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बुधवार, 8 मई 2024

क्यों बन रहे है छात्र मनोरोगी..??.. क्यो कर रहे है आत्महत्या..?

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हिण्डौन(Rajasthan) 


क्यो बन रहे है छात्र मनोरोगी...? क्यों कर रहे है आत्महत्याएँ
...? 
"प्रेरणा डायरी (motivation dayri)  कि आज की 28 वीं पोस्ट छात्रों से जुड़े एक बढ़े गंभीर विषय पर आधारित है। इसलिए सीधे मुद्दे पर बात करगे, आपने खुद भी देखा होगा कि हमारे देश के ऐसे सैकड़ो शहर, जो ऐजुकेशन हब (Education Hub ) के रूप में उभरे है, वहाँ के अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, समाचार चैनलों, और इलैक्ट्रोनिक मिडियाँ, सोसल मिडीया पर हर जगह, आए दिन नौजवान, तैयारी करने वाले युवक युवतियों के जहर खाकर, कोचिंग कि बिल्डंग से कूदकर, पंखे से लटकर,(ट्रेन के आगे कूदने जैसा विभित्स और डरावना कदम भी शामिल है) अपनी जान देते है। भारत में क्षात्रों कि आत्महत्याओं से संबंधित  कुछ आंकड़े आपके सामने पेश कर रहा हूं, इन्हें पढ़ कर आप चौंक उठेंगे  एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2022 में 130 44, 2021 में 13089, 2020 में 12526, छात्रों की आत्महत्या के कारण मृत्यु हो गई। भारत में सन 2021 में महाराष्ट्र राज्य में छात्रों की आत्महत्या की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई, यहां आत्महत्या करने वाले छात्रों में से 1834 छात्रों की मौत हो गई। इसके बाद मध्य प्रदेश में 1308 और तमिलनाडु में 1246 छात्रों की मौत हुई। राजस्थान का कोटा शहर पूरे देश में सुसाइड सिटी के नाम से फेमस हो चुका है।  "कोचिंग हब ऐरिया और बड़े शहरों से निकलकर अब ये, घटना छोटे शहरों, कस्बों और अब तो गाँवों तक पहुँच चुकी है। वर्तमान में युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति सिर्फ एक शहर या एक देश तक सीमित नहीं बल्कि यह वैश्विक चुनौती बन चुकी है।

 विश्व के लिए चुनौती.. मानसिक अवसाद --

 विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वास्थ्य का अर्थ केवल बीमार न होना और शारीरिक रूप से फिट होना ही नहीं है, बल्कि अच्छा स्वास्थ्य शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक तीनों चीजों से जुड़ा हुआ है। जहां भी व्यक्ति कमजोर होता है वहां वह इस वक्त माना जाता है। उसे सेहतमंद नहीं कह सकते। अच्छी स्वास्थ्य वाला व्यक्ति वह है जो इन सभी मानवों पर खुश है और हर स्तर पर अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहा है। जो जीवन में समान तनाव का सामना करने में सक्षम है। यूं तो मानसिक विकार कई तरह के होते हैं मसलन डिमेंशिया तनाव चिंता भूलना अवसाद डिस्लेसिया एंजायटी  आदि। लेकिन इन सभी में अवसाद अर्थात डिप्रेशन ऐसा बीमारी है जिससे पूरी दुनिया ट्रस्ट है हर आयु वर्ग का व्यक्ति आज मानसिक अवसाद के दौर से गुजर रहा है।

WHO के अनुसार पिछले एक दशक में तनाव और अवसाद के मामलों में 18% की बढ़ोतरी हुई है। भारत की करीब 6.5% से 7.5% आबादी मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रही है। यह माना जाता है की अच्छी मेंटल हेल्थ हर व्यक्ति का मानव अधिकार है जिससे उसे वंचित नहीं किया जा सकता। दुनिया में मेंटल हेल्थ में आ रही लगातार गिरावट से एक्सपर्ट और डॉक्टर भी परेशान है देखा गया है कि कई बार प्रारंभिक जीवन में बुरे अनुभव हद से और घटनाएं मां को इतना इफेक्ट करती हैं कि उनके प्रभाव से व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। कई प्रकार के मनोविकारों का शिकार हो जाता है यह मनोविकार और नकारात्मकता उसके मन और सेहत दोनों को खराब करती हैं।

 असफलता और बेरोजगारी बड़ा कारण --


मानसिक अवसाद का बड़ा कारण असफलता बेरोजगारी और गरीबी भी है। 2011 की जनगणना के आंकड़े देखने से पता चलता है कि मानसिक रोगों से ग्रस्त करीब 78.62 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। आज युवाओं और छात्रों में बढ़ते आत्महत्या के मामले भी इस बात की पुष्टि करते हैं। बेरोजगारी से परेशान युवा इस कदर मानसिक नकारात्मकता के दौर से गुजर रहे हैं कि वह सुसाइड जैसा गंभीर कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं। यह आंकड़े तेजी से इस और इशारा करते हैं कि युवाओं में मानसिक अवसाद एक घातक रूप ले रहा है। डब्ल्यू एच ओ ने 2013 में मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य के बराबर महत्व देते हुए वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में एक व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना को मंजूरी दी थी। यह योजना 2013 से 2020 तक के लिए थी। इस कार्य योजना में सभी देशों ने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए कार्य करने का प्रण लिया था। भारत ने भी इस कार्य योजना को अपने यहां लागू किया था लेकिन आज भी भारत में मेंटल हेल्थ के हालात भैया हुए हैं। इसके पीछे तमाम कारण है इनमें लोगों की सोच और सरकार द्वारा किया जाने वाला मेंटल हेल्थ का बजट है। आज भी भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर किया जाने वाला वह बहुत कम है भारत अपने कुल सरकारी स्वास्थ्य विभाग का मात्र एक पॉइंट तीन 1.3  प्रतिशत हिस्सा ही मेंटल हेल्थ पर खर्च करता है। मानसिक रोगियों की संख्या पिछले 10 वर्षों में दुगनी हो गई है, लेकिन उसे पर खर्च होने वाला बजट आज भी काम है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारण है। आंकड़े बताते हैं कि साल 2017 में भारत की विशाल जनसंख्या के लिए मात्र 5000 मनोचिकित्सक और 2000 से भी काम मनोवैज्ञानिक थे। यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। हाल में जारी वैश्विक प्रसन्नता सूचकांक के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं काम प्रश्न और अधिक तनाव ग्रस्त होती हैं। इसीलिए यहां महिला आत्महत्या दर पुरुषों से कहीं ज्यादा है। भारत में घरेलू हिंसा कम उम्र में शादी मातृत्व लैंगिक भेदभाव काफी हैं जो महिलाओं में मानसिक अवसाद और मनोविकारों का प्रमुख कारण है।

 

 स्कूल कॉलेज से लेकर कैरियर बन चुके युवा तक सुसाइड कर रहे हैं। विशेषज्ञ इस बात को मानते हैं की आत्महत्या की प्रवृत्ति भावनात्मक एवं मानसिक मनोविकार है और इसे समझने की ज्यादा जरूरत है। इन आत्महत्या को लेकर खूब समाचार छपते हैं, चैनलों पर डिबेट होती है, विशेषज्ञ चर्चा करते हैं। पर इन सब कि इतनी जरूरत नहीं है सबसे ज्यादा जरूरी है ये जानना कि " आख़िर ऐसा क्यू हो रहा है...?? 

 इतने पढ़े लिखे और समझदार छात्र जो ग्रेजुएशन, पीजी, और महत्वपूर्ण सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र के ओहदो को प्राप्त करने वाली नौकरियो कि तैयारी कर रहे है वो आख़िर क्यो....?और कैसे...? आत्महत्या जैसा कायराना और कमजोर कदम उठाने पर मजबूर हो जाते है ये जानना हमारे, हमारी सरकारों, और वैशिक संस्थाओ (Govermend & Inter National Councai and Walfare orgnisationa) के लिए जरूरी है । 

क्योकि ये एवं वैश्विक संकट है (इस समस्या का समना दुनिया का हर विकसित, विकासशील एवं गरीब देश कर रहा है) इसके कारणों को ढूढ़ना इसलिए जरूरी है ताकि अपने बच्चों को स्वस्थ्य भविष्य मुहैया कराया आ सके । प्रेरणादायक डायरी ( Motivational / मोटीवेशनल)। का ये आर्टिकल इन्ही जिम्मेदार कारण (Responsible facters) कि पड़ताल करेगा। 
दोस्तों मैने जब इन कारणों को टटोलने का प्रयास किया तो बहुत सी  वज़हें सामने आयी पर मैं उन कारणों का उल्लेख, उनकी चर्चा करना चाहता हू, जो सबसे अधिक जिमेदार है। सबसे अहम् है । 

1. अनअपेक्षित (नाजायज) मानसिक दबाव :----


आज के दौर में हर माँ-बाप (पेरेन्ट्स) अपने बच्चों कि क्षमता, उनकि रूपि, उनके कौशल का मूल्यांकन किये बिना ही उन्हें डॉक्टर इंजिनियर, IAS बनाने कि इच्छाए पैदा कर लेते हैं। और अपनी इन echayo को बच्चों पर थोप दिया जाता है चाहे उस बालक में इन्हें हासिल करने का कौसल्  हो या नही । परिणाम स्वरूप बच्चे अवसाद, चिंता, डिप्रेशन, दबाव, कुण्ठा, चिड़चिडेपन्, हीन भावना आदि मानसिक विकारों के शिकार हो जाते हैं अगर आप दुनियाँ कि सबसे बड़ी  स्वास्थय संस्था  ( WHO - world helth orgnisation द्वारा जारी कि गई स्वास्थ्य रिपोर्ट के कुछ आंकड़ो को पड़ेंगे तो चोंक उठन्गे W.H.O. के अनुसार दुनिया मे  मानसिक रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है । अकेले उत्तरी अमेरिका में 2010 में अवसाद उपचार में खर्च हुई रकम 210.5 बिलियन डॉलर थी जो  2022 में बढकर 326 बिलियन डॉलर हो गयी। भारत में भी समस्या तेजी से बढ़ रही है हाल ही में अकेले कोटा ( राजस्थान राज्य का ऐजुकेश हब) में बड़ी संख्या में छात्रों दुवारा आत्महत्या कि गई । भले ही स्वास्थ्य सुविधाएँ तेजी से बढ़ी है भौतिक साधनों में खूब इजाफा हुआ हूँ । पर लोगों और हमारे छात्रों का मन कमजोर हुआ है । ऐसा अनचाहे दबाव के कारण अधिक हो रहा है। यदि आने वाले समय में यहि प्रवृति बनी रही जिसकी पूरी सम्भावना है की 2030 में वैश्विक अर्थ जगत का 16 ट्रिलियन डालर मनोरोगों के इलाज में झोंकना पड़ेगा । ऐसी स्थिति में समरसता, तनाव एवं दबाव मुक्त, प्यार मोहब्बत का वातावरण स्थापित करना वैश्विक आवश्यकता है। मानसिक  स्वास्थ्य के प्रति जगरूकता पैदा करने के लिए 10 अक्टुबर को विश्व मानसिक स्वास्थ दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

2. रुचि और योग्यता के अनुरूप चुनें भविस्य : ---

विद्यार्थियों कि आत्महत्या के मामलों को कई आयामों से देखना होगा । भौतिक, सांसारिक सुख भोग करना हम सब को प्रिय है। हम अधिकाधिक उपयोग के आदि हो चुके है। यह यात्रा  हमारी छात्र पीढ़ी को तनाव, चिंता, दबाव, अकेलेपन, असन्तुस्टि, कुंठा जैसी मानसिक संतुलन बिगाड़ने वाली अनुभूतियों कि और धकेल रही है।  मुझे 3 एडियट फिल्म याद आ रही है।  इस फिल्म से हमें यही सन्देश मिलता है कि बच्चों को अपनी रूचि और योग्यता के अनुसार अपना भविष्य चुनने कि स्वतन्त्रता होनी चाहिए। पर मुस्किल यह है कि  अभिभावक बच्चों पर अपनी महत्वाकाक्षा लाद देते हैं। बच्चों को यह पता तक नहीं होता कि जिस लक्ष्य कि दौड़ में हमें जुटाया  गया है वो हमारी इच्छा का है । या हम पर लादा गया एक बोझ मात्र है। 


3. गुणवता पूर्ण संवाद का अभाव : ---- 

 dosto आज के dhor मे  एक विडभना भरा माहौल नजर आ रहा। दोस्तों आज के बच्चों और माँ-बाप, बच्चों और शिक्षकों, बच्चों और संस्थानों, जो गुणवता पूर्ण सलाह मशवरा उपलब्ध करवाते है, के मध्य सकारात्मक संवाद का अभाव है।बच्चे अकेलेपून का शिकार हो रहे है। उनकी समस्यों को सुनने वाले पारिवारिक दोस्त समाप्त हो रहे है। अकेलापन दुखदाई क्षण पैदा करने लगता है। भारत में स्कूलों में छात्रों कि समस्याओं का समाधान करने वाले टीचर (एडवाइजर) जैसे कोई पद होते ही नही । शिक्षा पद्धती भी बोझ और दबाच पैदा करने वाले डरें  पर चलने वाली है जिसमें भारी बदलाव अपेक्षित है।

4. खेल-khood और स्वस्थ्य मनोरंजन से दूरी :----


भाज विद्यालय, परिवार, कोचिंग हर जगह छो छात्रों को केवल एक ही टारगेट का पकड़ा दिया जाता है पढ़ो ... ! पढ़ो...! पढ़ो! आगे बढ़ो ! ..टॉप करो! ...नाम करो! ...सलेक्शन लो । अरे भाई... भले आदमियो ये तो देखो की आपका बेटा या बेटी किस काबिल है। वो क्या चाहता है। उसका etrest क्या है। 

एक आश्चर्य जनक बदलाब मैं देख रहा हूँ, कि जो चीज हमारे Student (छात्र पीढ़ी को) सबसे ज्यादा शारीरिक और मानसिक लाभ पहुंचाती थी - खेलकूद उसे अब "टाइमवेस्ट" माना जाता है। खेलकूद, बालू सभाएँ, बाद विवाद, सामाजिक समस्या समाधान कार्यक्रम, हर school में लागू होने चाहिए । योगा के महत्व को दुनिया भर में lmportance दिया जा रहा है। योग तनाव ( tension) को दूर करने का एक कारगर और आसान उपाय है। इसके महत्व को student को समझना चाहिए। इसके अच्छे रिजल्ट हो सकते है। 


5. प्रेम और सहानुभूतिपूर्ण माहौल की आवसायकता:--


पढाई के दौरान जीवने जीने का कौशल और समस्या निवारण कौशल सिखाने पर भी ध्यान देना होगा। जीवन को नीरस बनाने वाले माहौल को "बाय-बाय" कहें। जीवन को जीवंत होकर जीए । 

मानसिक रोगों से बचने के लिए खुलेमन, दया,सहानुभूति, प्रेरणा, सहज स्वीकार्यता कि जरूरत है। पहले की तुलना में अब लोग परामर्श लेकर अपनी समझ बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में रूचि दिखा रहे है, जो एक अच्छा संकेत है। 

मानसिक रोगो और रोगियों को हेय दृष्टि से देखना और इससे सम्बन्धित भ्रांतियों को रोकना भी बहुत जरूरी है। मनोरोगियो चाहे वो student हो या कोई अन्य व्यति सबसे ज्यादा जरूरत जिस चीज की है वो है-- "प्यार और सहयोग" का वातावरण। 

 

बचाव के उपाय : -


 सबसे जरूरी है - जागरूकता : ---

देश में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर  जागरूकता का अभाव है। मानसिक बिमारियों पर घर, परिवार, समाज में कोई चर्चा तक नहीं होतीं। कई बार लोगों के इसके लक्षणों का भी पता नहीं चल पाता, यह भी एक कारण है। तनाव, घबराट, चिंता, उदासी, काम में मन नही लगना, बैचेनी, नेगेटिव thought, आदि प्रमुख लक्षण है। 


खतरनाक संकेतों को समझे : --- 

पीडित बच्चे या युआ बीमारी कि इस्थिती में कुछ खतरनाक संकेत देने लगते है। जैसे --

- आत्महत्या कर लूँगा। 

- मार दूँगा। 

- मर जाऊंगा। 

- सबको तबाह कर दूँगा।

यदि इस प्रकार कि बाते या विचार बार बार आते है। या मुह से निकलते है, तो तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाये। लोग इसे भूत -बाधा समझकर देवता और नीम हकीमो के चक्कर में पड़ जाते है। ऐसा करना गलत है। 


बच्चों को अच्छे कार्यो से जोड़े : ---

बच्चों/ छात्र को अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करें। ऐसा करने से वो bussy भी रहन्गे। उनको उनकी रुचि के कार्यो को करने के लिए प्रेरित करे। जैसे -- 

- खेलना कूदना। 

- साहित्य पढ़ना। 

- बागवानी । 

- कहानी, कविता, निबंध आदि लिखना। 

- समाचार सुनना। 

- मनपसंद प्रोग्राम देखना। 

- कॉमेडी देखना। 


दूसरे बच्चों से तुलना ना करें : --


 Website --prernadayari.blogspot.com

ब्लॉग -- प्रेरणा डायरी।