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शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

क्या होता है सीखना..? Learning -- अर्थ, परिभाषा, विशेषता, प्रभावित करने वाले कारक, विधियाँ। PART-- 1


मेरी "प्रेरणा डायरी" कि आज कि 24 वीं पोस्ट न केवल स्टूडेंट और युवा बाल्कि हर उस इंसान के लिए खास होने वाली है जो अपने जीवन में कुछ सीखना । Learning करना । आदिगम करना । याद करना चाहता है । सफल होना चाहता है। कामयाबी का स्वाद चखना चाहता है। दोस्तो अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रेरणा (motivation) के साथ आपको यह समझना होगा कि ये सीखने कि पूरी प्रक्रिया क्या यह सीखना क्या है..?  सीखने का अर्थ और परिभाषा क्या है..?हम कैसे सीखते है ? कितना सीखतें है... कब सीखते है...? इसकी खास बातें ,विशेषता क्या है ..? सीखने कि विधियाँ कौन कौन सी है..? नियम क्या ह... ? सीखने के सिद्धान्त क्या..." ? यानी अच्छी Learning से पहले आपको यह समझना होगा कि लर्निंग क्या है...?? इसके हर पहलू हर पक्ष को समझना होगा । क्योंकि अच्छी learning hebit आपको सफ़लता दिलाती है। सफलता में learning केपैसिटी का बड़ा रोल है। क्योंकि जब तक हम अच्छा सीखगे नहीं, याद नहीं करगे, Learn नहीं करगे तब तक हम सफ़ल या कामयाबा कैसे बन सकते है....? "सीखना" हिन्दी शब्द है । इसे अंग्रेजी में Learning कहा जाता है। इसे "अधिगम भी कहते है। इसी को "याद करना" भी कहते है। सबका एक ही मतलब है --  Learning / सीखना /अधिगम/याद करना/
सीखने ( Learning) में प्रेरणा (motiation )का important रोल है। "आप जितने motivate होंगे उतना ही अच्छा सिखगे" प्रेरणा नयी बाते सीखने के लिए प्रोत्साहित करती है । Learning process को हम 3 पोस्टों मे समझेंगे
 (part-1-2-3) आज कि पोस्ट में हम शुरूआत करगे और Learning के सुरुआती पॉइंट्स को जानने का प्रयास करेंगे
आज कि पोस्ट में---


1. Learning  -  प्रक्रिया । 
2. Learning- अर्थ, परिभाषा । 
3. Learning - विशेषताएं। 
4. Learning-  प्रभावित करने 
वाले कारक | 
5. Learning  -  प्रभावसाली विधियाँ। 


दोस्तो सीखने का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है इसकी कि खास बात यह है कि "हम सीख कर ही सफल हो सकते है" ।  आप लर्निंग को समझ रहे हो।तो सोच लेना कि कामयाबी के ""मील के पत्थर को समझ रहे हो"" । Learning (सीखना) एक विस्त्रत प्रक्रिया और Research का विषय है । इसीलिए मैने अपने आर्टिकल को लिखने में कुछ पुस्तको  कि मदद ली है। तो आइये शुरू करते है Learning process को --


शिखने कि प्रक्रिया :---- 
(PROCESS OF LEARNING) 

प्रत्येक व्यक्ति नित्यप्रति अपने जीवन में नये-नये अनुभव एकत्र करता रहता है। ये नवीन अनुभब , व्यक्ति के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करते हैं। इसलिये ये अनुभव तथा इनका योग ही सीखना या अधिगम करना कहलाता है। 
मनोवैज्ञानिकों ने सीखने को मानसिक प्रक्रिया माना है। यह क्रिया जीवनभर निरन्तर चलती  रहती है। 
सीखने की प्रक्रिया की दो मुख्य विशेषताएँ हैं  -निरन्तरता और सार्वभौमिकता। यह प्रक्रिया सदैव और सर्वत्र चलती रहती है। इसलिए, मानव अपने जन्म से मृत्यु तक छ-न-कुछ सीखता रहता है। उसकी सीखने की प्रक्रिया में विराम और अस्थिरता की वस्था कभी नहीं आती है। हाँ, इतना अवश्य है कि उसकी गति कभी तीव्र और कभी मंद हो ती है। इसके अतिरिक्त, मानव के सीखने का कोई निश्चित स्थान और समय नहीं होता है। हर घड़ी और हर जगह कुछ-न-कुछ सीख सकता है। वह न केवल शिक्षा संस्था में, वरन परिवार , समाज, संस्कृति, सिनेमा, सड़क, पड़ोसियों, संगी-साथियों, अपरिचित व्यक्तियों,  स्थानों-सभी से थोड़ी या अधिक शिक्षा ग्रहण करता है। इस प्रकार, वह आजीवन बता हुआ और इसके फलस्वरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन करता हुआ, जीवन में आगे  चला जाता है। इसलिए, वुडवर्थ ने कहा है-“सीखना, विकास की प्रक्रिया है।" 
"Learning is a process of development." 
--Woodworth (p. 281) 



सीखने का अर्थ और परिभाषा :----
(MEANING AND DEFINITION OF LEARNING) 

'सीखना' किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। हम अपने हाथ में आम लिये चले रहे हैं। कहीं से एक भूखे बन्दर की उस पर नजर पड़ती है। वह आम को  हमारे हाथ से छीन ले जाता है। यह भूखे होने की स्थिति में आम के प्रति बन्दर की प्रतिक्रिया है। पर वह क्रियास्वाभाविक (Instinctive) है, सीखी हुई नहीं। 
इसके विपरीत, बालक हमारे हाथ में आम देखता है। वह उसे छीनता नहीं है, वरन् साथ फैलाकर माँगता है। आम के प्रति बालक की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक नहीं, सीखी हुई है। जन्म के कुछ समय बाद से ही उसे अपने वातावरण में कुछ-न-कुछ सीखने को मिल जाता है। पहली बार आग को देखकर वह उसे छू लेता है और जल जाता है। फलस्वरूप, उसे एक नय अनुभव होता है। अतः जब वह आग को फिर देखता है, तब वह आग से दूर रहता है। इस प्रकार, "सीखना-अनुभव द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।"

हम सीखने' के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं,

1. एस्किनर - "सीखना, व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।" "Learning is a process of progressive behaviour adaptation."

2. वुडवर्थ  2. वुडवर्थ-"नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया, सीखने की प्रक्रिया है।"
"The process of acquiring new knowledge and new responses is the process of learning." -Woodworth (pp. 281-282)

3. क्रो & क्रो  क्रो व क्रो-  "सीखना-आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है। "Learning is the acquisition of habits, knowledge and attitudes."
-Crow and Crow (p. 225)

4. गेट्स व अन्य "सीखना, अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन

 5. क्रन्वेल "सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा व्यक्त होता है। "
"Learning is shown by a change in behaviour as a result of experience 

6. मार्गन एवं गिलीलैण्ड-  "सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप प्राणी के व्यवहार में परिमार्जन है जो प्राणी द्वारा कुछ समय के लिये धारण किया जाता है।"
"Learning is some modification in the behaviour of the organism as a result of experience which is retained for atleast a certain period of time. -Morgan and Gillidand.

इन परिभाषाओं का विश्लेषण करके हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सीखना, क्रिया द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है, व्यवहार में हुआ यह परिवर्तन कुछ समय तक बना रहता है, यह परिवर्तन व्यक्ति के पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है।

सीखने की विशेषताये:---
(CHARACTERISTICS OF LEARNING)
योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson) के अनुसार-सीखने की सामान्य
विशेषताएँ इस प्रकार है--

1.  सीखना- सम्पूर्ण जीवन चलाता है (All Living in Learning)-सीखने की आजीवन चलती है। व्यक्ति अपने जन्म के समय से मृत्यु तक कुछ-न-कुछ सीखता 

2. सीखना- परिवर्तन है (Learming is Change) व्यक्ति अपने और दूसरों के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार, विचारों, इच्छाओं, भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है।  गिलफोर्ड (Guilord, General Psychology. p. 343) के अनुसार-"सीखना व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन है।" 

3. सीखना-सार्वभौमिक है (Learning is Universal) सीखने का गुण केवल मनुष्य में ही नहीं पाया जाता है। वस्तुत: संसार के सभी जीवधारी पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े आदि सभी सीखते है। 

4. सीखना- विकास है (Learning is Growth) व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाओं और अनुभवों के द्वारा कुछ न कुछ सीखता है। फलस्वरूप, उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है। सीखने की इस विशेषता को पेस्टालॉजी (Pestalozzi) ने वृक्ष और फ्रांबेल (Froebel) ने उपवन का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है। 

5. सीखना- अनुकूलन है (Learming is Adjustment) सीखना, वातावरण से अनुकूलन करने के लिए आवश्यक है। सीखकर ही व्यक्ति, नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है। जब वह अपने व्यवहार को इनके अनुकूल बना लेता है, तभी वह कुछ सोख पाता है। गेट्स एवं अन्य (Gates and Others) (p. 299) का मत है-"सीखने का सम्बन्ध स्थिति के क्रमिक परिचय से है।" 

6. सीखना-नया कार्य करना है (Leaning is Doing Something New)वुडवर्थ  के अनुसार-सीखना कोई नया कार्य करता है। पर उसने उसमें एक शर्त लगा दी है। उसका कहना है कि सीखना, नया कार्य करना तभी है, जबकि यह कार्य फिर किया जाय और दूसरे कार्यों में प्रकट हो। 

 7. सीखना-अनुभवों का संगठन है (Learning is Organization of Experiences) सीखना न तो नये अनुभव की प्राप्ति है और न पुराने अनुभवों का योग, वरन् नये और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति नये अनुभवों द्वारा नई बातें सीखता जाता है, वैसे-वैसे वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता 


8. सीखना-उदेश्यपूर्ण है (Learning is Purposive) सीखना, उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रवल होता है, सीखने की क्रिया उतनी ही अधिक तीव्र होती है। उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है। पर्सेल (Mursell, Successful Teaching, D. 56) के अनुसार-"सीखने के लिए उन्लेजित और निर्देशित उद्देश्य की अति आवश्यकता है और ऐसे उद्देश्य के बिना सीखने में असफलता निश्चित है।" 

9 . सीखना- विवेकपूर्ण है (Learning is Intelligent) मसेल (Mursell) का कथन है कि सीखना, यांत्रिक कार्य के बजाय विवेकपूर्ण कार्य है। उसी बात की शीघ्रता और सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि या विवेक का प्रयोग किया जाता है। बिना सोचे समझे किसी बात को सीखने में सफलता नहीं मिलती है। पर्सेल के शब्दों में-"सीखने की असफलताओं का कारण समझने की असफलताएँ हैं।" 

10.  सीखना-सक्रिय है (Learning is Active)- सक्रिय सीखना ही वास्तविक सोखना है। बालक तभी कुछ सीख सकता है, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। यही कारण है कि डाल्टन प्लान, प्रोजेक्ट मेथड आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियाँ, बालक की क्रियाशीलता पर बल देती हैं।

11. सीखना- व्यक्तिगत व सामाजिक, दोनों है (Learning is both Individual and Social) सोखना व्यक्तिगत कार्य तो है ही, पर इससे भी अधिक समाजिक कार्य है। योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson. p. 60) के अनुसार-"सीखना सामाजिक है, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।"
सीखना- वातावरण की उपज है (Learning is a Product of Environment)सीखना रिक्तता में न होकर, सदैव उस वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में होता है, जिसमें व्यक्ति रहता है। बालक का सम्बन्ध जैसे वातावरण से होता है, वैसी ही बातें वह सीखता है।
कारण है कि आजकल इस बात पर बल दिया जाता है कि विद्यालय इतना उपयुक्त और प्रभावशाली वातावरण उपस्थित करे कि बालक अधिक-से-अधिक अच्छी बातों को सीख सके।

12. सीखना - खोज करना है (Leaning is Discovery)- वास्तविक सीखना किसी बात की खोज करना है। इस प्रकार के सीखने में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के प्रयास करके स्वयं एक परिणाम पर पहुँचता है। मर्सेल का कथन है-"सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है, जिसे एक व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है।"


सीखने को प्रबावित  वाले कारक :-- 

(FACTORS OR CONDITIONS INFLUENCING LEARNING)

ऐसे अनेक कारक या दशाएँ हैं, जो सीखने की प्रक्रिया में सहायक या बाधक सिद्ध होते हैं। इनका उल्लेख करते हुए सिम्पसन ने लिखा है- "अन्य दशाओं के साथ-साथ सीखने की कुछ दशाएँ हैं- उत्तम स्वास्थ्य, रहने की अच्छी आदतें, शारीरिक दोषों से मुक्ति, अध्ययन की अच्छी आदतें, संवेगात्मक सन्तुलन, मानसिक योग्यता, कार्य सम्बन्धी परिपक्वता, वांछनीय दृष्टिकोण और रुचियाँ, उत्तम सामाजिक अनुकूलन, रूढ़िबद्धता और अन्धविश्वास से मुक्ति।" हम इनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारकों पर प्रकाश डाल रहे हैं, यथा

1. विषय-सामग्री का स्वरूप (Nature of Subject-matter)—सीखने की क्रिया पर सीखी जाने वाली विषय सामग्री का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता कठिन और अर्थहीन सामग्री की अपेक्षा सरल और अर्थपूर्ण सामग्री अधिक शीघ्रता और सरलता से सीख ली जाती है। इसी प्रकार, अनियोजित सामग्री की तुलना में 'सरल से कठिन की ओर' (From Simple to Difficult) सिद्धान्त पर नियोजित सामग्री सीखने की क्रिया को सरलता प्रदान करती है।

2. बालकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health of Children) -जो छात्र, शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होते हैं, वे सीखने में रुचि लेते हैं और शीघ्र सीखते हैं। इसके विपरीत, शारीरिक या मानसिक रोगों से पीड़ित छात्र सीखने में किसी प्रकार की रुचि नहीं लेते हैं। फलतः वे किसी बात को बहुत देर में और कम सीख पाते हैं।  

3. परिपक्वता (Maturation)—शारीरिक और मानसिक परिपक्वता वाले छात्र नये पाठ को सीखने के लिए सदैव तत्पर और उत्सुक रहते हैं। अतः वे सीखने में किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं करते हैं। यदि छात्रों में शारीरिक और मानसिक परिपक्वता नहीं होती है, तो सीखने में उनके समय और शक्ति का नाश होता है। कोलेसनिक के अनुसार-"परिपक्वता और सीखना पृथक प्रक्रियाएँ नहीं हैं, वरन् एक-दूसरे से अविच्छिन्न रूप में सम्बद्ध और एक-दूसरे पर निर्भर हैं।"

4. सीखने का समय व थकान (Time of Learning and Fatigue)—सीखने का समय सीखने की क्रिया को प्रभावित करता है; उदाहरणार्थ, जब छात्र विद्यालय आते हैं, तब स्फूर्ति होती है। अतः उनको सीखने में सुगमता होती है। जैसे-जैसे शिक्षण के घण्टे बीतते हैं, वैसे-वैसे उनकी स्फूर्ति में शिथिलता आती जाती है और वे थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामतः उनकी सीखने की क्रिया मन्द हो जाती है।
उनमें जाते

5. सीखने की इच्छा (Will to Learn)--यदि छात्रों में किसी बात को सीखने की इच्छा होती है, तो वे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उसे सीख लेते हैं। अतः अध्यापक का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वह छात्रों की इच्छा शक्ति को दृढ़ बनाये। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे उनकी रुचि और जिज्ञासा को जाग्रत करना चाहिए।

6. प्रेरणा (Motivation) सीखने की प्रक्रिया में प्रेरकों (Motives) का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रेरक, बालकों को नई बातें सीखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अत: यदि अध्यापक चाहता है कि उसके छात्र नये पाठ को सीखें, तो वह प्रशंसा, प्रोत्साहन, प्रतिद्वन्द्विता आदि विधियों का प्रयोग करके उनको प्रेरित करे। स्टीफेन्स  के विचारानुसार- "शिक्षक के पास जितने भी साधन उपलब्ध हैं, उनमें प्रेरणा सम्भवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।"

7. अध्यापक व सीखने की प्रक्रिया (Teacher and Learning Process) – सीखने की प्रक्रिया में पथ-प्रदर्शक के रूप में शिक्षक का स्थान अति महत्वपूर्ण है। उसके कार्यों और विचारों, व्यवहार और व्यक्तित्व, ज्ञान और शिक्षण-विधि का छात्रों के सीखने पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इन बातों में शिक्षक का स्तर जितना ऊँचा होता है, सीखने की प्रक्रिया उतनी ही तीव्र और सरल होती है।

8. सीखने का उचित वातावरण (Favourable Learning Atmosphere) – सीखने की क्रिया पर न केवल कक्षा के अन्दर के, वरन् बाहर के वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। कक्षा के बाहर का वातावरण शान्त होना चाहिए। निरन्तर शोरगुल से छात्रों का ध्यान सीखने की क्रिया से हट जाता है। यदि कक्षा के अन्दर छात्रों को बैठने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है, और यदि उसमें वायु और प्रकाश की कमी है, तो छात्र थोड़ी ही देर में थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामतः उनकी सीखने में रुचि समाप्त हो जाती है। कक्षा का मनोवैज्ञानिक वातावरण (Psychological Climate) भी सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यदि छात्रों में एक-दूसरे के प्रति सहयोग और सहानुभूति की भावना है, तो सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ने में सहयोग मिलता है।

9. सीखने की विधि (Learning Method)—सीखने की विधि का सम्बन्ध छात्र और विषय, दोनों से है। यह विधि जितनी ही अधिक रुचिकर और उपयुक्त होती है, सीखना उतना ही अधिक सरल होता है। इसलिए प्रारम्भिक कक्षाओं में 'खेल' (Play) और 'करके सीखना' (Learning by Doing) विधियों का, और उच्च कक्षाओं में 'पूर्ण' (Whole), 'सामूहिक (Collective) और 'सहसम्बन्ध' (Correlation) विधियों का प्रयोग किया जाता है।


10. सम्पूर्ण परिस्थिति (Total Situation)–बालक के सीखने को प्रभावित करने वाले तत्व उस पर पृथक् रूप के बजाय सामूहिक रूप से प्रभाव डालते हैं। अतः सीखने की सम्पूर्ण परिस्थिति का विद्यालय में होना आवश्यक है। विद्यालय की सम्पूर्ण परिस्थिति का बालक के बाह्य तथा समाज के सामान्य जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहिए। रायबर्न के अनुसार- "उस सम्पूर्ण परिस्थिति का, जिसमें बालक अपने को विद्यालय में पाता है, जीवन से जितना ही अधिक सम्बन्ध होता है, उतना ही अधिक सफल और स्थायी उसका सीखना है। 

इन कारणों या दशाओं के वर्णन से यह स्पष्ट है कि सीखना तभी प्रभावशाली हो सकता है जबकि ये दशाएँ अनुकूल हों। अनुकूल होने की परिस्थितियों में सीखने की क्रिया सबल एवं प्रभावयुक्त हो जाती है। 


 सीखने की प्रभावसाली विधियाँ

(EFFECTIVE METHODS OF LEARNING)

 किसी नई क्रिया या नये पाठ को सीखने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। हम इनमें से केवल उन विधियों का वर्णन कर रहे हैं, जिनको मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर अधिक उपयोगी और प्रभावशाली पाया गया है। ये विधियाँ इस प्रकार हैं

1. करके सीखना (Learning by Doing) डॉ. मेस (Dr. Mace) का कथन है- "स्मृति का स्थान मस्तिष्क में नहीं, वरन् शरीर के अवयवों में है। यही कारण है कि हम करके सीखते हैं। " 


"The seat of the memory is not in the mind, but in the muscular system. We learn by doing." 

-Quoted by Pryns Hopkins: Aids to Successful Teaching (p. 154) बालक जिस कार्य को स्वयं करते हैं, उसे वे जल्दी सीखते हैं। कारण यह है कि उसे करने में वे उसके उद्देश्य का निर्माण करते हैं, उसको करने की योजना बनाते हैं और योजना को पूर्ण करते हैं। फिर, वे यह देखते हैं कि उनके प्रयास सफल हुए हैं या नहीं। यदि नहीं, तो वे अपनी गलतियों को मालूम करके, उनमें सुधार करने का प्रयत्न करते हैं। 

2. निरीक्षण करके सीखना (Learning by Observation) -योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson, p. 58) ने लिखा है-"निरीक्षण सूचना प्राप्त करने, आधार सामग्री (Data) एकत्र करने और वस्तुओं तथा घटनाओं के बारे में सही विचार प्राप्त करने का साधन है।" बालक जिस वस्तु का निरीक्षण करते हैं, उसके बारे में वे जल्दी और स्थायी रूप से सीखते हैं। इसका कारण यह है कि निरीक्षण करते समय वे उस वस्तु को छूते हैं, या प्रयोग करते हैं, या उसके बारे में बातचीत करते हैं। इस प्रकार, वे अपनी एक से अधिक इन्द्रियों का प्रयोग करते हैं। फलस्वरूप, उनके स्मृति पटल पर उस वस्तु का स्पष्ट चित्र अंकित हो जाता है। 

3. परीक्षण करके सीखना (Learning by Experimenting) नई बातों की खोज करना, एक प्रकार का सीखना है। बालक इस खोज को परीक्षण द्वारा कर सकता है। परीक्षण के बाद वह किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है। इस प्रकार, वह जिन बातों को सीखना है, वे उसके ज्ञान का अभिन्न अंग हो जाती है, उदाहरणार्थ, वह इस बात का परीक्षण कर सकता है कि गी का ठोस और तरल पदार्थों पर क्या प्रभाव पड़ता है। वह इस बात की पुस्तक में पढ़कर भी सीख सकता है। पर यह सीखना उतना महत्वपूर्ण नहीं होता है, जितना कि स्वयं परीक्षण करके सीखना। 

4. सामूहिक विधियों द्वारा सीखना, (Learning by Group Methods)- सीखने का कार्य - व्यक्तिगत (Individual) और सामूहिक विधियों द्वारा होता है। इन दोनों में सामूहिक विधियों को अधिक उपयोगी और प्रभावशाली माना जाता है। इनके सम्बन्ध में कोलसनिक (Kolesnik. p. 376) की धारणा इस प्रकार है-"बालक को प्रेरणा प्रदान करने से शैक्षिक लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता देने, उसके मानसिक स्वास्थ्य की उत्तम बनाने, उसके सामाजिक समायोजन को अनुप्राणित करने, उसके व्यवहार में सुधार करने और उसमें आत्मनिर्भरता तथा सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए व्यक्तिगत विधियों की तुलना में सामूहिक विधियाँ कहीं अधिक प्रभावशाली हैं।" मुख्य सामूहिक विधियाँ निम्नांकित हैं

(1) वाद विवाद विधि (Discussion Method) इस विधि में प्रत्येक छात्र की अपने विचार व्यक्त करने और प्रश्न पूछने का अवसर दिया जाता है। 

(ii) वर्कशॉप विधि (Workshop Method)--इस विधि में विभिन्न विषयों पर सभाओं का आयोजन किया जाता है और इन विषयों के हर पहलू को छात्रों द्वारा अध्ययन किया जाता है। 

3 सम्मेलन व विचार गोष्टी विधियाँ (Conference and Seminar Methods). से किसी विशेष विषय पर छात्रों द्वारा विचार विनिमय किया जाता है। (iv) प्रोजेक्ट, डाल्टन व बेसिक विधियाँ (Project, Dalton and Basic Methods) इन आधुनिक विधियों में व्यक्तिगत और सामूहिक-दोनों प्रकार के प्रेरकों का स्थान होता है। प्रत्येक छात्र अपनी व्यक्तिगत रुचि, ज्ञान और क्षमता के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, जिससे उसका सीखने का कार्य सरल हो जाता है। इसके अतिरिक्त, सामूहिक रूप से कार्य करने के कारण उसमें स्पर्द्धा, सहयोग और सहानुभूति का विकास होता है। 

5. मिश्रित विधि द्वारा सीखना (Learning by Mixed Method) सीखने की दो महत्वपूर्ण विधियाँ हैं- पूर्ण विधि, (Whole Method) और आशिक विधि (Part Method) । पहली विधि में छात्रों को पहले पाठ्य-विषय को पूर्ण ज्ञान दिया जाता है और फिर उसके विभिन्न अंगों में सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। दूसरी विधि में पाठ्य-विषय की खण्डों में बाँट दिया जाता है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार इन दोनों विधियों को मिलाकर सीखने के लिए मिश्रित विधि का प्रयोग किया जाता है। 

6. सीखने की स्थिति का संगठन (Organization of Learning Process ) सीखने के कार्य को सरल और सफल बनाने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता है-सीखने की स्थिति का संगठन। यह तभी सम्भव हो सकता है, जब विद्यालय का निर्माण इस प्रकार किया जाय कि उसमें सीखने की सभी क्रियाएँ उपलब्ध हो और सीखने की सभी विधियों का प्रयोग किया जाए। 

सीखने की ये सभी विधियाँ व्यक्ति के मनोविज्ञान पर आधारित हैं। इन विधियों के प्रयोग से अधिगम तथा शिक्षण, दोनों ही प्रभावशाली हो जाते हैं। 


ब्लॉग - प्रेरणा डायरी

Website - prernadayari.blogspot.com

राइटर -- केदार लाल ( k. S. Ligree)