुछ लोग 'व्यक्ति' और 'व्यक्तित्व' को पर्यायवाची मानते हैं, और एक का उपयोग दूसरे के लिए किया जाता है। कार्य में राम रहते हैं। 

जिस प्रकार के सामान्य वाक्यांशों के व्यक्तित्व के संबंध में विभिन्न धारणाएँ हैं, एक ही प्रकार के विद्वान और विचारधारा भी हैं। यही कारण है कि व्यक्तित्व को आज तक कोई निश्चित अर्थ से सम्बद्ध नहीं किया जा सकता है और कोई भी निश्चित सीमा अंकित नहीं की जा सकती है। उदाहरणार्थ यह स्वीकार किया जा सकता है कि व्यक्तित्व विचित्र है, जटिल है, व्याख्या भिन्न है। 

व्यक्तित्व शब्द कि उत्पति -- 

  -'व्यक्तित्व' अंग्रेजी के व्यक्तित्व शब्द का रूपान्तर है। अंग्रेजी के इस शब्द भाषा की उत्पत्ति ग्रीक के पर्सोना (परसोना) शब्द: से हुई है, जिसका अर्थ है- "नकाब' (मुखौटा) ग्रीक लोग नकाब खान मच पर भाव करते थे, ताकि दर्शक यह न जानें जीवंत - अभिनय करने वाला कौन है - दास, विदुषक राजकमार या राजनर्तकी। अभिनय करने वाले जिस प्रकार के पात्र का हिस्सा चकमा थे, उसी प्रकार का नकाब कलाकार थे। 


सिसरो दुवारा उल्लेखित अर्थ -- 

-जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे पर्सोना (व्यक्तित्व) शब्द का अर्थ बदल गया। ईसा-पूर्व प्रथम शताब्दी में रोम के प्रसिद्ध लेखक और ज्योतिषी सिसरो (सिसरो) ने अपने चार अर्थों का प्रयोग किया था- (1) जैसा कि एक व्यक्ति दूसरे में दिखाई देता है, पर जैसा कि वह वास्तव में नहीं है; (2) वह कार्य जो जीवन में कोई करता है, जैसे कि सिद्धांत; (3) व्यक्तिगत विशेषताओं का संकलन, जो एक मनुष्य को उसके कार्य के योग्य बनाता है; और (4) तीक्ष्णता और सम्मान, जैसा कि लेखन-शैली में हो रहा है। इस प्रकार, त्रालवी शताब्दी तक पर्योना व्यक्तित्व) शब्द का अर्थ विभिन्न अर्थों में घटित हो रहा है। चौदहवीं शताब्दी में मनुष्य की मुख्य दुकान का उल्लेख करने के लिए एक नए शब्द की आवश्यकता का अनुभव किया गया। इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्सोना को पर्सनेल्टी शब्द में रूपान्तरित कर दिया गया। 

(द) व्यक्तित्व का अर्थ-व्यक्तित्व-सम्बन्धी उपर्युक्त धारणायें उसके अर्थ कौ पूर्ण व्याख्या नहीं करती हैं। “व्यक्तित्व' में एक मनुष्य के न केवल शारीरिक और मानसिक गुणों का, वरन्‌ उसके सामाजिक गुणों का भी समावेश होता है, किन्तु इतने से भी व्यक्तित्व का अर्थ पूर्ण नहीं होता है। कारण यह है कि यह तभी सम्भव है, जब एक समाज के सब सदस्यों के विचार, संवेगों के अनुभव और सामाजिक क्रियायें एक-सी हों। ऐसी दशा में व्यक्तित्व का प्रश्न ही नहीं रह जाता है। इसीलिए, मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि व्यक्तित्व-मानव के गुणों, लक्षणों, क्षमताओं , विशेषताओं आदि की संगठित इकाई है। मन के शब्दों में-“व्यक्तित्व की परिभाषा, व्यक्तित्व के ढाँचे, व्यवहार की विधियों , रुचियों, अभिवृत्तियों, क्षमताओं , योग्यताओं और कुशलताओं के सबसे विशिष्ट एकीकरण के रूप में की जा सकती है।” 

आधुनिक मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व को संगठित इकाई न मानकर गतिशील संगठन और एकीकरण की प्रक्रिया मानते हैं। इस सम्बन्ध में थार्षप व शमलर ने लिखा है-“जटिल और एकीकृत प्रक्रिया के रूप में व्यक्तित्व की धारणा आधुनिक व्यावहारिक मनोविज्ञान की देन है |


व्यक्तित्व कि परिभाषा--- 

 ' व्यक्तित्व” की कुछ आधुनिक परिभाषाएँ दृष्टव्य हैं


1. बिग एवम् हंट --“व्यक्तित्व एक व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार-प्रतिमान और इसकी और इसकी विशेषता का वर्णन करता है।


2. अल्पोर्ट  --“व्यक्तित्व, व्यक्ति में उन मनोशारीरिक अवस्थाओं का गतिशील संगठन है, जो उसके पर्यावरण के साथ उनका अद्वितीय सामंजस्य निर्धारित करता है।” 

 

3. ड्रेवर् --“व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग, व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के सुसंगठित और गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है, जिसे वह अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान-प्रदान में व्यक्त करता है। 


व्यक्तित्व के पहलू --( aspect of personality) 


1, क्रियात्मक पहलू --व्यक्तित्व के इस पहलू का सम्बन्ध मान की क्रियाओं से है। ये क्रियायें उसकी भावुकता, शान्ति, विनोदप्रियता, मानसिक श्रेष्ठता आदि को व्यक्त करती हैं। | 


2. सामाजिक पहलू --व्यक्तित्व के इस पहलू का सम्बन्ध मानव द्वारा दूसरों पर डाले जाने वाले सामाजिक प्रभाव से है। इस पहलू में उन सब बातों का समावेश हो जाता है, जिनके कारण मानव दूसरों पर एक विशेष प्रकार का प्रभाव डालता है। 


3, कारण-सम्बन्धी पहलू --व्यक्तित्व के इस पहलू का सम्बन्ध मानव के सामाजिक या असामाजिक कार्यों के कारणों और उन कार्यों के प्रति लोगों की प्रतिक्रियाओं से है। यदि उसके कार्य अच्छे हैं, तो लोग उसे पसन्द करते हैं, अन्यथा नहीं। 


4. अन्य पहलू-व्यक्तित्व के अन्य पहलू हैं-दूसरों पर हमारा प्रभाव; हमारे जीवन में होने वाली बातों और घटनाओं का हम पर “प्रभाव; हमारे गम्भीर विचार, भावनायें और अभिवृत्तियाँ। 


निष्कर्ष रूप में, गैरिसन व अन्य ने लिखा है-“ये सभी पहलू महत्त्वपूर्ण हैं, परन्तु इनमें से कोई एक या सम्मिलित रूप से सब पूर्ण व्यक्तित्व का वर्णन नहीं करते हैं। व्यक्तित्व इन सबका और इनसे भी अधिक का योग है। यह सम्पूर्ण मानव है।” 


व्यक्तित्व के ये पहलू, उसके विभिन्न गुणों तथा पक्षों पर प्रकाश डालते हैं। ये पक्ष व्यक्तित्व के संगठनात्मक स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं। इसीलिये बीसेनज एवं बीसेन्ज के शब्दों में-“व्यक्तित्व मनुष्य की आदतों , दृष्टिकोण तथा विशेषताओं का संगठन है। यह जीव-शास्त्रीय, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारण के संयुक्त कार्यों द्वारा उत्पन्न होता है।" 


व्यक्तित्व कि विशेषताएँ ---


व्यक्तित्व, शब्द में अनेक विशेषतायें निहित होती हैं। व्यक्तित्व में निम्न विशेषताओं को देखा जाता हैहु * 


1. आत्म चेतना  आत्म-चेतना --व्यक्तित्व की पहली और मुख्य विशेषता है-आत्म-चेतना। इसी विशेषता के कारण मानव को सब जीवधारियों में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया जाता है और उसके व्यक्तित्व की उपस्थिति को स्वीकार किया जाता है। पशु और बालक में आत्म-चेतना न होने के कारण यह कहते हुए कभी नहीं सुना जाता है कि इस कूत्ते या बालक का व्यक्तित्व अच्छा है। जब व्यक्ति यह जान जाता है कि वह क्या है, समाज में उसकी क्या है, दूसरे उसके बारे में क्या सोचटे हैं-तभी उसमें व्यक्तित्व का होना स्वीकार किया जाता है। 

 2. समाजिकता  सामाजिकता --व्यक्तित्व की दूसरी विशेषता है-सामाजिकता। समाज से पृथक मानव और उसके व्यक्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। मानव में आत्म-चेतना का विकास तभी होता है, जब वह समाज के अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आकर क्रिया और अन्तःक्रिया करता है। इन्हीं क्रियाओं के फलस्वरूप उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। अत: व्यक्तित्व में सामाजिकता की विशेषता होना अनिवार्य है। . 

3, सामंजस्यता --व्यक्तित्व की तीसरी विशेषता है-सामंजस्यता। व्यक्ति को न केवल बाह्य वातावरण से, वरन्‌ अपने स्वयं के आन्तरिक जीवन से भी सामंजस्य करना पड़ता है। सामंजस्य करने के कारण उसके व्यवहार में परिवर्तन होता है और फलस्वरूप उसके व्यक्तित्व में विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है। यही कारण है कि चोर, डाकिये, पतली, डॉक्टर आदि के व्यवहार और व्यक्तित्व में अन्तर मिलता है। वस्तुतः मानव को अपने व्यक्तित्व को अपनी दशाओं , वातावरण, परिस्थितियों आदि के अनुकूल बनाना पड़ता है। 

4, निर्देशित लक्ष्य-प्राप्ति --व्यक्तित्व की चौथी विशेषता है-निर्देशित लक्ष्य की प्राप्ति। मानव के व्यवहार का सदैव एक निश्चित उद्देश्य होता है और वह सदैव किसी-न-किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संचालित किया जाता है। उसके व्यवहार और लक्ष्यों से अवगत होकर हम उसके व्यक्तित्व का सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। इसीलिए, भाटिया  मे लिखा है-“व्यक्ति या व्यक्तित्व को समझने के लिए हमें इस बात पर विचार करना आवश्यक हो जाता है कि उसके लक्ष्य क्या हैं और उसे उनका कितना ज्ञान है।” 

5. दृढ़ इच्छा-शक्ति --व्यक्तित्व की पाँचवी विशेषता है-दृढ़े इच्छा-शक्ति। यही शक्ति, व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों से संघर्ष करके अपने व्यक्तित्व को उत्कृष्ट बनाने की क्षमता प्रदान करती है। इस शक्ति की निर्बलता उसके जीवन को अस्त-व्यस्ते करके उसके व्यक्तित्व को विघटित कर देती है। 

6. शारीरिक य मानसिक स्वास्थ्य --व्यक्तित्वे की छठवीं विशेषता है-शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य। मनुष्य मनो-शारीरिक प्राणी है। अतः उसके अच्छे व्यक्तित्व के लिए अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का होना एक आवश्यक शर्त है। 

7. एकता व एकीकरण--व्यक्तित्व कौ सातवीं विशेषता है-एकता और एकीकरण। जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर का कोई अवयव अकेला कार्य नहीं करता है, उसी प्रकार व्यक्तित्व का कोई तत्व अकेला कार्य नहीं करता है। ये तत्व हैं-शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि। व्यक्तित्व के इन सभी तत्वों में एकता या एकीकरण होता है। भाटिया ने लिखा है--“व्यक्तित्व मानव की सब शक्तियों और गुणों का संगठन व एकीकरण है।” 


8. विकास की निरन्तरता --व्यक्तित्व की अन्तिम किन्तु महत्त्वपूर्ण विशेषता है-विकास की निरन्तरता। उसके विकास में कभी स्थिरता नहीं आती है। जैसे-जैसे व्यक्ति के कार्यों, विचारों, अनुभवों, स्थितियों आदि में परिवर्तन होता जाता 

है, वैसे-वैसे उसके व्यक्तित्व के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। विकास की यह निरन्तरता, शैशवावस्था से जीवन के अन्त तक चलती रहती है। ऐसा समय कभी नहीं आता है, .. जब यह कहा जा सके कि व्यक्तित्व का पूर्ण विकास या पूर्ण निर्माण हो गया है। इसीलिए ... गैरिसन व अन्य ने लिखा है-“व्यक्तित्व निरन्तर निर्माण की क्रिया में रहता है।” 


व्यक्तित्व के लक्षण या गुण ---  

(  Qualities of personality  ) 

व्यक्तित्व, समस्त गुणों का गत्यात्मक संगठन है। वुडवर्थ (woodworth) ने इसे गुणों का योग बताया है। गैरिट के शब्द्रों में-“व्यक्तित्व के गुण व्यवहार करने क निश्चित विधियों हैं जो व्यक्ति में स्थायी होते हैं। व्यक्तित्व के गुण , व्यवहार के बहुसंख्यक स्वरूप का वर्णन करने की स्पष्ट विधियाँ हैं।" 

(अ) गुणों का अर्थ--

किसी मनुष्य के व्यक्तित्व का सही चित्र,-वर्णन या चरित्र-चित् प्रस्तुत करना कोई आसान काम नहीं है। इसे आसान बनाने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्ति के कुछ गुण या लक्षण निर्धारित किये हैं; जैसे-दयालु, कठोर, मूर्ख, बुद्धिमान आदि। यह भ्रम-निवारण के लिए यह बता देना असंगत न होगा कि इन गुणों या लक्षणों को योग्येताओं का पर्यायवाची नहीं माना जाता है। गुणों और योग्यताओं में अन्तर है। 

उदाहरणार्थ-हारमोनिय बजाना-- योग्यता है कप है, पर जिस ढंग से कोई व्यक्ति उसे बजाता है, वह उसके व्यक्तित्व का गुण है। या लक्षण है। 

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि व्यक्तित्व का लक्षण, व्यक्ति के व्यवहार का कोई विशेष गुण होता है। गैरट के शब्दों में--“व्यक्तित्व के गुण, व्यवहार करने की निश्चित विधियाँ हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति में बहुत-कुछ स्थायी होता है। व्यक्तित्व के गुण, व्यवहार के 'बहुसंख्यक स्वरूपों का वर्णन करने की स्पष्ट और संक्षिप्त विधियाँ हैं।” 

(ब) गुणों कि संख्या --  

अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि व्यक्तित्व के कितने गुण हैं। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मन (munn P. 234) ने लिखा है-व्यक्तित्व के झ ' विभिन्न अंग, पक्ष, पहलू या स्वरूप हैं कि वास्तव में, यह बताना असम्भव है कि इन गुणों 'संख्या कितनी है।


(स) गुणों के प्रकार -- 

-व्यक्तित्व के गुण अनेक प्रकार के हैं, जैसे-(1) नैतिक और अनैतिक; । (2) वास्तविक और प्रत्यक्ष  (3) बाहा और आन्तरिंत --  उदाहरणार्थ-बाह्य गुण हैं-मित्रता, शान्ति और सामाजिका' आन्तरिक गुण हैंभय, चिन्ता, इच्छा और महत्त्वाकांक्षा। (५) शारीरिक, मानसिक, धार्मिक' सामाजिक, राजनीतिक, व्यावसायिक, आर्थिक आदि। यथार्थ में, इन गुणों की संख्या इतनी अधिक है और ये एक-दूसरे से इतने भिन्न हैं कि न तो इनका वर्गीकरण किया जा सकता है औंर न सम्भवत: किया जा सकेगा।