खुशी और उपहारों की भावनाओ से जुड़ा है - क्रिसमस। लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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शनिवार, 23 दिसंबर 2023

खुशी और उपहार कि भावनाओ से जुड़ा है -- क्रिसमस।

भूमिका:--


उपहार देना हमारी संस्कृति में गहराई से समाया हुआ है।  त्यौहार, जन्म दिन, विवाह या खुशी के विभिन्न अबसरों पर उपहार देने की परंपरा चली आ रही है। असल में उपहारों के माध्यम से पारस्परिक प्रेम-भाव का जुड़ाव होता है। क्रिसमस का यह त्योहार भी खुशी और उपहार देने कि परम्परा से जुड़ा हुआ है। यह खुशियों को बाँटने का एक तरीका है। देखा जाए तो भी उपहार देना भौतिक  वस्तुओ का  'आदान-प्रदान ही नहीं है बल्कि यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें भावनाओं को व्यक्त करने के साथ-साथ सामाजिक समबन्ध भी मजबूत होते हैं। उपहारों में बाँटना मधुरता फैलता है।ये प्रेमपूर्ण,  उपहार किसमस की एक बड़ी खासियत है। 


जब आप कुछ कह ना सकें तो गिफ्ट दें :-- 


यह  तो सर्व विदित है कि उपहार सामाजिक बंधन भी मजबूत करते हैं, खुशी देते हैं... हमारी अच्छी भावना को बड़ावा देता है। जानिए उपहार किस तरह से रिश्ते में मधुरता घुलता है।
""जब आप किसी को गिफ्ट देते हैं तो यह उन्हें स्पेशल फील करवाता है। कभी क्रभी व्यक्ति अपनी भावनाओं को बोल कर नहीं कह पाता, तो उपहार उन भानवनों को अभिव्यक्त करने में मदद करता है। यह एक तरह से भावनात्मक भाषा बन जाती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिक इमिलियन साइमन थैमस ने कहा   कि अपने अलाबा किसी और के लिए  पैसा खर्च करने से हमें ज्यादा खुशी मिलती है। लिए खुशी की तलाश है। उपहार लेना और देना दोनों से ही खुशी हासिल होती है। 
 

 किसमस् पर उपहार देने कि परंपरा :---

यूरोपियन इतिहास कर एंड्रू हान के अनुसार नव पाषाण काल ​​में 21 या 22 दिसंबर को लोग नए साल के जश्न के लिए एस्टोंहेंज जैसी जगह पर एक पर एकत्रित होकर एक दूसरे को उपहार देते थे। पूर्व रोमन काल में भी नए साल पर उपहार की परंपरा थी। लोग पवित्र पैड की शाखाएँ भी बेंट दिया करते  थे। 13वीं सदी में  हेनरी तृतीय के शासन काल से  सत्रहवीं शताब्दी तक नए साल पर उपहार की परंपरा जारी रही। 19 वी शताब्दी से उपहार देने की परंपरा नए साल से हटकर  किस्मत पूर्व संध्या पर सांता क्लॉज़ के आगमन से जुड़ी। 


25 दिसम्बर को ही क्यों मानते है, - क्रिसमस :---

ईसाई धर्म के अनुसार  प्रभु यीशु मसीह का जन्म  25 दिसंबर  को हुआ था, जिसके कारण इस दिन को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है। ईसा मसीह का जन्म मरियम के घर हुआ था। सिद्धांत यह है कि मरियम को एक सपना आया था। इस सपने में प्रभु के पुत्र जीसस के जन्म की भविष्यवाणी की गई थी।

बच्चों कि चिठिया--


छुटियो के मौसम की आपाधापी में हम कभी-कभी छोटी-छोटी बातें भूल जाते हैं जो हमें खुशियां देती हैं। काफी दिनों से निहान सांता क्लॉज़ को चिट्ठी लिखने  की जिद करा रहा है। वह पांच साल का है। खैर उसे यह नहीं पता कि सांता क्लॉज क्या असल में हैं या नहीं, लेकिन उसके अंदर एक उम्मीद जरूर है कि वह तकिए के नीचे अपना विश् लिखकर सोएगा तो अगली सुबह वन्ह जरूर पूरी होगी। ये नन्हीं-सी उम्मीद सिर्फ एक ही की नहीं, बल्कि करोड़ों बच्चों की होती है। सांता को लेटर राइटिंग आज से शुरू नहीं हुई, बल्कि दो सदी पूर्व से यह सिलसिला चला आ रहा है। आपको बताते है सांता को ख़त लिखने से जुड़ी ऐसी ही रोचक बातों के बारे में ...

 

  बच्चे ने पूछा क्या सच में आते हैं, सैंटा :--


सांता क्लॉज को 1821 में न्यूयॉर्क के संपादक एफ.पी.चर्च न अंग्रेजी मासिक पत्रिका में प्रकाशित कीया था । यह पत्र एक बच्चे के का नाम संप्रेषित किया गया था, जिसने अपनी मां से पूछा था कि सांता क्लॉज असल में है या नहीं। साता की तरह यह भी रहस्य है कि पहली बार साता को कब पत्र लिखा गया था। इसको लेकर अलग-अलग अवधारणाएँ हैं! साथ ही बात करें इन पत्रों की डिलिवरी की तो सुरुवात में अमेरिकी डाक सेवा इन  खतो डिलीवार करने योग्य नहीं मानती थी। थी  और उन्हें डेड लैंटर कार्यालय में भेज दिया जाता था।  20वीं सदी के अंत में दानदाताओं ने इन खतों के प्रति रुचि दिखाई। 


सैंटा क्लाज ने खत लिखकर सिखाया सिस्टाचार्:--

19वीं सदी की शुरुआत में सांता क्लॉज़.... एक हँसमुख व्यक्ति नहीं था, बल्कि उसकी छवि एक कठोर अनुषासक के रूप में थी। वह बच्चों को खत लिखकर सिस्थाचर्  का पाठ...पढ़ाता था। सांता के प्रारंभिक पत्र उपदेशात्मक होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में सेंट निकोलस डे की पहली छवि, जिसे 1810 में न्यूयॉर्क में हिस्टॉरिकल सोसाइटी की ओर से प्रकाशित किया गया था। फिर माता-पिता भी बच्चों को क्रिसमस पर पत्र लिख ने लगे  जिसमें पिछले वर्ष के उनके व्यवहार और उसमे सुधार के निर्देश शामिल थे। 

 इस तरह बनी आधुनिक संता क्लाज कि छवि :-- 


आज के 🎅आधुनिक सांता क्लॉज़ का अस्तित्व 1930 में आया था। हेडन सैंडब्लोm नामक एक कलाकार एक ठंडे पेय के विज्ञापन सांता के रूप में 33 वर्ष (1931 से लेकर 1964 ) तक दिखाई दिया। सांता का यह नया अवतार लोगों को खूब पसंद आया और आखिरकार इसे सांता का नया अवतार माना गया, जो आज तक लोगों के बीच काफी मशहूर है। इस तरह धीरे-धीरे क्रिसमस और सांता का साथ गहराता चला गया और सांता पूरी दुनिया में मरहूर होने के  साथ बच्चों के चहेते बन गये। 


ख़ुद बनाये प्यारा सा गिफ्ट :--


क्रिसमस पर अपने प्रियजनों  ओर बच्चों को ग्रिफ़्ट देना है; तो क्यू ना खुद  कुछ बनाकर दिया जाय।   ये गिफ्ट उन्हें बाजार के गिफ्ट से अच्छा लगेगा। 

आप किसी की पसंद को देखकर खुश हो सकते हैं। जैसे किसी को केक आदि बहुत पसंद है, तो घर पर केक जरूर बताएं। इसी तरह और भी खाने-पीने की चीजें बना सकते हैं। इसे घर पर ही पैक करें। पैकिंग में घर पर पडी हुई चीजों का उपयोग करे। 


परिवार में बढ़ता है प्रेम:----- 



क्रिसमस ट्री घर में प्रेम को बढ़ाता है। यह तनाव को कम करता है। जब सब मिलकर क्रिसमस ट्री सजाते है तो अच्छा महसूस होता । नकरामकता घर में हावी नहीं हो पाती। घर कि नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती हैं। इसे घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा खत्म होती । इसको सजाने में काम आने वाली चीजें घर में रौनक बढाती है और घर को खुशहाल बनती है। जैसे -- मोमबत्ती जलने से अच्छी ऊर्जा का प्रवेश होता । 


 इसलिए कहते है, मैरी क्रिसमस --
  

हैप्पी कि जगह मैरी क्रिसमस इसलिए बोला जाता है क्युकी इसमे भावनाएँ थोड़ी और जुड़ जाती है। यह प्यार जताने, आनन्द और जिंदादिली से जुडा है। साहित्य कार चार्स डिकेंस ने मैरी शब्द को लोकप्रिय बनाया। वही कुछ लोगो का मनना है कि इशू कि माँ का नाम मरियम था। जो मैरी के नाम से भी famous थी। 


Question 1. कब मनाया जाता है क्रिसमस..? 


क्रिसमस की शुरुआत चौथी शताब्दी में हुई मानी जाती है लेकिन इसकी तारीख 25 दिसंबर ईसा मसीह की जन्मतिथि के आधार पर नहीं चुनी गई थी। कहा जाता है कि पोप जूलियस 1 ने इसे तब चल रहे सर्दी के मौसम में मनाए जाने वाले त्योहारों को देखते हुए रणनीतिक रूप से यह तारीख दी थी ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग यह पर्व मनाने लगें। 

Question 2 क्यों मनाया जाता है क्रिसमस..??

क्रिसमस को बड़े दिन के नाम से भी जाना जाता ह। इसके पीछे कारण है कि यूरोप में कुछ लोग जो ईसाई समुदाय से नहीं थे वे सूर्य के उत्तरायण के मौके को त्योहार के रूप में 25 दिसंबर को मनाया करते थे । माना जाता था की 25 दिसंबर से दिन लंबा होना शुरू हो जाता है,। इसलिए इस तारीख को सूर्य के पुनर्जन्म का दिन माना जाता था । कहा जाता है कि इसी वजह से ईसाई समुदाय के लोगों ने भी 25 दिसंबर को प्रभु यीशु का जन्मदिन मनाने के तौर पर चुना और इस दिन क्रिसमस मनाने लगे ,इससे पहले ईस्टर ईसाई समुदाय के लोगों का खास त्योहार था।