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शनिवार, 23 दिसंबर 2023

क्या चुनावों में बढ़ रही हैं भारतीय नारी की शक्ति..?



दोस्तों नमस्कार। 
 प्रेरणा डायरी (Motivation Dayri) के आज के इस अर्टिकल् में हम विश्लेसंन करेंगे हाल ही में हुए 5 राज्यों -- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छतीशगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव परिणामों कि। इन पांचो राज्यों के चुनाव को महिला मतदाताओं के नजरिये से देखने का प्रयाश करते हैं। चुनाव में नारी शक्ति कि बढ़ती ताकत किस राजनीतिक दल को फायदा पहुॅचा रही है,और किसको नुकसान। फ़िल्हाल सबसे संतोषजनक बात ये है कि, भारत कि लगभग आधी आबादी ( महिला) मतदान में अपनी हिसेदारी बढ़ा रही है, स्वतंत्र निर्णय ले रही है, अपने आप को ससक्त बना रही है। पर विधान सभा और संसद में भी ऐसी ही तस्वीर उभरकर आये, तब बात नहले पर दहले वाली हो। 

राजनीति  के कई कोण होते हैं। इसलिए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों का  विभिन्न कोणों से विश्लेषण आगे भी जारी रह सकता है, लेकिन खासकर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की प्रचंड जीत में आधी  आबादी की निर्णायक भूमिका मानी जा रही है। यह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से लेकर विभिन्न भाजपाई राज्य सरकारों तक सभी के द्वारा नारी सशक्तीकरण से लेकर महिलाओं को सीधे लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं का भी परिणाम है। बेशक तेलंगाना भी महिला केंद्रित योजनाओं और चुनावी वादों में अपवाद नहीं रहा, जहां कांग्रेस 'को जनादेश मिला है, पर भाजपाई जीत वाले राज्यों में महिला मतदाताओं का रुझान इस कोण के गहन विश्लेषण की जरूरत रेखांकित करता है। देश में सक्रिय राजनीति की तरह, मतदान प्रक्रिया में भी महिलाओं की भागीदारी बहुत उत्साहवर्धक नहीं रही है, पर वर्ष 2014 के बाद स्थिति तेजी से बदलती दिख रही है। मतदान करने वाली महिलाओं का  राजनीति में कई कोण होते  है। एक आंकड़े के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां 67.01 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया, वहीं मतदान करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 67.18 तक पहुंचा। आंकड़े बताते हैं कि महिला मतदाताओं का ज्यादा वोट भाजपा की झोली में जा रहा है। नरेंद्र मोदी जब भाजपा का चेहरा बने, तब 2014 के चुनाव में भाजपा को मात्र 29 प्रतिशत महिला वोट ही मिले थे, लेकिन आंकड़ों के मुताबिक 2019 के चुनाव में यह प्रतिशत बढ़ कर 36 तक पहुंच गया। 


यही नहीं, 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तो भाजपा को 46 प्रतिशत महिला मत मिले। पितृसत्तात्मक भारतीय समाज के मद्देनजर यह भी बड़ा सकारात्मक बदलाव है कि महिलाएं वोट देने के लिए दल और उम्मीदवार का चयन खुद कर रही हैं। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के नारे के अलावा सार्वजनिक शोचालय, बैंक खाते, हर घर नल से जल और उज्ज्वला जैसी योजनाएं महिला मतदाताओं के बड़े वर्ग को आकर्षित करने में सफल रही हैं। भाजपाई मुख्यमंत्रियों ने भी महिला मतदाताओं को प्रभावित-लाभान्वित करने वाली योजनाएं लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। शिवराज सिंह चौहान के कुल मिलाकर 18 साल के मुख्यमंत्रित्वकाल के विरुद्ध सत्ता विरोधी भावना की बड़ी चर्चा थी, पर परिणामों में पासा पलटा नजर आया। ज्यादातर राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि लाडली बहना और लाड़ली लक्ष्मी जेसी योजनाओं व सस्ते गैस सिलेंडर के उपहार का रिटर्न गिफ्ट मामा के संबोधन से लोकप्रिय शिवराज को मिला। उनके 18 साल के शासन में महिलाओं को लाभान्वित करने वाली 21 योजनाएं लाई गई। उन्हें भी अहसास था कि लाड़ली बहना व लाडली लक्ष्मी गेमचेंजर साबित हो सकती हैं, इसीलिए 2023-24 के बजट में इनके लिए क्रमशः 8000 करोड़ और 929 करोड़ रुपए का प्रावधान किया। ऐन चुनाव से पहले लाडली बहना के तहत मिलने वाली मासिक राशि 1000 से बढ़ा कर 1250 रुपए की गई और उसे 3000 तक बढ़ाने का वादा भी किया गया। 

 छत्तीसगढ़ में शायद ही किसी को भाजपा की - जीत का विश्वास रहा हो, पर उसने अंतिम दिनों में. महतारी वंदन योजना में हर विवाहित महिला को 1000 रुपए मासिक देने का वांदा ही नहीं किया,  बाकायदा लाखों फॉर्म भी भरवा लिए और कार्यकर्ताओं ने फोन करके योजना के फायदे विस्तार से बताना शुरू कर दिया। आशंकित भूपेश बघेल सरकार ने भी 1250 रुपए मासिक वाली गृह 


लक्ष्मी योजना का वायदा किया, पर उसे घर-घर तक पहुंचाने का समय नहीं बचा था। राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने महिलाओं समेत कमोबेश सभी जरूरतमंद वर्गों के लिए चुनाव से चंद महीने पहले लोक लुभावन योजनाओं घोषणाओं की बारिश-सी कर दी थी, पर महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के आंकड़ों के सहारे भाजपा ने बाजी पलट दी। एनसीआरबी के आंकड़ों के जरिये भाजपा समझाने में सफल रही कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में राजस्थान देश भर में दूसरे स्थान पर है, इसलिए हर जिले में एक महिला थाना खोलने, हर पुलिस थाने में महिला डेस्क बनाने और एंटी रोमियो स्क्‍्वाड गठित करने के उसके वादों पर भरोसा किया जाना चाहिए। 

निश्चय ही मोदी की लोकप्रियता के अलावा संगठनात्मक क्षमता-सक्रियता, उम्मीदवार चयन और आक्रामक चुनाव प्रचार जैसे अन्य मुद्दे भी कारगर रहे ही होंगे, पर ऐसा लगता है कि महिला मतदाताओं के रुझान ने इन परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाई है और उसका भी सर्वाधिक श्रेय प्रधानमंत्री मोदी के उस मास्टर स्ट्रोक को जाता है, जो उन्होंने नए संसद भवन में आहत विशेष संसद सत्र में 33% महिला आरक्षण के रूप में लगाया। 

आलोचकों को भी यह तो मानना पड़ेगा कि मोदी की जनता की नब्ज पर गजब की पकड़ है। वह जानते हैं कि कब किन परिस्थितियों में कौन-सा दांव ॒ निर्णायक हो सकता है। मोदी पुराने चुनावी रुझानों 

का भी बारीकी से विश्लेषण करते हैं। शायद इसलिए भी उन्होंने देश की आधी आबादी को ही 


भाजपा का नया वोट बैंक बनाने की सुनियोजित दीर्घकालीन रणनीति बनाई। दरअसल अतीत में भी महिला मतदाताओं को केंद्र में रख कर चले गए चुनावी दांव अक्सर सफल रहे हैं। फिल्‍मी परदे से राजनीति में आई और तमिलनाडु की कई बार मुख्यमंत्री रहीं जयललिता सही मायने में महिला सशक्तीकरण में अग्रणी ओर प्रेरक मिसाल रहीं। अपनी कल्याणकारी योजनाओं के चलते अम्मा संबोधन से लोकप्रिय हुई जयललिता ने महिलाओं को पेश आने वाली सामाजिक मुश्किलों का ठोस समाधान पेश करते हुए उनके लिए ससम्मान जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया। जयललिता से ही प्रेरित होकर पहले ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिला केंद्रित कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी सभी महिलाओं को 500 रुपए मासिक की लक्ष्मी भंडार योजना शुरू कर बर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में अपने विरुद्ध बिछाई गई भाजपा की बिसात को पलट दिया था। 

सत्ता की राजनीति के दबाव में ही सही, 'नारी शक्ति की भक्ति' चुनावी सफलता का ऐसा मंत्र बन गया है, जिसकी अनदेखी कोई दल-नेता नहीं कर पाएगा। आधी आबादी की स्वतंत्र निर्णय क्षमता के साथ मतदान में बढ़ती भागीदारी सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है, पर ऐसी सुखद तस्वीर संसद व विधानसभाओं में भी उभरनी चाहिए, जहां महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी बहुत कम है।

ब्लॉग नाम - प्रेरणा डायरी। 
Website - prernadayari.blogspot.com
ब्लॉग राइटर - kedar lal ( K. S. Ligree)