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रविवार, 18 फ़रवरी 2024

अधिगम / सीखना /learrning पार्ट 3 -- नियम और सिद्धांत (Learning -Important low And theories of learning)


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2/9/2023
राजस्थान, भारत। 

आपके सामने आज पेश  है मेरी " प्रेरणा डायरी " (मोटीवेशन डायरी')  कि एक और खूबसूरत और बेहतरीन पोस्ट (26वीं) में | जो Learnings से सम्भंधित है। और खासी तथा बेहद महत्वपूर्ण है ! क्योकि एक इंसान या एक छात्र अपने जीवन में अपने "करियर" को कितनी ऊंचाई पर ले जाता है, ये काफी हद तक उसकी " Learnings habits पर  निर्भर करता है। मैं अपने शब्दों में लर्निग के महत्व को इंगित करते हुए कहूँ तो " सीखने की अच्छी आदतें (Good Learning Habits) इंसान को महान बनाती है"  अगर हम अपनी रोजमर्रा कि जीन्दगी में नज़र आने वाली छोटी-छोटी बातों को भी सीखे और उन पर अमल करें, तो हम निश्चित रूप से महान बन सकते हैं। Learning हमारी जिन्दगी, करियर और कामयाबी  को निर्धारित करने वाला  अहम Factor है । इसीलिए हम तथ्यो को learn करें, तथ्यो को याद करे ,उससे पहले   पहले यह जानना जरूरी है कि Learning क्या है...?पूरी लर्निग प्रोसेस को समझे बिना, अच्छी लर्निंग कि उम्मीद करना बेमानी होगी। इसीलिए मे लर्निंग कि 3 पोस्ट आपके सामने लेकर आया। जिनमे लर्निंग के हर हिस्से को छूने का पूरा प्रयास किया गया है। 

मेरी "प्रेरणादायक डायरी" --- "आपकी उमीदों कि उडान"


Learning पर  3 आर्टिकल प्रकाशित ( published) हुए है आर्टिकल, जिन्हें पढ़कर आप लर्निंग प्रक्रिया को पूरा समझ सकते है और इसमें अपने लिए फिट (Fit) बैढ़ने वाले नियम और सिधांतो  का उपयोग अपने जीवन के कर सकते हो । लर्निंग पर प्रकाशित 3 निम्न पोस्ट है---- 

1. Learning part -1-  arth, Defination, characteristics, Method , affecting factor, । 

2 . Learning part - 2 Low and theorise of 
learning ( इस पोस्ट में सीखने के दर्जनों नियमों का वर्णन किया गया है ) । 

3. Learning part - 3 
Lows and theories of Learning l 


आज learning  कि तीसरी और अंतिम पोस्ट (आर्टिकल) है जिसमें हम लर्निग के  शेष बचे अत्यंत महत्वपूर्ण नियमो को पढ़ेंगे।  पिछले आर्टिकल में  हमने थार्नडाइक के आठ सिहान्त और हल वे "प्रबलन" सिद्धान्त को पढ़ा ये सिधांत और आज के तीन  सिधांत सीखने कि प्रक्रिया में " मील का पत्थर कहे जाते है " आज हम जिन तीन  महत्वपूर्ण सिहान्तो का अध्ययन करगे- वो तीन सिद्धान्त निम्न है • 

1. सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त (conditioned Response Theory)   
-- क्लासिकल् थ्योरी। 
-- शास्त्रीय अनुबंधन। 
 -- पावलव (रुसी शरीरसास्त्रि - 1904 का नोबल पुरुस्कार विजेता। 
--- कुत्ते (Dog) पर अपने प्रयोग किये। 

2. सूझ या अन्तदृष्टि सिद्धान्त  (Insight Theory) 
 -- गैस्टाल्ट (Gestalt theory)। 
 -- गेस्टाल्टवाटी  अधिगम सिद्धान्त।
 --- gestalt जर्मनी शब्द। जिसका अर्थ है- "समग्र आकृति" या "संपूर्णकार"। 

 3.  क्रिया प्रसूत अधिगम सिद्धांत ( operant Conditioning theory ) 
 -- बी.एफ. स्कीनर | (B.F. SKinner )। 


पावलव, स्किनर और जर्मनी में उत्पन्न हुए गैस्टाल्ट वादी सिहान्त के प्रतिपादक वर्दीमर ,कोफका, कोहलर ने सीखने के महत्व पूर्ण सिहान्तो का प्रतिपादन किया जो हमारे लिए बेहद उपयोगी है । इन सिद्धांतो  के माध्यम से हम Learning process पूरा समझकर, लाभ उठा सकते है। तो आइये 
आज सबसे पहले पावलव (रूसी शरीरशास्त्री एवं मनौ वैज्ञानिक) के सिद्धान्त को पढ़ते हैं। जो लर्निग के लिए अहम है : --- 

1. सम्बध् - प्रतिक्रिया सिद्धांत(CONDITIONED RESPONSE THEORY) 

सम्बद्ध-प्रतिक्रिया सिद्धान्त का प्रतिपादन रूसी शरीरशास्त्री आई. पी. पावलव (I. P. Pavlov) ने किया था। इस मत के अनुसार-सीखना एक अनुकूलित अनुक्रिया है। बर्नार्ड के शब्दों में-"अनुकूलित अनुक्रिया उत्तेजना की पुनरावृत्ति द्वारा व्यवहार का स्वचालन है जिसमें उत्तेजना पहले किसी विशेष अनुक्रिया के साथ लगी रहती है और अन्त में वह किसी व्यवहार का कारण बन जाती है जो पहले मात्र रूप से साथ लगी हुई थी।" 

    "आशा कि किरनें"  --   मोटीवेशनल डायरी। 


2. पाॅवलोव के सिद्धांत का अर्थ :--

भोजन देखकर कुत्ते के मुँह से लार टपकने लगती है। यहाँ भोजन एक "स्वाभाविक उत्तेजक या उद्दीपक (Stimulus) है और कुत्ते के मुँह से लार टपकना एक स्वाभाविक क्रिया या सहज प्रक्रिया (Reflex Action) है। पर यदि किसी अस्वाभाविक उत्तेजक के कारण भी कुत्ते के मुँह से लार टपकने लगे तो, इसे 'सम्बद्ध सहज-क्रिया' या 'सम्बद्ध प्रतिक्रिया' (Conditioned Reflex or Response) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, अस्वाभाविक उत्तेजक के प्रति स्वाभाविक उत्तेजक के समान होने वाली प्रतिक्रिया को सम्बद्ध सहज-क्रिया कहते हैं। इसके अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम लैंडल के शब्दों में कह सकते हैं-"सम्बद्ध सहज-क्रिया में कार्य के प्रति स्वाभाविक उत्तेजक के बजाय एक प्रभावहीन उत्तेजक होता है, जो स्वाभाविक उत्तेजक से सम्बन्धित किये जाने के कारण प्रभावपूर्ण हो जाता है।" 
"In a conditioned reflex the natural stimulus to actions has been replaced by an otherwise ineffective stimulus which has become effective through association." 

3. पावलोव का प्रयोग : ----

पावलव का प्रयोग--- सम्बद्ध सहज-क्रिया के सिद्धान्त का सम्बन्ध शरीर-विज्ञान से है। इसके मानने वाले विशेष रूप से व्यवहारवादी (Behaviourists) हैं। उनका कहना है कि सीखना एक प्रकार से उद्दीपक और प्रतिक्रिया का सम्बन्ध है। इस विचार को सत्य सिद्ध करने के लिए रूसी मनोवैज्ञानिक, पावलव (Pavlov) ने कुत्ते पर एक प्रयोग किया। उसने कुत्ते को भोजन देने से पहले कुछ दिनों तक घण्टी बजाई। उसके बाद उसने भोजन न देकर केवल घण्टो बजाई। तब भी कुत्ते के मुँह से लार टपकने लगी। इसका कारण यह था कि कुत्ते ने घण्टी बजने से यह सीख लिया था कि उसे भोजन मिलेगा। घण्टी के प्रति कुत्ते को इस प्रतिक्रिया को पावलव ने सम्बद्ध सहज-क्रिया' की संज्ञा दी। 
कुत्ते  के समान बालक और व्यक्ति भी सम्बद्ध सहज-क्रिया द्वारा सीखते हैं। पके हुए आम या मिठाई को देखकर बालकों के मुँह में पानी आ जाता है। उल्टी करना अनेक व्यक्तियों में सहज किया है, पर अनेक में यह सम्बद्ध सहज-क्रिया भी है। पहाड़ पर बस में यात्रा करते समय कुछ व्यक्ति उल्टी करने लगते हैं। उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनको यात्रा प्रारम्भ होने से पहले ही उल्टी होने लगती है। कुछ लोग दूसरों को उल्टी करते हुए देखकर उल्टी करने लगते । 


उद्दीपक (भोजन) के आने की सूचना देने वाला बन जाता है। यहाँ एक उद्दीपक दूसरे उद्दीपक के घटित होने की संभावना को दर्शाता है।

4. इस सिद्धांत के हमारे देनिक जीवन में उदाहरण :----

---  आप खाना खाकर अभी-अभी तृप्त हुए है।अपने अच्छा भोजन किया है। तभी आप देखते है कि बगल की मेज पर एक मिठाई प्लेट रखी है गई । और मिठाई आपको पसंद है। अब आपके मुँह में अपने स्वाद का संकेत आ जाएगा। आपके मुख में लार आने लग जाती है। लार स्राव प्रारम्भ हो जाता है। यह एक अनुबंधित अनुक्रिया है।

---  शैशवावस्था में बच्चे तीव्र ध्वनि से स्वाभाविक रूप से डरते है। एक छोटा बच्चा फुला हुआ गुब्बारा पकड़ता है। जो तीव्र ध्वनि के साथ उसके हाथों में फट जाता है। बच्चा डर जाता है। अब अगली बार उसे गुब्बारा पकड़ाया जाता है। तो उसके लिए यह तीव्र ध्वनि का संकेत बन जाता है और भय की अनुक्रिया उत्पन्न करता है। अनुबंधित उद्दीपक के रूप में गुब्बारे एवं अननुबंधित उद्दीपक के रूप में तीव्र ध्वनि के साथ-साथ प्रस्तुत किया जाने के कारण ऐसा होता है। 

 5 . सिद्धांत के गुण/ विशेषताये : ---

सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त  शिक्षा में बहुत योगी सिद्ध हुआ है। इसकी पुष्टि इस सिद्धांत के निम्न गुणों से होती है--

1. इस सिद्धांत की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सिद्धांत सीखने कि स्वभाविक विधि बताता है। 

2. बालको के व्यवहार की व्याख्या करता है। 

3. यह बालको के भय को दूर करता है। 

4. बालक को वातावरण के साथ सामंजस्य बिठाने मे सहायता फहुचता है। 

5 .crow एंड crow  इस सिद्धांत के महत्व को पर्तिपाधित करते हुए कहते है कि यह सिद्धांत बालको में अच्छे व्यव्हार और उत्तम अनुसशन कि भावना का विकाश करता है। 

6. Crow and crow यह भी बताते है कि यह सिद्धांत, उन विषयों के लिए अति उपयोगी है जिनमे चिंतन कि आवसायकता नहीं होती जैसे---  सुलेख लिखना, fore line लिखना, अक्षर लिखना, आदि। 

7. यह सिद्धांत "समूह के निर्माण" में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। 


4. सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त (INSIGHTTHEORY) 


इस सिद्धान्त को समग्राकृति (Gestalt) सिद्धान्त भी कहते हैं। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जर्मन मनोवैज्ञानिक वर्दीमर, कोफ्का तथा कोहलर ने किया था। गेस्टाल्ट मत के अनुयायियों का कहना है कि-'एक गेस्टाल्ट या आकृति एक समग्र है जिसकी विशेषतायें पता लगाई जाती हैं।' इस सिद्धान्त को "सूझ या अन्तर्दृष्टि" का सिद्धान्त भी कहते हैं। 

(1) सिद्धान्त का अर्थ :----

हम कुछ कार्यों को करके सीखते हैं और कुछ को दूसरों को करते हुए देखकर सीखते हैं। कुछ कार्य ऐसे भी होते हैं, जिन्हें हम बिना बताए अपने आप सीख लेते हैं। इस प्रकार के सीखने को 'सूझ द्वारा सीखना' कहते हैं। इसका अर्थ स्पष्ट करते हुए गुड ने लिखा है-"सूझ, वास्तविक स्थिति का आकस्मिक, निश्चित और तात्कालिक ज्ञान है।" 



(2) कोहलर का प्रयोग :----

'सूझ द्वारा सीखने' के सिद्धान्त के प्रतिपादक जर्मनी के 'गेस्टाल्टवादी' हैं। इसीलिए, इस सिद्धान्त को 'गेस्टाल्ट-सिद्धान्त' (Gestalt Theory) कहते हैं। गेस्टाल्टवादियों का कहना है कि व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण परिस्थिति को अपनी मानसिक शक्ति से अच्छी तरह समझ लेता है और सहसा उसे ठीक-ठीक करना सीख जाता है। वह ऐसा अपनी सूझ के कारण करता है। इस सम्बन्ध में अनेक प्रयोग किए जा चुके हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध प्रयोग, कोहलर (Kohler) का है। 
कोहलर ने छः वनमानुषों को एक कमरे में बन्द कर दिया। कमरे की छत में एक केला लटका दिया गया और कुछ दूर पर एक बक्स रख दिया गया। वनमानुषों ने उछलकर केले को लेने का प्रयास किया, पर सफल नहीं हुए। उनमें एक वनमानुष का नाम सुलतान था। वह थोड़ी देर कमरे में इधर-उधर घूमा, बक्स के पास खड़ा हुआ, उसे खींचकर केले के नीचे ले गया, उस पर चढ़ गया और उछल कर केला ले लिया। सुलतान के इन सब कार्यों से सिद्ध हुआ कि उसमें सूझ थी, जिसने उसे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता दी। 
वनमानुष के समान बालक और व्यक्ति भी सूझ द्वारा सीखते हैं। सूझ का आधार कल्पना है। जिस व्यक्ति में कल्पना-शक्ति जितनी अधिक होती है, उसमें सूझ भी उतनी ही अधिक होती है और इसलिए उसे सफलता भी अधिक होती है। बड़े-बड़े दार्शनिकों, इंजीनियरों और राजनीतिज्ञों की सफलता का रहस्य उनकी सूझ ही है। 


(3) सिद्धान्त का शिक्षा में महत्व : ----

शिक्षा में 'सूझ द्वारा सीखने' के सिद्धान्त के महत्व को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है

1. यह सिद्धान्त रचनात्मक कार्यों के लिए उपयोगी है। 

2. यह सिद्धान्त, बालकों की बुद्धि, कल्पना और तर्क-शक्ति का विकास करता है।

3. यह सिद्धान्त, गणित जैसे कठिन विषयों के शिक्षण के लिए बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ है। 


4 . क्रोव एवं को (Crow and Crow) के अनुसार-यह सिद्धान्त-कला, संगीत और साहित्य की शिक्षा के लिए उपयोगी है। 

5.  स्किनर (Skinner) के अनुसार- यह सिद्धान्त, आदत और सीखने के यान्त्रिक स्वरूपों के महत्व को कम करता है। 

6. गेट्स तथा अन्य (Gates and Others) के अनुसार यह सिद्धान्त, बालक को स्वयं खोज करके ज्ञान का अर्जन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 

 
  मेरी "प्रेरणादायक डायरी ( मोटीवेशनल डायरी) -- ""दिल है                                                छोटा सा, छोटी सी आशा"



3 . क्रिया-प्रसूत अधिगम सिद्धान्त 
(SKINNER'S OPERANT CONDITIONING THEORY) :----

सीखने के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने में बी. एफ. स्किनर (B. F. Skinner) ने विशेष योगदान किया है। स्किनर ने दो प्रकार की क्रियाओं पर प्रकाश डाला- क्रिया-प्रसूत (Operant) तथा उद्दीपन प्रसूत (Stimulus)। जो क्रियाएँ उद्दीपन के द्वारा होती हैं वे उद्दीपन-आधारित होती हैं। क्रिया-प्रसूत सम्बन्ध उत्तेजना से होता है। 

(1) बी. एफ. स्किनर के प्रयोग :-----

(Experiments by B. F. Skinner) — बी. एफ. स्किनर ने अधिगम या सीखने के क्षेत्र में अनेक प्रयोग करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि अभिप्रेरणा (Motivation) से उत्पन्न क्रियाशीलता (Operant) ही सीखने के लिए उत्तरदायी है। 
स्किनर ने चूहों तथा कबूतरों आदि पर अनेक प्रयोग करके यह निष्कर्ष निकाला कि प्राणियों में दो प्रकार के व्यवहार पाये जाते हैं-अनुक्रिया (Respondent) तथा क्रिया-प्रसूत (Operant)। अनुक्रिया का सम्बन्ध उत्तेजना से होता है और क्रिया-प्रसूत का सम्बन्ध किसी ज्ञात उद्दीपन से नहीं होता। क्रिया-प्रसूत को केवल अनुक्रिया की दर से मापा जा सकता है। 
स्किनर ने चूहों पर प्रयोग किए। उसने लीवर (Lever) वाला बक्सा बनवाया। लीवर पर चूहे का पैर पड़ते ही खट् की आवाज होती थी। इस ध्वनि को सुन चूहा आगे बढ़ता और उसे प्याले में भोजन मिलता। यह भोजन चूहे के लिए प्रबलन (Reinforcement) का कार्य करता। चूहा भूखा होने पर प्रणोदित (Drived) होता और लीवर को दबाता। इस प्रयोग से स्किनर ने यह निष्कर्ष निकाले :--

1. लीवर दबाने की क्रिया चूहे के लिये सरल हो गई। 
2. लीवर बार-बार दबाया जाता, अत: निरीक्षण सरल हो गया। 
3. लीवर दबाने में अन्य क्रिया निहित नहीं थी। 
4. लीवर दबाने की क्रिया का आभास हो जाता था। 
निष्कर्ष यह है कि-'"यदि किसी क्रिया के बाद कोई बल प्रदान करने वाला उद्दीपन मिलता है तो उस क्रिया की शक्ति में वृद्धि हो जाती है। ' 
स्किनर ने "कबूतरों" पर भी क्रिया-प्रसूत अनुबंधन (Operant Conditioning) के प्रयोग किये। स्किनर द्वारा बनाये गये बक्से में कबूतरों को लीवर या कुंजी को दबाना सीखना था। पहले तो बक्से में हल्की प्रकाश व्यवस्था की गई। यह प्रयोग विभिन्न प्रकार की छः प्रकाश योजनाओं के अन्तर्गत किया गया। प्रयोगों का सामान्य सिद्धान्त यह निरूपित हुआ कि नवीन तथा पुराने, दोनों प्रकार के उद्दीपनों में क्रिया-प्रसूत की गई। प्रकाश व्यवस्था में परिवर्तन होने पर अनुक्रिया में आनुपातिक परिवर्तन हुआ। 
(2) क्रिया-प्रसूत सिद्धान्त (Theory of Operant Conditioning)–एम. एल. बिगी (M. L.. Bigge) ने स्किनर के क्रिया-प्रसूत सिद्धान्त के विषय में कहा है-"क्रिया-प्रसूत अनुबन्धन अधिगम की एक प्रक्रिया है जिसमें सतत् या संभावित अनुक्रिया होती है। ऐसे समय क्रिया-प्रसूतता की शक्ति बढ़ जाती है।" 
"Operant Conditioning is the learning process where by a response is made more probable or more frequent an operant is strengthened."  प्रयोगों के परिणामों के आधार पर बी. एफ. स्किनर (B. F. Skinner) ने कहा है-  व्यवहार प्राणी या उसके अंश की किसी संदर्भ में गति है, यह गति या तो प्राणी में स्वयं निहित होती है अथवा किसी बाहरी उद्देश्य या शक्ति के क्षेत्र से आती है। 
"Behaviour is the movement of an organism or of its part in a frame of reference provided by the organism itself or by external objects or field or force." 

(3) किया प्रसूत अनुबन्ध और शिक्षा :-- (OperantConditioning and Education) 

क्रिया-प्रसूत अधिगम का शिक्षा में इस प्रकार प्रयोग किया जाता है
1. सीखने का स्वरूप प्रदान करना (Shaping the Behaviour)– शिक्षक, इस सिद्धान्त के द्वारा सौखे जाने वाले व्यवहार को स्वरूप प्रदान करता है। वह उद्दीपन पर नियंत्रण करके वांचित व्यवहार का सृजन करता है। 

2. शब्द भण्डार (Vocabulary)-इस सिद्धान्त का प्रयोग बालकों के शब्द भण्डार में वृद्धि के लिये किया जा सकता है। 

3. अभिक्रमित अधिगम (Programmed Learning)—सोखने के क्षेत्र में अभिक्रमित अधिगम एक महत्वपूर्ण विधि विकसित हुई है। इस विधि को क्रिया-प्रसूत अनुबंधन द्वारा गति प्रदान की जा सकती है। 

4. निदानात्मक शिक्षण (Remedial Training) क्रिया-प्रसूत सिद्धान्त जटिल (Complex) व्यवहार वाले तथा मानसिक रोगियों को वांछित व्यवहार के सीखने में विशेष रूप से सहायक हुआ है। 

5. परिणाम की जानकारी (Knowledge of Result)– स्किनर का विचार है कि यदि व्यक्ति की कार्य के परिणामों की जानकारी हो तो उसके सीखने के भावी व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। गृहकार्य के संशोधन का भी छात्र के सीखने की गति तथा गुण पर प्रभाव पड़ता है। 

6. पुनर्बलन (Reinforcement)—क्रिया-प्रसूत अधिगम में पुनर्बलन का महत्व है। अधिकाधिक अभ्यास द्वारा क्रिया को बल मिलता है। 

7. संतोष (Satisfaction)—स्किनर कहता है कि जब भी काम में सफलता मिलती है तो संतोष प्राप्त होता है और यह संतोष क्रिया को बल प्रदान करता है। 

8. पद विभाजन (Small Steps) क्रिया प्रसूत अधिगम में सीखे जाने वाली किया को अनेक छोटे-छोटे पदों में विभक्त किया जाता है। शिक्षा में इस विधि के प्रयोग से सीखने में गति तथा सफलता, दोनों मिलते हैं। 


Learning Questionariy 
  अधिगम / learning - से संंभन्धित महत्वपूर्ण, बेहतरीन और नायाब प्रस्न - उतर ( question-answer) 



Question 1. किसे कहते है learning / सीखना..?

उत्तर- सीखना एक निरन्तर चलने वाली सार्वभौमिक प्रक्रिया है । एक व्यक्ति जन्म से ही सीखना प्रारम्भ कर देता है और मृत्यू पारियंत् कुछ ना कुछ सीखता रहता है । 
सीखना जर्मन भाषा के 'Lernen" से बना है। इसे अंग्रेजी भाषा में  Learning  कहते हैं। इसी को "आधिगम" और "याद करना" नामों से भी जाना जाता है। 
Learning का सीधा और सटीक तातपर्य है " अभ्यास और अनुभवों के द्वारा अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना" --- जैसे 
एक छोटे बालक ने पहली बार चाकू देखा तो उसे उठा लिया और खेलने लगा जिससे उसका हाथ जख्मी हो गया। कुछ दिन बाद वह फिर से खेलते-खेलते रसोई घर तक पहुंच गया। वहाँ बालक ने फर्श पर पड़ा हुआ 'एक चाकू देखा और एक बार फिर वो उसे उठाने लगा पर जैसे ही उसका हाथ बड़ा, अचानक उसे ध्यान आ गया कि पिछली बार खेलते समय उसने ऐसी ही नुकीली वस्तु को उठाया था और उसका हाथ कट गया था। वह एकदम से अपना हाथ रोक लेता है । क्योंकि उसने अपने पुराने अनुभव के आधार पर यह सीख लिया कि  (चुकीली वस्तु) से खेलने पर हाथ था शरीर के अंग कट सकते हैं। जख्मी हो सकते हैं। .तो दोस्तो व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर अपने व्यवहार में जो परिर्वतन लाता है यही तो अधिगम(Learning) है। 


Question 2. क्या क्या विशेषतायें होतीं हैं Learning कि..? 

उत्तर  'दोस्तो Learning एक महत्वपूर्ण TOPIK (बिन्दु है) जो एक इंसान के अनेक मानको को तय करता है । इसिलिए लर्निंग एक रिसर्च, का विषय है। लर्निंग कि प्रमुख विशेषताएँ 
निम्न प्रकार से है --- 

1. "Learning is Discovery" अर्थात सीखना खोज करना है। 
2. Learning के दुवारा व्यक्ति अपने व्यवहार में प्रगतिशील परिवर्तन लाने में सक्षम होता है। 

 3.  सीखना (learning ) जीवन पर्यन्ट चलने वाली एक सहत प्रक्रिया है । 

4. अधिगम एक सार्वभौमिक (universal) प्रक्रिया है- 
एक ब्यक्ति कभी भी ,कहीं भी, कुछ भी ,सींख सकता है, ट्रेन में सफर करते हुए भी आप कुछ अनुभव करते हुए  उनसे  सीख सकते हैं। आप पैदल चलते हुए भी सीख सकते है।नहाते हुए , घूमते हुए, खाते हुए, लेट हुए, कही भी, कैसे भी, कोई भी सीख सकता है। क्युकी सीखना सर्वभोमिक है। 

5. Learning -  ज्ञानात्मक, भावात्मक, कियात्मक तीनों प्रकार के गुणों से युक्त प्रक्रिया है। 

6.  सीखना विवेकपूर्ण और लक्ष्य निर्देशित प्रक्रिया है. 

7. सीखना समायोजन (Adjustment) में सहायता करता है। 
8. अधिगम व्यक्ति के सर्वागिण विकास में सहायक होता है। 

Question 3. अधिगम (Learning) कितने प्रकार का होता है.? 

 उत्तर-- अधिगम/ सीखना/ Learning:- दो प्रकार का होता है--

1. गत्यात्मक  (Dynamik Learning) -- जब भी व्यक्ति शारीरिक रूप से गतिशील रहकर अधिगम करता है तो इसे गत्यात्मक, अधिगम कहा जाता है। इसे पेशीय या क्रियात्मक अधिगम भी कहा आता है  जैसे -- क्रिकेट खेलना, खेतों में काम करना, साइकिल चलना, टाइप करना दौडना, चलना आदि। 

2. संज्ञानवादी (congnitive Learning) 

ऐसी Learning  जिनको व्यक्ति अपनी ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से ग्रहण करता है। समस्या समाधान करते हुए जो ज्ञान प्राप्त होता है वो भी इसी श्रेणी में आता है, इसलिए इसको समास्या समाधान अधिगम भी कहते है - जैसे - किसी समस्या को हल करना चिन्तन करना, मनन करना, किसी कार्य कि योजना बनाना, भाषण तैयार करना, planing करना से सभी क्रियाए संज्ञानवादी learning में आती है। 


Question 4. मनोवज्ञानिक असुबेल ने लेर्निंग के कितने प्रकार बताये है..? 

उत्तर :-- आसुबेल ने मनोविज्ञान और खासकर, लनिंग पर अनेक उपयोगी अनुसंधान (रिसर्च) किये है, जिनमें उन्होंने लेर्निंग को चार प्रकारों में बाँटा है-- 

1. अभिग्रहण अधिगम (Reception learning) जैसे--लिख लिख कर याद करना, सीखना । 

2. अनवेषण अधिगम् (Discovery Learning) 

3. रटकर सीखना (Rote hearning)

4. अर्थपूर्ण सीखना ( meaningful Learning)


 Question 5. कौन कौन से कारक (factor) है, जो learning को प्रभावित करते है.? 

उत्तर : दोस्तो नमस्कार । अधिगम (Learning) एक विस्तृत प्रक्रिया है, जो बहुत से तत्वों से प्रभावित होती है अर्थात ये वो कारक है जो learning प्रक्रिया को या तो बढ़ा देते है, या घटा देते है। आइये देखते है, इन कारको (Factors) को :----

1. सीखने की इच्छा ( villingness of learn) 

2. प्रेरणा ( motivation) 

3. विषय समग्री ( subject matter) 

4 . शिक्षण विधि (Teaching Method )

5. बुद्धि और स्मरण शक्ति (Intelligence or memory ) 

6. सीखने का समय (Time of Learning) 

7. वातावरण (environment) आदि प्रमुख कारक (factor) है, सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करते है। 


Question - 6. क्या अंतर है "रटने' और सीखने में..? 

उत्तर : → रटना (Rote) 

यह एक तरह का बैंकिंग मोडल है- जैसे बैंको में तथ्यो को इक्ट्ठा (स्टोर) किया जाता है, वैसे ही एक छात्र तथ्यों को याद कर अपने दिमाग में एकत्रित कर लेते है और जरूरत पढ़ने पर इन तथ्यों को उपयोग में लिया जाता है।

सीखना :-- 

इस तरह कि Learning एक तरह का 'प्रोग्रामिंग' मॉडल है। जिसमें निर्देशो कि एक श्रृंखला कार्य करती है। सीखने में तर्क-वितर्क और सोचने समझने कि आवश्यकता होती है। हर बच्चे कि सीखने कि क्षमता अलग-अलग होती है. कुछ बच्चे तीव्र गति से सीखते हैं और कुछ धीमी गति से | पर सभी कुछ ना कुछ सीखते है यही सिस्टम "प्रोगामिंग मॉडल कहलाता है। 



ब्लॉग - प्रेरणा डायरी। 

वेबसाइट - prernadayari.blogspot.com

राइटर - kedar lal  ( k. S. Ligree)